क्या अक्ल दाढ़ से उम्र का पता लगाया जा सकता है?

Update: 2023-05-09 06:39 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट में Protection of Children from Sexual Offences यानी POCSO से जुडा एक केस आय़ा। हाईकोर्ट ने अक्ल दाढ़ यानी Wisdom Teeth को पुख्ता सबूत न मानते हुए आरोपी को बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि केवल अक्ल दाढ़ का न होना पीड़िता के नाबालिग होने का निर्णायक सबूत नहीं है।

जस्टिस अनुजा प्रभुदेसाई की बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी। बेंच ने कहा कि अक्ल दाढ़ का होना ज्यादा से ज्यादा ये साबित कर सकता है कि व्यक्ति की आयु 17 साल या उससे अधिक है, लेकिन अक्ल दाढ का न होना ये साबित नहीं करता है कि व्यक्ति की आयु 18 साल से कम है। (नोट- यहां पर व्यक्ति का मतलब महिला या पुरूष कोई भी हो सकता है।)

पहले पूरा मामला समझ लेते हैं फिर कोर्ट ने क्या क्या कहा वो भी जानेंगे।

केस के मुताबिक आरोपी यूपी का रहने वाला है। उसने शादी का झांसा देकर पीड़िता से शारीरिक संबंध बनाया। उस समय लड़की कक्षा 10 वीं में पढ़ती थी। वादे के मुताबिक शादी नहीं करने और उससे किनारा करने की कोशिश करने से परेशान पीड़िता ने उसके खिलाफ पॉक्सो एक्ट में शिकायत दर्ज कराई थी। मामला दर्ज करने के बाद आरोपी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। साल 2019 में ही डेंटिस्ट ने क्लिनिकली और रेडियोग्राफिक दोनों तरह से पीड़िता की उम्र की जांच के बाद अपनी रिपोर्ट में कहा था कि अक्ल दाढ़ या तीसरी दाढ़ नहीं मिलने के आधार पर उसकी उम्र लगभग 15 से 17 साल हो सकती है। डेंटिस्ट की गवाही के आधार पर निचली अदालत ने आरोपी व्यक्ति को दोषी ठहराया था। आरोपी ने दोषी ठहराए जाने और सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की थी।

दोनों पक्षों की दलीलें क्या थीं वो भी जान लीजिए।

पीड़िता के वकील ने कोर्ट में बताया कि लड़की 19 दिसंबर 2000 को पैदा हुई थी। उसने 25 मार्च 2016 को आरोपी को बताया था कि वो प्रेगनेंट है। उसके बाद से वो पीड़िता का फोन नहीं उठाता था। दरकिनार करने लगा था।

आरोपी ने कबूला कि वो और पीड़िता रिश्ते में थे। वो यही बताने अपने घर यानी यूपी गया था। लेकिन जब वो वापस रायगढ़ लौटा तो लड़की उसे नहीं मिली। वो लड़की से शादी करना और बच्चे को अपनाना चाहता था, लेकिन तब तक पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया और हालात बदल गए थे।

अक्ल दाढ़ और उम्र के बीच का संबंध भी समझ लेते हैं।

सुनवाई के दौरान जस्टिस प्रभुदेसाई ने कहा कि निचली अदालत ने आरोपी को दोषी ठहराते समय विशेष रूप से उस डॉक्टर की गवाही पर विश्वास किया जिसने जांच के बाद पीड़िता को नाबालिग बताया था।

डॉक्टर ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि उसने जब पीड़िता की जांच की तो उसके मुंह में तीसरी अक्ल दाढ नहीं दिखी। इस आधार पर पीड़िता की उम्र 15 से 17 साल के बीच होने का अनुमान लगाया गया था। सुनवाई के दौरान क्रॉस एग्जामिनेशन में डेंटिस्ट ने स्वीकार किया कि 18 साल की उम्र के बाद भी किसी समय अक्ल दाढ़ निकल सकती है।

अदालत ने मोदी मेडिकल जुरिसप्रूडेंस का जिक्र किया। इसके मुताबिक पहली अक्ल दाढ 12 से 14 साल की उम्र के बीच आती है। जबकि तीसरी अक्ल दाढ 17 से 25 साल के बीच आती है।

आगे कहा कि अक्ल दाढ़ का होना ज्यादा से ज्यादा ये साबित कर सकता है कि व्यक्ति की आयु 17 साल या उससे अधिक है, लेकिन अक्ल दाढ का न होना ये साबित नहीं करत है कि व्यक्ति की आयु 18 साल से कम है।

कोर्ट ने आरोपी को बरी करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष ये साबित नहीं कर पाया कि घटना के समय लड़की नाबालिग थी।



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