नग्नता और राष्ट्रीय ध्वज का अनादर दिखाने वाली तस्वीर; प्रथम दृष्टया मामला तब बनता है जब आरोपी एडमिन बना रहा और व्हाट्सएप ग्रुप नहीं छोड़ा: एमपी हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि जब आरोपी ने उस व्हाट्सएप ग्रुप को नहीं छोड़ा, जहां आपत्तिजनक सामग्री शेयर की गई और ग्रुप एडमिन के रूप में बना रहा। इस तरह के कारण उसके खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला स्थापित करने के लिए पर्याप्त होंगे।
जस्टिस प्रेम नारायण सिंह की एकल न्यायाधीश पीठ ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124ए, 153ए और 295ए, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67ए और धारा 4 सपठित महिलाओं का अश्लील प्रतिनिधित्व (निषेध) अधिनियम, 1986 की धारा 6 के तहत तहत अपराधों के लिए दायर एफआईआर रद्द करने के लिए आरोपी की याचिका स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
अदालत ने चित्रेश कुमार चोपड़ा बनाम राज्य दिल्ली सरकार (एनसीटी) (2009) और अमित कपूर बनाम रमेश चंदर (2012) का हवाला देते हुए कहा,
"इस संबंध में आईपीसी की धारा 33 में कहा गया कि "शब्द "कार्य" एकल कार्य के रूप में कार्यों की श्रृंखला को भी दर्शाता है: "चूक" शब्द एकल चूक के रूप में चूक की श्रृंखला को भी दर्शाता है। इस तरह चूंकि याचिकाकर्ता ने व्हाट्सएप ग्रुप नहीं छोड़ा और एडमिन के रूप में ग्रुप में बना रहा। इस तरह उसके खिलाफ किए गए उपरोक्त अपराधों के संबंध में प्रथम दृष्टया मामला बनता है।”
आरोपी पर व्हाट्सएप ग्रुप का एडमिन होने का आरोप लगाया गया, जहां कथित तौर पर हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को भड़काने के लिए राष्ट्रीय ध्वज के साथ महिला की नग्न तस्वीर शेयर की गई।
यह अंततः अदालत के आदेश में नोट किया गया,
“आरोप तय करने के समय अदालत को प्रथम दृष्टया यह जांचना होगा कि क्या आरोपी के खिलाफ आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त आधार है। फिर भी, न्यायालय से इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए निष्कर्षों का मूल्यांकन या विश्लेषण करने की अपेक्षा नहीं की जाती है कि अभियोजन द्वारा प्रस्तुत सामग्री आरोपी को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त है या नहीं? मौजूदा मामले में आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामले के संबंध में ट्रायल कोर्ट के निष्कर्ष अचूक प्रतीत होते हैं।”
इंदौर में बैठी पीठ ने यह भी कहा कि पुनर्विचार अदालत के रूप में हाईकोर्ट का क्षेत्राधिकार सीमित है। अदालत ने सारंगपुर सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश के बारे में कहा, केवल 'न्यायसंगत विचारों' के कारण पुनर्विचार अदालत के पास मामले पर पुनर्विचार करने और नियमित तरीके से अलग आदेश पारित करने की कोई शक्ति नहीं है।
अपराध को अंजाम देने में कथित तौर पर शामिल मोबाइल फोन आरोपी/याचिकाकर्ता से जब्त कर लिया गया। फोटो को व्हाट्सएप ग्रुप पर 14.02.2018 को साझा किया गया, जबकि मोबाइल फोन 16.02.2018 को आरोपी/याचिकाकर्ता के कब्जे से जब्त किया गया।
हाईकोर्ट के समक्ष राज्य की ओर से उपस्थित एडिशनल एडवोकेट ने तर्क दिया कि आरोपी को अपराधों के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है. क्योंकि उसने ग्रुप नहीं छोड़ा और आपत्तिजनक तस्वीरें देखने के बाद भी ग्रुप में बना रहा, भले ही यह मान लिया जाए कि वह अन्य ग्रुप एडमिन के चैट छोड़ने के बाद डिफ़ॉल्ट रूप से ग्रुप एडमिन बन गया।
बदले में याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि एफएसएल रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि फोन चालू स्थिति में नहीं था। हालांकि, चूंकि एफएसएल रिपोर्ट ने यह स्पष्ट नहीं किया कि जिस दिन व्हाट्सएप पिक शेयर की गई, उस दिन फोन चालू स्थिति में था या नहीं, अदालत ने कहा कि आरोप तय करने के चरण में इस तरह के बचाव पर विचार नहीं किया जा सकता। उड़ीसा राज्य बनाम देबेंद्रनाथ पाधी (2004) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि आरोप तय करने के चरण में 'घूमने और मछली पकड़ने की जांच की अनुमति नहीं है।'
एडिशनल एडवोकेट जनरल ने भी मोहम्मद इमरान मलिक बनाम यूपी राज्य और अन्य (2022 लाइव लॉ (एबी) 83) पर भरोसा किया, जहां सीआरपीसी की धारा 482 के तहत आवेदन हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की 'ग्रुप एडमिन' और उस ग्रुप के को-एक्सटेंसिव मेंबर के रूप में स्थिति के आधार पर खारिज कर दिया, जहां आपत्तिजनक फोटो शेयर की गई थी।