न्यायपालिका में भरोसा नहीं करने वालों की निंदा की जानी चाहिए और उन पर कड़ाई से अंकुश लगाया जाना चाहिए: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2021-11-16 14:28 GMT

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने बिना सहमति के किए गए स्‍थानांतरण के एक आदेश को रद्द करने से इनकार कर दिया है। मामले में याचिकाकर्ता ने स्‍थानांतरण रुकवाने के लिए एक राजनेता से मुलाकात की थी, जिसके बाद कोर्ट ने यह मानते हुए कि यााचिकाकर्ता को न्यायिक प्रणाली में विश्वास नहीं है, उसे राहत देने से इनकार कर दिया।

कोर्ट ने कहा कि उसने अपने स्थानांतरण आदेश को रद्द कराने के लिए 'अतिरिक्त-संवैधानिक साधनों' का सहारा लिया है। कोर्ट ने कहा, "जिन लोगों को न्यायपालिका में भरोसा नहीं है, उनकी आलोचना की जानी चाहिए और उन पर कठोरतापूर्वक लगाम लगाई जानी चाहिए।"

जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने कहा, "न्यायपालिका में आम जनता का भरोसा बनाए रखना आवश्यक है, ऐसा न करने पर यह अपना सम्मान खो देगी।"

मामला

कोर्ट के समक्ष एक ऐसा मामला था, जिसमें कर्मचारी संघों/संगठनों ने स्‍थानांतरण की सिफारिशें की थीं। ऐसी सिफारिशों के खिलाफ कोर्ट के कई आदेशों के बावजूद हिमाचल सड़क परिवहन निगम (एचआरटीसी) के एक कर्मचारी को बिना सहमति के स्थानांतरित करने का आदेश दिया था।

याचिकाकर्ता-दीपक राज शर्मा को अगस्त 2020 में बिना सहमति के रूप में तैनात किया गया था, उसकी सेवाएं अगले ही दिन वापस ले ली गईं थी। जिसके बाद उसने मौजूदा याचिका दायर कर मांग की थी कि उसे प्रभारी चालक की ड्यूटी को जारी रखने की अनुमति दी जाए।

दूसरी ओर, प्रतिवादियों ने दलील दी थी कि सहयोगियों के साथ याचिकाकर्ता का व्यवहार अच्छा नहीं है और उसके खिलाफ यूनियनों ने विशेष रूप से भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने शिकायतें की थीं और इसलिए उससे प्रभारी चालक की ड्यूटी को वापस ले लिया गया था।

अवलोकन

कोर्ट ने शुरू में कहा कि वह प्रतिवादी-निगम में मौजूद घोर अनुशासनहीनता से स्तब्ध है, जहां कर्मचारी संघ या यूनियन के सदस्य अतिरिक्त-संवैधानिक प्राधिकरण के रूप में कार्य कर रहे हैं। वे बिना सहमति के स्‍थानांतरण के लिए सिफारिशें कर रहे हैं, विशेष रूप से वे अपने विरोधियों के साथ ऐसा कर रहे हैं।

याचिकाकर्ता के आचरण पर कोर्ट ने कहा कि वह खुद अपने मकसद को पूरा करने के लिए ड्राइवर और कंडक्टर यूनियन सहित विभिन्न यूनियनों में शामिल रहा है। कोर्ट ने नोट किया कि अगस्त 2019 में उसने अध्यक्ष, भारतीय जनता पार्टी, मंडी से मुलाकात की थी और अनुरोध किया था कि उसे ड्राइवर ड्यूटी पर तैनात किया जाए। याचिकाकर्ता के आचरण पर अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि याचिकाकर्ता को न्यायिक प्रणाली में कोई विश्वास नहीं है।

कोर्ट ने स्थानांतरण के आदेश को रद्द करने से इनकार करते हुए कहा कि अतिरिक्त-संवैधानिक साधनों का सहारा लेने वाले याचिकाकर्ता के लिए कोई जगह नहीं है, उसे न्यायपालिका पर भरोसा नहीं है।

कोर्ट ने पहले के एक आदेश में कहा था कि उसने कर्मचारी संघों द्वारा की गई सिफारिशों पर निगम के कर्मचारियों के स्‍थानांतरण की ऐसी प्रथा पर अंकुश लगाने का आह्वान किया था, फिर भी इस तरह की प्रथाएं बेरोकटोक जारी रहीं।

न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया कि निगम किसी भी कर्मचारी संघ द्वारा निगम के कर्मचारियों के बिना सहमति के स्‍थानांतरण के लिए की गई ऐसी सिफारिशों पर विचार नहीं करेगा या निर्णय नहीं लेगा। इसके साथ ही रिट याचिका का निस्तारण किया गया।

केस शीर्षकः दीपक राज शर्मा बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य

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