पुलिस अधिकारी गिरफ्तारी के कारणों को लिखित में दर्ज करने के लिए बाध्य: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2023-06-30 07:45 GMT

'पुलिस अधिकारी या जांच अधिकारी को किसी की गिरफ्तारी करते समय लिखित में उसके कारणों को दर्ज करना आवश्यक है, बाध्यकारी है।'

ये टिप्पणी इलाहाबाद हाईकोर्ट ने की। हाईकोर्ट ने आगे कहा कि जांच एंजेंसियां और उनके अधिकारी सीआरपीसी की धारा 41 और 41 ए की प्रक्रिया का भी पालन करना होगा, जिसमें संज्ञेय या असंज्ञेय अपराधों के मामले में गिरफ्तारी का उल्लेख किया गया है। साथ ही अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य (2014) मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य हैं।

जस्टिस महेश चंद्र त्रिपाठी और जस्टिस प्रकाश पाडिया की बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी। बेंच ने कहा कि एक पुलिस अधिकारी गिरफ्तारी के कारणों को लिखित में दर्ज करने के लिए बाध्य है। धारा 41 का अनुपालन न करने का परिणाम निश्चित रूप से अपराध के संदिग्ध व्यक्ति के लाभ के लिए होगा। धारा 41 और 41ए के दायरे और उद्देश्य भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के पहलू हैं।“

आपको बता दें, अर्नेश कुमार मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, गिरफ्तारी अपवाद होनी चाहिए जहां अपराध 7 साल से कम कारावास के साथ दंडनीय है। और सीआरपीसी की धारा 41ए के तहत गिरफ्तारी के बजाय ऐसे मामलों में आरोपी को उपस्थिति के लिए नोटिस दिया जाना चाहिए। ऐसे मामलों में असाधारण परिस्थितियों में गिरफ्तारी की जा सकती है, लेकिन कारणों को लिखित में दर्ज किया जाना चाहिए।

संदर्भ के लिए, सीआरपीसी की धारा 41ए में प्रावधान है कि उन सभी मामलों में जहां धारा 41(1) के तहत किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी की आवश्यकता नहीं है (जब पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है), पुलिस उस व्यक्ति को निर्देश देते हुए एक नोटिस जारी करेगी जिसके खिलाफ उचित शिकायत है। किया गया है, या विश्वसनीय जानकारी प्राप्त हुई है, या उचित संदेह मौजूद है कि उसने कोई संज्ञेय अपराध किया है, तो उसके सामने या ऐसे अन्य स्थान पर उपस्थित होने के लिए जो नोटिस में निर्दिष्ट किया जा सकता है।

आगे कहा गया है कि जहां आरोपी नोटिस का अनुपालन करता है और उसका पालन करना जारी रखता है, उसे नोटिस में उल्लिखित अपराध के संबंध में गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, जब तक कि दर्ज किए जाने वाले कारणों से, पुलिस अधिकारी की राय न हो कि उसे गिरफ्तार करना चाहिए।

क्या है पूरा मामला?

अदालत एक याचिकाकर्ता राजकुमारी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता के खिलाफ आवश्यक वस्तु अधिनियम,1955 की धारा 3 और 7 के तहत मुकदमा दर्ज है। एफआईआर रद्द करने और गिरफ्तारी पर रोक लगाने की मांग करते हुए याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का रूख किया था। याचिकाकर्ता का कहना था कि मुकदमे की सभी धाराएं सजा सात साल से कम सजा वाली हैं। इसलिए, पुलिस अधिकारी सीआरपीसी की धारा 41-ए के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन करने के लिए बाध्य हैं।

इस संबंध में, वकील ने विमल कुमार और 3 अन्य बनाम यूपी राज्य और 3 अन्य के मामले में उच्च न्यायालय के 2021 के फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें पुलिस अधिकारियों को विशेष रूप से दहेज के मामले (498ए आईपीसी), में नियमित गिरफ्तारी से बचने और सीआरपीसी की धारा 41ए के तहत निर्धारित पूर्व शर्तों का सख्ती से पालन करने का निर्देश दिया गया था।

हाईकोर्ट ने सभी मजिस्ट्रेटों को ऐसे पुलिस अधिकारियों के नाम रिपोर्ट करने का निर्देश दिया, जिनके बारे में उन्हें लगता है कि उन्होंने दुर्भावनापूर्ण तरीके से गिरफ्तारियां की हैं, ताकि उनके खिलाफ उचित कार्रवाई की जा सके।

मामले के तथ्यों और याचिकाकर्ता के वकील द्वारा दी गई दलीलों पर ध्यान देते हुए, अदालत ने कहा कि विमल कुमार और 3 अन्य (सुप्रा) के मामले में हाईकोर्ट के दिशानिर्देश वर्तमान मामले के तथ्यों पर समान रूप से लागू थे। .

नतीजतन, हाईकोर्ट ने आपराधिक रिट याचिका का निपटारा कर दिया।

याचिकाकर्ता के वकील: महेंद्र कुमार यादव, विनोद कुमार यादव

प्रतिवादी के वकील: जी.ए.

केस टाइटल - राजकुमारी बनाम यूपी राज्य और 3 अन्य [आपराधिक विविध रिट याचिका संख्या – 7496 ऑफ 2023]

केस साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (एबी) 203

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