मुस्लिम कानून के तहत लड़कियों की शादी की उम्र के खिलाफ याचिका: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने केंद्र, राज्य सरकार को जवाब दाखिल करने का आखिरी मौका दिया

Update: 2022-10-21 03:38 GMT

उत्तराखंड हाईकोर्ट

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने मुस्लिम कानून के तहत लड़कियों की शादी की उम्र पर सवाल उठाने वाली जनहित याचिका (पीआईएल) में राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार को अपना जवाब दाखिल करने का आखिरी मौका दिया है।

कोर्ट ने आदेश दिया,

"अगर जवाबी हलफनामा दायर नहीं किया जाता है, तो अगली तारीख को सचिव, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार और मुख्य सचिव, उत्तराखंड राज्य व्यक्तिगत रूप से अदालत के समक्ष उपस्थित रहेंगे।"

गौरतलब है कि चीफ जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस मनोज के तिवारी की पीठ ने पिछले महीने यूथ बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया की ओर दायर वर्तमान जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया था और मामले को 11 अक्टूबर 2022 को आगे की सुनवाई के लिए पोस्ट किया था।

हालांकि, 11 अक्टूबर को, कोर्ट ने कहा कि किसी भी प्रतिवादी द्वारा कोई जवाबी हलफनामा दायर नहीं किया गया।

कोर्ट ने देखा कि जनहित याचिका (पीआईएल) याचिका में उठाया गया मुद्दा गंभीर प्रकृति का है, इसलिए उच्च न्यायालय ने अंतिम अवसर के रूप में, प्रतिवादियों को चार सप्ताह के भीतर अपने संबंधित जवाबी हलफनामे दाखिल करने का समय दिया और 16 नवंबर 2022 को मामले को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।

संबंधित समाचारों में, इस सप्ताह की शुरुआत में, सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की ओर से दायर याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के हालिया फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें कहा गया था कि एक 16 साल मुस्लिम लड़की शादी कर सकती है।

जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस ओका की पीठ ने इस मुद्दे पर सहायता के लिए सीनियर वकील आर राजशेखर राव को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया।

उत्तराखंड हाईकोर्ट के समक्ष याचिका

जनहित याचिका में यह सुनिश्चित करने के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया तैयार करने के लिए सरकारों को निर्देश देने की मांग की गई है कि जनहित में 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों को उनके धर्म, रीति-रिवाजों और स्थानीय या व्यक्तिगत कानूनों के बावजूद शादी करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

जनहित याचिका विशेष रूप से मुस्लिम कानून के तहत अनुमेय प्रथा को संदर्भित करती है, जिसमें मुस्लिम लड़कियों को 15 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर शादी करने की अनुमति है।

इसके अलावा, याचिका में कहा गया है कि जब एक मुस्लिम लड़की को वैध विवाह में प्रवेश करने की अनुमति दी जाती है, जबकि वह खुद एक बच्ची है, तो गरिमा, शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा के साथ जीने के उसके मूल अधिकार का उल्लंघन होता है, जिसकी गारंटी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा दी गई है।

याचिका में कहा गया है,

"बाल विवाह उनके अधिकारों का उल्लंघन करता है और उन्हें हिंसा, शोषण और दुर्व्यवहार के उच्च जोखिम में डालता है। बाल विवाह बचपन को समाप्त कर देता है। यह शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा के अधिकारों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है जो प्रत्येक नागरिक को भारत के संविधान द्वारा गारंटीकृत है। ये परिणाम न केवल लड़की पर, बल्कि उसके परिवार और समुदाय पर भी प्रभाव पड़ता है।"

याचिका में आगे सवाल किया गया है कि क्या मुस्लिम लड़की को 18 साल की उम्र से पहले शादी करने की अनुमति देने से "बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006" और "यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम 2012" जैसे कानूनों का उल्लंघन होगा और यह संवैधानिक नैतिकता के खिलाफ भी होगा।

याचिका में यह भी कहा गया है कि एक लड़की की शादी की कानूनी उम्र 18 साल है। हालांकि याचिका में कहा गया है, हमारी अदालतों ने कई फैसलों में यह माना कि कि 15 साल की मुस्लिम लड़की शादी कर सकती है।

इस संबंध में, याचिका में गुलाम दीन एंड अन्य बनाम पंजाब राज्य एंड अन्य के मामले का उल्लेख किया गया था, जिसमें पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक जोड़े को सुरक्षा प्रदान की थी, जिन्होंने अपने परिवारों की इच्छा के विरुद्ध विवाह किया था, जहां मुस्लिम लड़की 16 साल की थी।

याचिका में कहा गया है,

"क्योंकि मुस्लिम पर्सनल लॉ एक लड़की को उसकी सहमति से 15 साल की उम्र में शादी करने की इजाजत देता है। यहां मुख्य सवाल यह उठता है कि "सहमति वैध है या नहीं? 15 साल की बच्ची होने के नाते वह इतनी परिपक्व नहीं है कि शादी के बाद के प्रभावों को समझ सके। शादी के साथ बहुत सारी जिम्मेदारियां आती हैं जिन्हें एक बच्चा कभी नहीं समझ सकता। हमारे समाज में लड़कियों के साथ एक सामान की तरह व्यवहार किया जाता है और यह एक कड़वी सच्चाई है। माता-पिता सोचते हैं कि लड़की की शादी करना उन पर सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। क्योंकि लड़की की उम्र अप्रासंगिक है, वे आसानी से अपनी बेटी को शादी के लिए प्रभावित कर सकते हैं।"

याचिका में इस बात पर जोर दिया गया है कि बाल विवाह के मुद्दे से निपटने के लिए तुरंत कुछ प्रभावी कदम उठाना सरकार का कर्तव्य है।

याचिका में प्रार्थना है कि बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक, 2021 को अधिनियम में बदलने की प्रक्रिया में तेजी लाई जानी चाहिए और अधिनियम को यथाशीघ्र लागू किया जाना चाहिए।

केस टाइटल - यूथ बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एंड अन्य

आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें:




Tags:    

Similar News