क्षेत्राधिकार का ध्यान दिए बिना दायर याचिका रद्द करते हुए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में मुंबई की एक कंपनी के निदेशकों से मुकदमे की लागत वसूलने का आदेश दिया। निदेशक अपने खिलाफ पारित अयोग्यता आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में पेश हुए थे, जिनका मकसद, अधिकार क्षेत्र की परवाह किए बिना, हाईकोर्ट की ओर से तय एक मिसाल का लाभ लेना था।
जस्टिस अलका सरीन की सिंगल-जज बेंच ने कहा कि न तो याचिकाकर्ता पंजाब, हरियाणा या चंडीगढ़ के निवासी हैं और न ही वह कंपनी, जिसके निदेशक के रूप में उन्हें कार्य करने के लिए अयोग्य ठहराया गया है, यहां पंजीकृत है। उन्होंने कहा कि कार्रवाई का कोई भी कारण, पूर्णतया या आंशिक रूप से, उनकी अदालत के अधिकार क्षेत्र में पैदा नहीं हुआ है। याचिकाकर्ताओं ने उनके अधिकार क्षेत्र का, उनकी अदालत की ओर से पारित एक अंतरिम आदेश का "लाभ लेने के लिए" उपयोग किया है।
कोर्ट ने कहा कि रिट याचिका "स्पष्ट रूप विचार योग्य" नहीं है और याचिकाकर्ताओं का फोरम शॉपिंग का प्रयास अदालत के "अधिकार क्षेत्र का दुरुपयोग" है। कोर्ट ने याचिका को रद्द करते हुए, याचिकाकर्ताओं को एक लाख रुपए पीएम केयर्स फंड में जमा करने का आदेश दिया।
पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ताओं को सक्षम अधिकारियों की ओर से मुंबई स्थित एक कंपनी में निदेशक के रूप में कार्य करने से अयोग्य घोषित कर दिया गया था। पूरा मामला मुंबई शहर की सीमा के भीतर हुआ था, फिर भी याचिकाकर्ताओं ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें कहा गया था कि उत्तरदाताओं का कृत्य गुरदीप सिंह और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य के मामले में हाईकोर्ट की टिप्पणियों के विपरीत था।
उक्त मामले में, 8 नवंबर, 2017 को एक अंतरिम आदेश को रद्द करते हुए, हाईकोर्ट ने एक कंपनी के निदेशकों के डीआईएन को सक्रिय / बहाल करने का निर्देश दिया था। यह कहा गया था कि कानून वित्तीय स्टेटमेंट को दर्ज करने या निर्धारित समय सीमा में कंपनी रजिस्ट्रार के समक्ष वार्षिक रिटर्न दाखिल करने में विफलता की स्थिति में दंड का प्रावधान करता है।
हालांकि, डीआईएन को निष्क्रिय करने का कोई प्रावधान नहीं है।
मौजूदा मामले में उत्तरदाताओं ने अदालत को बताया था कि यह मामला उसके अधिकार क्षेत्र से परे है और रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज, पंजाब और चंडीगढ़ को याचिकाकर्ताओं ने चालाकी से, केवल पंजाब को अधिकार क्षेत्र बनाने के लिए, एक पार्टी के रूप में पेश किया है।
परिणाम
कोर्ट ने देखा कि याचिकाकर्ता यह दिखाने में असमर्थ थे कि "कार्रवाई के कारण का कौन सा हिस्सा इस न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के भीतर पैदा हुआ है। वर्तमान रिट याचिका में यह भी नहीं बताया गया है कि कार्रवाई का कारण कैसे इस न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में पैदा हुआ है।"
कोर्ट ने दोहराया,
"संविधान का अनुच्छेद 226, स्पष्ट शब्दों में, हाईकोर्ट को एक रिट याचिका पर सुनवाई का अधिकार देता है, यदि उक्त रिट याचिका के उत्तरदाताओं के खिलाफ ऐसी रिट याचिका दायर करने के लिए कार्रवाई का कारण पूर्ण या आंशिक रूप से हाईकोर्ट के क्षेत्राधिकार के भीतर पैदा हुआ है।"
पीठ ने यह देखते हुए कि उसके अधिकार क्षेत्र को लागू करने का कोई आधार नहीं है", कहा,
"वर्तमान रिट याचिका CWP. No.24977 ऑफ 2017 'गुरुदीप सिंह और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य में इस न्यायालय की ओर से पारित अंतरिम आदेश (एनेक्जर पी -7) का लाभ प्राप्त करने के लिए दायर की गई लगती है...हालांकि इस हाईकोर्ट के समक्ष रिट कार्यवाही की शुरुआत स्पष्ट रूप से अनावश्यक और अधिकार क्षेत्र का दुरुपयोग है।
कोर्ट ने कहा कि उपरोक्त तथ्यों के मद्देनजर, वर्तमान रिट याचिका अनुकरणीय लागत के साथ खारिज करने की पात्र है। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को पीएम-केयर्स फंड एक लाख रुपए जमा करने का आदेश देते हुए याचिका खारिज़ कर दी।
कोर्ट ने ओएनजीसी बनाम उत्पल कुमार बसु, (1994) 4 एससीसी 711 मामले में दिए गए फैसले पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने आगाह किया था कि किसी भी न्यायालय द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र से परे जाना संस्था की गरिमा को कम करता है।
मामले का विवरण:
केस टाइटिल: विजय गोवर्धनदास कालन्त्री और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य।
केस नं .: CWP No. 11209/2020 (O & M)
कोरम: जस्टिस अलका सरीन
प्रतिनिधित्व: एडवोकेट मुकुल गोयल (याचिकाकर्ता के लिए); स्टैंडिंग काउंसिल भुवन वत्स (यूनियन ऑफ इंडिया के लिए)
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