दिल्ली हाईकोर्ट में जिला न्यायालयों में सिविल न्यायाधीशों के आर्थिक क्षेत्राधिकार को बढ़ाने की मांग को लेकर याचिका दायर
दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष मूल मुकदमों के निर्णय के लिए शहर के सभी जिला न्यायालयों में तैनात सिविल जजों के आर्थिक क्षेत्राधिकार को तर्कसंगत वितरण और बढ़ाने की मांग करते हुए एक याचिका दायर की गई।
सिविल जजों का वर्तमान अधिकतम आर्थिक क्षेत्राधिकार रु. तीन लाख है।
अधिवक्ता अमित साहनी द्वारा दायर याचिका में कहा गया कि वर्तमान सिविल जजों को सौंपे गए आर्थिक मूल्य रु. तीन लाख बेहद कम हैं। इससे जजों को "मुश्किल का सामना" पड़ता है, जिन्हें तीन लाख रुपये तक की वसूली के लिए निषेधाज्ञा मुकदमा और पेटीएम मुकदमा का फैसला करना पड़ता है।
याचिका पर एक दिसंबर को सुनवाई होने की संभावना है।
साहनी ने यह भी कहा कि उन्होंने हाईकोर्ट के साथ-साथ दिल्ली सरकार के कानून, न्याय और कानूनी मामलों के विभाग को लिखित अभ्यावेदन दिया है। हालांकि, उस पर निर्णय नहीं लिया गया है।
याचिका में कहा गया,
"यह ध्यान रखना उचित है कि दिल्ली, गुड़गांव, नोएडा, गाजियाबाद और फरीदाबाद के पड़ोस में जिला न्यायालय असीमित आर्थिक क्षेत्राधिकार का आनंद लेते हैं। दिल्ली में जिला न्यायालयों को दिल्ली के आस-पास के क्षेत्रों में जिला अदालतों के साथ समान किया जाना चाहिए, जहां तक आर्थिक क्षेत्राधिकार का संबंध है।"
आगे यह भी कहा गया कि यदि दीवानी न्यायाधीशों के आर्थिक क्षेत्राधिकार को बढ़ाकर रु. 20 से 30 लाख किया जाए। यह जिला और साथ ही अतिरिक्त जिला न्यायाधीशों पर बोझ कम करेगा, क्योंकि ऐसे कुछ मामलों की सुनवाई सिविल न्यायाधीशों द्वारा की जाएगी।
इसके अलावा, याचिका में कहा गया कि आर्थिक क्षेत्राधिकार बढ़ाने से हाईकोर्ट का बोझ भी कम होगा, क्योंकि ऐसे मामलों से उत्पन्न होने वाली अपीलें हाईकोर्ट के बजाय एडीजे या जिला न्यायाधीशों के समक्ष दायर की जाएंगी।
याचिका में आगे कहा गया,
"चूंकि दिल्ली न्यायिक सेवाओं में चुने गए अधिकारी बेहतरीन न्यायिक अधिकारी हैं और अन्य राज्यों के विपरीत दिल्ली जिला न्यायालय में सिविल न्यायाधीश केवल तीन लाख रुपये तक के आर्थिक क्षेत्राधिकार वाले मामलों का फैसला कर रहे हैं, जबकि अन्य राज्यों में सिविल न्यायाधीश असीमित आर्थिक क्षेत्राधिकार का आनंद लेते हैं।"
केस टाइटल: अमित साहनी बनाम एनसीटी ऑफ दिल्ली और अन्य