पोक्सो एक्ट| घटना के संबंध में बच्‍चों का विवरण महत्वपूर्ण, क्योंकि उन्हें समझ नहीं कि यौन हमला क्या हैः मद्रास हाईकोर्ट

Update: 2023-01-04 07:19 GMT

Madras High Court

मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि पोक्सो मामलों में यह तय करने के लिए कि क्या पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट किया गया है, घटना के संबंध में बच्‍चों की ओर से दिया गया वर्णन बहुत महत्वपूर्ण होता है।

उक्त टिप्पणियों के साथ पीठ ने पोक्सो मामले में एक व्यक्ति पर लगे आरोपों को रद्द करने से मना कर दिया।

जस्टिस पीएन प्रकाश और जस्टिस आनंद वेंकटेश की पीठ ने कहा कि बच्चे के दृष्टिकोण से यौन हमले को केवल शारीरिक हमले के रूप में नहीं देखा जा सकता है क्योंकि बच्चे को यह समझ नहीं होती कि यौन हमला क्या है। इसलिए अदालतों एक निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए अपराध के विवरण को देखना होगा।

पृष्ठभूमि

मामले में लगभग 6 वर्ष एक बच्ची के साथ यौन शोषण किया गया था। वह एक मंदिर के पास खेल रही थी, जब अपीलकर्ता चॉकलेट के बहाने उसे बहला फुसला कर पास की इमारत में ले गया। उसने वहां उसके अंतःवस्त्र उतार दिए और उस पर पेनेट्रेटिव सेक्‍सुअल असॉल्ट किया। इसके बाद अपीलकर्ता ने बच्चे को घटना के बारे में किसी को न बताने की धमकी दी।

जब बच्चे की मां को घटना के बारे में पता चला तो उन्होंने पुलिस से शिकायत की और पोक्सो एक्ट की धारा 5 (एम) और 6, आईपीसी की धारा 376-एबी, 294 (बी) और 506 (आई) के तहत अपीलकर्ता और उसकी बहन के खिलाफ एफआईआर दर्ज की।

तथ्यों के विश्लेषण के बाद निचली अदालत ने अपीलकर्ता के खिलाफ आरोपों को उचित संदेह से परे माना, हालांकि अपीलकर्ता की बहन को सभी आरोपों से बरी कर दिया।

अपीलकर्ता ने दलील दी कि उसने पीड़िता की मां को एक अन्य व्यक्ति के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया था, जिसके बाद उसके खिलाफ झूठा मामला दर्ज कराया गया है।

उसने आगे कहा कि पीड़िता के बयानों से भी उसके खिलाफ केवल पोक्सो एक्ट की धारा 7 के तहत यौन उत्पीड़न का अपराध तय किया जा सकता है, उसने पेनेट्रेटिव असॉल्ट का कोई सबूत नहीं दिया है। यह भी कहा गया कि घटना किसी सार्वजनिक स्थान पर नहीं हो सकती, इसलिए अभियोजन का पूरा मामला अविश्वसनीय है।

अभियोजन पक्ष ने हालांकि तर्क दिया कि पीड़िता की गवाही स्वाभाविक है और उसकी मां की गवाही उसके बयानों की पुष्टि करती है। इसके अलावा, चूंकि अपीलकर्ता खुद को निर्दोंष साबित करने के दायित्व का निर्वहन करने में विफल रहा है, इसलिए अदालत को यह मानना होगा कि अपराध किया गया है।

अदालत ने कहा कि पीड़िता केवल 6 साल की है। वह इतनी परिपक्व नहीं है कि अपने बयान में कुछ जोड़े या कुछ घटाए, विशेषकर जब मामले में यौन उत्पीड़न शामिल हो। पीड़िता ने आरोपी की पहचान भी की है। इस प्रकार अदालत ने पीड़िता के साक्ष्य को विश्वसनीय पाया।

कोर्ट ने कहा,

पीड़िता ने स्पष्ट रूप से कहा कि अपीलकर्ता ने अपना लिंग पीड़िता की योनि पर रख दिया था। पोक्सो एक्ट की धारा 3 के अनुसार, लिंग का योनि में प्रवेश करना आवश्यक नहीं है। इस प्रकार, पीड़िता के साक्ष्य स्पष्ट रूप से पोक्सो एक्ट की धारा 3 (ए) की आवश्यकता को पूरा करते हैं।

अदालत ने अपीलकर्ता की दलील से असहमति जताई कि घटना में केवल धारा 7 के तहत अपराध तय किया जा सकता है।

अदालत ने कहा कि धारा 7 को केवल हाथ से छूने के रूप में समझा जा सकता है और इस प्रकार, अपीलकर्ता द्वारा किया गया अपराध धारा 7 के दायरे से बाहर चला गया है।

यह देखते हुए कि अपीलकर्ता के खिलाफ आरोप संदेह से परे साबित हुए, अदालत ने सजा में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और अपील खारिज कर दी।

केस टाइटल: मणिकंदन बनाम राज्य

साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (Mad) 1

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