पत्नी को अग्रिम नोटिस या बिना किसी कारण तलाक-उल-सुन्नत देना असंवैधानिक घोषित करने की मांग को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर

Update: 2021-09-17 06:07 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर मुस्लिम पति के अपनी पत्नी को बिना किसी कारण या अग्रिम नोटिस के किसी भी समय तलाक (तलाक-उल-सुन्नत) देने के "पूर्ण विवेकाधिकार" को मनमाना, शरीयत विरोधी, भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई।

न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने कहा कि याचिका को मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाना चाहिए, क्योंकि यह एक जनहित याचिका की प्रकृति में है।

अधिवक्ता बजरंग वत्स के माध्यम से दायर याचिका में तलाक-उल-सुन्नत द्वारा तलाक के संबंध में जांच और संतुलन के रूप में विस्तृत दिशा-निर्देश या संबंधित कानून की व्याख्या करने के लिए निर्देश देने की भी मांग की गई।

इस आशय का एक घोषणा पत्र जारी करने की भी मांग की गई, क्योंकि मुस्लिम विवाह केवल एक अनुबंध नहीं है बल्कि एक स्टेटस है।

यह याचिका एक 28 वर्षीय मुस्लिम महिला ने दायर की है। उक्त महिला नौ महीने के बच्चे की माँ है। उसे उसके पति ने इस साल अगस्त में तीन तलाक बोलकर छोड़ दिया था।

याचिका में कहा गया,

"याचिकाकर्ता ने दाम्पत्य अधिकारों की बहाली के लिए प्रतिवादी नंबर चार (उसके पति) पर 12.08.2021 को कानूनी नोटिस दिया। जवाब में प्रतिवादी नंबर चार पति ने याचिकाकर्ता को 02.09.2021 को एक कानूनी नोटिस दिया। इस नोटिस में प्रतिवादी नंबर चार पति ने याचिकाकर्ता को 02.08.2021 को तत्काल ट्रिपल तलाक देने से इनकार किया। साथ ही याचिकाकर्ता पत्नी को इस कानूनी नोटिस की प्राप्ति की तारीख से 15 दिनों के भीतर प्रतिवादी नंबर चार पति को तलाक देने के लिए कहा जाता है। प्रतिवादी नंबर दो के परिवार के सदस्य द्वारा सूचित किया गया कि प्रतिवादी नंबर चार पति याचिकाकर्ता को दूसरी शादी के लिए तलाक देने की योजना बना रहा है।"

तलाक उल सुन्नत को प्रतिसंहरणीय (रिकवरेबल) तलाक भी कहा जाता है। इसके तहत एक बार में पति-पत्नि अलग नहीं हो जाते हैं। उनके बीच हमेशा समझौता होने की संभावना बनी रहती है।

याचिकाकर्ता महिला के वकील को सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि अगले हफ्ते चीफ जस्टिस की बेंच उनके आदेश पर इस मामले पर विचार करेगी।

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