पोक्सो अधिनियम का उद्देश्य नौजवानों के बीच के रोमांटिक संबंधों को अपने दायरे में लाना नहीं : इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2022-02-17 14:04 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक पोक्सो (प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट) आरोपी को जमानत दे दी। उक्त आरोपी अपनी प्रेमिका 14 वर्षीय लड़की (पीड़िता) को लेकर कथित रूप  से भाग गया था। कोर्ट ने कहा कि वे दोनों घर से भाग गए थे और एक मंदिर में शादी कर ली। लगभग दो साल तक साथ रहे। इस दौरान लड़की ने एक बच्चे को जन्म भी दिया।

जस्टिस राहुल चतुर्वेदी की खंडपीठ ने यह भी टिप्पणी की कि बच्चे को माता-पिता के प्यार और स्नेह से वंचित करना बेहद कठोर और अमानवीय होगा। आरोपी और नाबालिग पीड़ित दोनों एक-दूसरे से प्यार करते हैं और उन्होंने शादी करने का फैसला किया।

कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण में यह भी कहा कि पॉक्सो अधिनियम की योजना स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि उसका इरादा किशोर या किशोरी के बीच के रोमांटिक संबंध को अपने दायरे के भीतर लाने का नहीं है।

संक्षेप में मामला

नवंबर, 2019 में नाबालिग लड़की के पिता ने आरोपी/जमानत आवेदक (अतुल मिश्रा) के खिलाफ इस आरोप के साथ एफआईआर दर्ज कराई कि उसकी नाबालिग बेटी को आरोपी ने बहकाया । बाद में आरोपी पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 363, 366 और धारा 376; पोक्सो अधिनियम, 2012 और अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 3(2)v, 3(2) के तहत मामला दर्ज किया गया।

आखिरकार करीब एक साल बाद मुखबिर से सूचना मिलने के बाद पुलिस ने पीड़िता और उसकी गोद में पल रहे उसके छोटे बच्चे को बायपास से गिरफ्तार कर लिया। चूंकि घटना की तारीख को पीड़िता नाबालिग थी, अधीनस्थ स्तर के सभी अधिकारियों ने उसे प्रयागराज के शेल्टर होम भेजा और आवेदक को जेल भेज दिया।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश / विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो अधिनियम), फतेहपुर ने नवंबर 2021 में आवेदक की ओर से दायर जमानत आवेदन को खारिज कर दिया। इसके बाद उसने अदालत के समक्ष वर्तमान जमानत याचिका दायर की।

न्यायालय की टिप्पणियां

अदालत ने पाया कि घटना की तारीख में पीड़िता एक नाबालिग लड़की थी। उसकी 'सहमति' के रूप में आईपीसी की धारा 375/376 के तहत विचार किया गया। कानून की नजर में इसका कोई मूल्य नहीं है। हालांकि, कोर्ट ने आगे कहा कि किसी भी वैधानिक दंड प्रावधान की प्रयोज्यता गणितीय व्याख्या नहीं है। इस प्रकार, इसे इस तरह लागू नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने जोर देकर कहा कि निश्चित रूप से ग्रे क्षेत्र हैं, जहां पॉक्सो अधिनियम के तहत दिए गए वाक्यों की गंभीरता, प्रत्येक मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कम किया जाना चाहिए।

इस संबंध में न्यायालय ने इस प्रकार कहा:

"यदि अधिनियम की इन कठोरताओं को जल्दबाजी या गैर-जिम्मेदाराना तरीके से लागू किया जाता है तो इससे युवाओं की प्रतिष्ठा और भविष्य को अपूरणीय क्षति हो सकती है। इनके कार्य केवल अहानिकर होते और उस निर्दोष प्रेमी या जोड़े के भविष्य के जीवन को खराब कर सकते हैं, जो शुरू में पूरी मासूमियत से विकसित हुआ। उसके बाद उस रिश्ते को स्थापित किया... बढ़ती हुई घटनाएं जहां किशोर और युवा वयस्क पोक्सो अधिनियम के तहत अपराधों का शिकार होते हैं, उन्हें पॉक्सो अधिनियम के दंडात्मक प्रावधानों द्वारा पीड़ित किया जा रहा है। इसकी गंभीरता के दूरगामी निहितार्थ को समझे बिना अधिनियमन, एक ऐसा मुद्दा है जो इस न्यायालय के लिए गंभीर चिंता का विषय है।"

इसके आगे कोर्ट ने कहा,

" एक किशोर और युवा वयस्कता के विज्ञान और मनोविज्ञान को स्वीकार करना महत्वपूर्ण है, ऐसा इसलिए है, क्योंकि सामाजिक और जैविक घटनाओं को व्यापक रूप से जीवन के दौरान मानव विकास, स्वास्थ्य और सामाजिक-आर्थिक प्राप्ति के निर्धारण के रूप में पहचाना जाता है, लेकिन हमारी समझ अंतर्निहित रास्ते और प्रक्रियाएं सीमित रहती हैं। इसलिए, एक 'जैव-सामाजिक दृष्टिकोण' को अपनाने और उसकी सराहना करने की आवश्यकता है, जो कि दो किशोरों की जैविक और सामाजिक आवश्यकताओं की अवधारणा करता है। वे परस्पर मोह के कारण आकर्षित होते हैं और अपने भविष्य के लिए निर्णय लेते हैं।"

कोर्ट का आदेश

मामले के तथ्यों पर वापस लौटते हुए कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामले में किशोरों ने शादी के बंधन में बंधने का फैसला किया। अब इस रिश्ते से उनका एक बच्चा है, इसलिए कोर्ट ने माना कि पॉक्सो अधिनियम की कठोरता उनके रास्ते में नहीं आनी चाहिए।

अदालत ने इस तथ्य को भी ध्यान में रखा कि लड़की का यौन शोषण नहीं किया गया। उस पर कोई यौन हमला नहीं किया गया, न ही आवेदक द्वारा उसका यौन उत्पीड़न किया गया, जैसा कि पॉक्सो अधिनियम के उद्देश्य से माना जाता है।

इसलिए इस बात पर जोर देते हुए कि अपने बच्चे को माता-पिता के प्यार और स्नेह से वंचित करना बेहद कठोर और अमानवीय है, अदालत ने उसे यह कहते हुए जमानत दे दी कि उसकी पत्नी (पीड़ित लड़की) ने उसके साथ रहने की इच्छा जाहिर की है।

हालांकि, लड़की और बच्चे के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए अदालत ने एक शर्त रखी कि जमानत पर रिहा होने के बाद आवेदक अपनी पत्नी और बच्चे के पक्ष में पांच लाख रूपये का बैंक ड्राफ्ट पेश करेगा। यह ड्राफ्ट पीड़िता को जमानत पर रिहा होने की तारीख से छह महीने की अवधि के भीतर अदालत के समक्ष सौंप दिया जाएगा।

राजकीय बालगृह (बालिका) खुल्दाबाद के प्रभारी प्रयागराज को पीड़िता को उसके बच्चे के साथ छोड़ने का निर्देश दिया गया।

केस टाइटल - अतुल मिश्रा बनाम स्टेट ऑफ यू.पी. और तीन अन्य

केस साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (एबी) 51

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