कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका, 'एंटी-सीएए प्ले' पर नाबालिग छात्रों से पूछताछ करने के मामले में पुलिस के खिलाफ कार्रवाई की मांग
कर्नाटक हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर नागरिकता संशोधन अधिनियम से संबंधित एक नाटक के संबंध में शाहीन एजुकेशन सोसायटी, बीदर के नाबालिग छात्रों से अवैध रूप से पूछताछ करने के मामले में पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है।
याचिका वकील नयना ज्योति झावर और दक्षिण इंडिया सेल फॉर ह्यूमन राइट्स एजुकेशन एंड मॉनिटरिंग ने दायर की है और कहा है कि लगभग 85 बच्चे, जिनमें से कुछ 9 वर्ष से कम उम्र के हैं, उनसे पुलिस ने पूछताछ की थी। इससे बच्चों के लिए माहौल बहुत प्रतिकूल हो गया है और बच्चों के मानसिक मनोविज्ञान पर असर पड़ा है।
यह था मामला
शाहीन एजुकेशन सोसायटी ने 4,5 और 6 कक्षा के छात्रों के साथ पिछले महीने सीएए और एनआरसी पर एक नाटक का मंचन किया था। इसके परिणामस्वरूप, कार्यकर्ता नीलेश रक्शा की एक शिकायत के आधार पर, ''राष्ट्रीय-विरोधी गतिविधियों'' और संसदीय कानूनों के बारे में ''नकारात्मक राय फैलाने'' के लिए स्कूल अधिकारियों के खिलाफ बीदर न्यू टाउन पुलिस स्टेशन में एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
प्राथमिकी के आधार पर स्कूल की हेडमिस्ट्रेस, साथ ही एक बच्चे के माता-पिता को गिरफ्तार किया गया था। जबकि, पुलिस इस पर भी नहीं रुकी और बच्चों से पूछताछ करने के लिए स्कूल परिसर के भीतर चली गई।
याचिका में खुलासा किया गया है कि पुलिस अधिकारी अपनी पुलिस की वर्दी में स्कूल में चले गए और अपने विवेक के आधार पर छात्रों का चयन किया। फिर इन छात्रों को स्कूल परिसर के भीतर ही एक अलग कमरे में पूछताछ के लिए ले जाया गया।
दलील में कहा गया है कि पुलिस की कार्रवाई कानून के नियम व साथ में सीआरपीसी, किशोर न्याय अधिनियम और संवैधानिक मानदंडों के विभिन्न प्रावधानों का खुला उल्लंघन है।
याचिका में कहा गया है कि-
''प्रतिवादी पुलिस ने कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का उल्लंघन करते हुए बिदर की शाहीन एजुकेशन सोसायटी के छात्रों और प्रशासन से पूछताछ की, जिसमें किशोर न्याय अधिनियम, 2015 और नियम 2016 के साथ-साथ दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के प्रावधानों और सबसे महत्वपूर्ण रूप से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन भी शामिल है, क्योंकि इन छात्रों से पूछताछ माता-पिता या शिक्षकों की अनुपस्थिति में की गई और उनकी सहमति के बिना, वीडियो रिकॉर्ड किए गए।''
यह आरोप लगाया गया है कि अधिकारियों ने संविधान के अनुच्छेद 39 (ई) और (एफ) का उल्लंघन किया है। जबकि यह अनुच्छेद राज्य को ,स्वस्थ तरीके से और स्वतंत्र व गरिमापूर्ण स्थितियों में बाल विकास की सुविधा देने के लिए बाध्य करता है।
उन्होंने यह भी कहा है कि अधिकारियों ने प्रथम दृष्टया सीआरपीसी की धारा 160 का भी उल्लंघन किया है क्योंकि उक्त धारा के परंतुक के अनुसार किसी भी पुरुष व्यक्ति (15 वर्ष से कम या 65 वर्ष या उससे अधिक या एक महिला या एक मानसिक या शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्ति ), को पूछताछ के लिए उसके निवास स्थान के अलावा किसी भी अन्य स्थान पर उपस्थित होने की आवश्यक नहीं होगी।
इसके अलावा, जेजे एक्ट की धारा 107 में राज्य द्वारा एक विशेष किशोर पुलिस इकाई के निर्माण का प्रावधान है,जो बच्चों से संबंधित पुलिस के सभी कार्यों में समन्वय कर सकें।
इसी बीच न्यायालय से आग्रह किया गया है कि, वह 2005 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा 'जस्टिस इन मैटर इन्वाल्विंग चाइल्ड एंड विटनेस ऑफ क्राइम(बाल पीड़ितों और अपराध के गवाह को शामिल करने वाले मामलों में न्याय) ' के मामले में जारी दिशानिर्देशों के अनुरूप आपराधिक कार्यवाही में नाबालिगों से जांच या पूछताछ करने के संबंध में दिशानिर्देश जारी करे।
उन्होंने मांग की है कि उन छात्रों के अभिभावकों को मुआवजा दिलाया जाए,जिनसे अवैध रूप से पूछताछ की गई है।
याचिकाकर्ताओं ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि पुलिस की ज्यादती के पूरे प्रकरण को मीडिया द्वारा रिपोर्ट किया गया था और स्कूल में लगे सीसीटीवी कैमरों में दर्ज फुटेज से इसकी पुष्टि की जा सकती है।
उन्होंने यह भी बताया कि राज्य बाल अधिकार आयोग ने कथित उल्लंघन पर पुलिस अधिकारियों को नोटिस जारी किया था और घटना के बारे में राज्य पुलिस को जारी निर्देशों के बारे में बाल कल्याण समिति को भी लिखा था।
इस मामले पर 14 फरवरी को सुनवाई की जाने की संभावना है। याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता बसवा प्रसाद, मोहम्मद अफ्फ, विनय के श्रीनिवास और सविता ए सिद्दी द्वारा किया जाएगा।