विधानसभा चुनावों के दौरान प्लास्टिक के अंधाधुंध उपयोग पर जनहित याचिका: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने आज भारत के चुनाव आयोग, उत्तर प्रदेश राज्य, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, अन्य लोगों को विधानसभा चुनाव के दौरान प्लास्टिक के अंधाधुंध उपयोग के संबंध में दायर जनहित याचिका (पीआईएल) पर नोटिस जारी किया।
न्यायमूर्ति प्रिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने याचिका पर मुख्य निर्वाचन अधिकारी, उत्तर प्रदेश और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भी नोटिस जारी किया है।
याचिका में मुख्य रूप से यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में पीवीसी और अन्य क्लोरीनयुक्त प्लास्टिक-आधारित विज्ञापन उत्पाद जैसे बैनर/होर्डिंग्स/फ्लेक्स/साइनेज/झंडे के निर्माण और उपयोग पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की गई है।
अनिवार्य रूप से, जनहित याचिका पर्यावरणविद्/वकील और गाजियाबाद निवासी आकाश वशिष्ठ द्वारा एडवोकेट सुजीत कुमार के माध्यम से दायर की गई है।
याचिका में राज्य में चल रहे विधानसभा चुनावों में वाणिज्यिक विज्ञापनों के अलावा राजनीतिक होर्डिंग्स / साइनेज / बैनर के लिए पीवीसी / प्लास्टिक के बड़े पैमाने पर अंधाधुंध उपयोग पर चिंता व्यक्त की गई है।
याचिका में पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत प्लास्टिक अपशिष्ट नियमों, ठोस अपशिष्ट नियमों और खतरनाक अपशिष्ट नियमों के गैर-अनुपालन से उत्पन्न होने वाले कानून के महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए गए हैं।
याचिकाकर्ता के लिए एडवोकेट संजय उपाध्याय पेश हुए और तर्क दिया कि पीवीसी और प्लास्टिक, जो अत्यधिक जहरीले और कैंसरजन्य हैं, का उपयोग ईसीआई के कई अनिवार्य आदेशों और संचार, एमओईएफसीसी के आदेशों, सीपीसीबी के दिशानिर्देशों के उल्लंघन में यूपी चुनावों में किया जा रहा है। साथ ही प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम का बी उल्लंघन किया जा रहा है।
उपाध्याय ने न्यायालय के समक्ष तर्क दिया,
"निर्माता पर इन कानूनों के आधार पर निर्धारित विस्तारित जिम्मेदारी के बावजूद, सरकारी एजेंसियों द्वारा जमीनी स्तर पर नियमों का अनुपालन नहीं किया जाता है। यह एक बड़ा मुद्दा है जिसे संबोधित करने की आवश्यकता है। यह अदालत एक मजबूत संदेश दे सकती है।"
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रतिवादियों को अपना जवाब दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया है।
केस का शीर्षक - आकाश वशिष्ठ बनाम यूपी राज्य