पुलिस नाबालिग लड़कियों के रोमांटिक रिश्ते का विरोध करने वाले परिजनों के इशारे पर POCSO मामले दर्ज कर रही, जो 'घिसी-पटी और दुर्भाग्यपूर्ण प्रथा' हैः दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2021-10-11 08:00 GMT

Delhi High Court

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में पुलिस द्वारा उन लड़कियों के परिजनों के इशारे पर POCSO  मामले दर्ज करने की ''दुर्भाग्यपूर्ण प्रथा'' पर चिंता व्यक्त की है, जिनको किसी युवा लड़के के साथ अपनी लड़की के रोमांटिक जुड़ाव और दोस्ती पर आपत्ति होती है।

न्यायमूर्ति जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने मामले में आरोपी 21 वर्षीय युवक को जमानत देते हुए कहा, ''सहमति से यौन संबंध कानूनी ग्रे क्षेत्र में रहा है क्योंकि नाबालिग द्वारा दी गई सहमति को कानून की नजर में वैध सहमति नहीं कहा जा सकता है ... इसलिए कानून की कठोरता का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है और बाद में इसका दुरुपयोग किया जा रहा है।''

अदालत ने कहा कि आरोपी एक युवा है और उसके आगे पूरा जीवन होने के कारण, उसे उसकी स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता है।

कोर्ट ने कहा कि,''संक्षिप्त सवाल यह उठता है कि याचिकाकर्ता को जमानत दी जानी चाहिए या नहीं? जबकि, यह एक घिसी-पटी और दुर्भाग्यपूर्ण प्रथा बन गई है कि पुलिस उस लड़की के परिवार के इशारे पर पॉक्सो मामले दर्ज कर रही है जो एक युवा लड़के के साथ उसकी दोस्ती और रोमांटिक संबंध का विरोध करते हैं।''

पिछले साल इस युवक के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 376, 313, 328, 506 और POCSO ACT की धारा 6 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी। 16 वर्षीय शिकायतकर्ता लड़की के अनुसार, जब वह स्कूल जाती थी तो आरोपी युवक उसका पीछा करता था। एक दिन उसने उससे दोस्ती करने का इरादा व्यक्त किया लेकिन उसने इससे इनकार कर दिया।

इसके बाद यह भी आरोप लगाया गया कि एक दिन युवक उसे जबरदस्ती अपने घर ले गया और उसके साथ बलात्कार किया गया। बाद में पता चला कि वह 7-8 सप्ताह की गर्भवती है।

याचिकाकर्ता-आरोपी की तरफ से यह तर्क दिया गया कि शिकायतकर्ता लड़की को उसके परिवार के सदस्यों द्वारा प्राथमिकी दर्ज करवाने के लिए मजबूर किया गया और परिवार को एक गैर सरकारी संगठन से समर्थन मिल रहा है। यह भी तर्क दिया गया कि परिवार ने उनकी आपसी सहमति से हुई दोस्ती का विरोध किया था।

अदालत ने रिकॉर्ड पर आए बयानों पर विचार करने के बाद शुरूआत में ही कहा, ''इस अदालत ने रिकॉर्ड पर पेश की गई उन तस्वीरों का भी अवलोकन किया है जिनमें याचिकाकर्ता और पीड़िता को बहुत करीब दिखाया गया है और यह स्पष्ट है कि उन दोनों के बीच नजदीकी संबंध था।''

तद्नुसार कोर्ट ने कहा कि युवक और लड़की की उम्र ,तस्वीरें जो उन दोनों के बीच संबंधों की ओर स्पष्ट रूप से इशारा कर रही हैं, एफआईआर व एमएलसी दर्ज करते समय दिए गए बयानों की विसंगतियां आदि सभी ऐसे कारक हैं जो मामले को जमानत देने योग्य बना रहे हैं।

कोर्ट ने कहा कि,

''इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से ऐसा प्रतीत होता है, जैसे कि वर्तमान प्राथमिकी पीड़िता/शिकायतकर्ता के परिवार के आग्रह पर दर्ज की गई है, जो शायद यह जानकर शर्मिंदा थे कि शिकायतकर्ता गर्भवती हो गई है और यदि यह जानकारी आस-पास के लोगों को मिलती तो एक सामाजिक प्रतिक्रिया होती,जिसका परिवार को सामना करना पड़ता। इसलिए सामाजिक शर्मिंदगी से बचने और गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने के लिए यह प्राथमिकी दर्ज करवाई गई है और इसे यौन शोषण का रंग देते हुए POCSO ACT के दायरे में लाया गया है, जो बाल शोषण के उन्मूलन की परिकल्पना करता है।''

याचिकाकर्ता को जमानत देते हुए कोर्ट ने कहा कि,

''याचिकाकर्ता 12 महीने से अधिक समय से जेल में बंद है और उसे कठोर अपराधियों की संगति में रखा जा रहा है। यह 21 साल के एक युवक के लिए अच्छा साबित नहीं होगा और उसे नुकसान ज्यादा पहुंचाएगा।''

केस का शीर्षकः प्रद्युम्न बनाम राज्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार) व अन्य

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