माता-पिता का निर्धारण करने के लिए डीएनए टेस्ट का आदेश नहीं दिया जा सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2022-08-19 05:30 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि अदालत निश्चित रूप से डीएनए टेस्ट का आदेश नहीं दे सकती। इस कारण डीएनए टेस्ट का आदेश देने की प्रार्थना की अनुमति नहीं दी जा सकती। हालांकि, वर्तमान मामले में प्रतिवादी के माता-पिता के बारे में पूछताछ की जा सकती है।

जस्टिस अलका सरीन की पीठ ने आगे कहा कि अपनी याचिका के समर्थन में सबूत जोड़कर अपने मामले को साबित करने का बोझ पक्षकार पर है। अदालत किसी पक्ष को अपने मामले को साबित करने के लिए मजबूर नहीं कर सकती (डीएनए टेस्ट से गुजरना) जैसा कि मुकदमा लड़ने वाले पक्ष ने सुझाव दिया है।

अदालत भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें उक्त आदेश को चुनौती दी गई, जिसके तहत ट्रायल कोर्ट ने याचिकाकर्ता के ब्लड सैंपल की तुलना में प्रतिवादी के माता-पिता का पता लगाने के लिए प्रतिवादी का डीएनए टेस्ट कराने के लिए याचिकाकर्ता के आवेदन को खारिज कर दिया था।

वर्तमान मुकदमे के लिए प्रासंगिक संक्षिप्त तथ्य यह है कि प्रतिवादी सुखदेव सिंह और दिवंगत जीत कौर की बेटी होने का दावा किया गया है। इस तथ्य की घोषणा के लिए मुकदमा दायर किया गया कि वह उनकी 1/4 हिस्से की जमीन की मालिक है। इस मुकदमे में प्रतिवादी सुखदेव सिंह और प्रतिवादी-याचिकाकर्ता (सुखदेव सिंह के पुत्र) है, जिसने प्रतिवादी के सुखदेव सिंह और जीत कौर की बेटी होने के तथ्य से इनकार किया।

सुखदेव सिंह और प्रतिवादी-याचिकाकर्ता (सुखदेव सिंह के बेटे) ने वादी-प्रतिवादी का डीएनए टेस्ट कराने के लिए ट्रायल कोर्ट में आवेदन दायर किया, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया। पुन: डीएनए टेस्ट कराने के संबंध में दो आवेदन दाखिल किए गए। उन्हें भी खारिज कर दिया गया।

वर्तमान मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करने के बाद अदालत ने कहा कि प्रतिवादी-याचिकाकर्ता वादी-प्रतिवादी को वर्तमान मामले के समर्थन में सबूत पेश करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते, जो उसके द्वारा स्थापित किया गया है, क्योंकि सबूत जोड़कर अपने मामले को साबित करने का बोझ उनकी याचिका के समर्थन में मुकदमेबाजी करने वाले पक्ष पर है।

डीएनए टेस्ट के संबंध में कानून अच्छी तरह से स्थापित है। वर्तमान मामले में पक्षकारों ने न्यायालय में अपने-अपने पक्ष के समर्थन में साक्ष्य प्रस्तुत किए। प्रतिवादी-याचिकाकर्ता द्वारा स्थापित मामले के समर्थन में सबूत पेश करने के लिए वादी-प्रतिवादी को बाध्य नहीं कर सकते।

कोर्ट ने आगे कहा कि वह किसी पक्ष को मुकदमा लड़ने वाले पक्ष द्वारा सुझाए गए तरीके से अपना मामला साबित करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता। इसलिए, डीएनए टेस्ट का आदेश देने के लिए प्रार्थना की अनुमति नहीं दी जा सकती।

मुकदमेबाजी करने वाले पक्ष पर अपनी याचिका के समर्थन में सबूत जोड़कर अपने मामले को साबित करने का बोझ है। अदालत किसी पक्ष को अपने मामले को साबित करने के लिए मजबूर नहीं कर सकती, जैसा कि मुकदमा लड़ने वाले पक्ष द्वारा सुझाया गया है।

कोर्ट ने आगे अशोक कुमार बनाम राज गुप्ता और अन्य के फैसले पर भरोसा किया और यह माना कि प्रतिवादी-याचिकाकर्ता वादी-प्रतिवादी का डीएनए टेस्ट कराने का आदेश प्राप्त करने के लिए प्रथम दृष्टया मजबूत मामला बनाने में विफल रहा है।

कोर्ट ने आगे कहा कि ट्रायल कोर्ट ने कानून के अनुसार आवेदन का फैसला किया और उसके अधिकार क्षेत्र के प्रयोग में कोई अवैधता नहीं है।

तद्नुसार वर्तमान याचिका खारिज कर दी गई।

केस टाइटल: सुखदेव सिंह और अन्य बनाम जसविंदर कौर

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