पेंशन कार्रवाई का सतत कारण; विलंब के आधार पर बकाया राशि से इनकार नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2022-06-01 06:21 GMT

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि पेंशन का बकाया कोर्ट से विलंब से संपर्क करने के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है, क्योंकि पेंशन कार्रवाई का एक सतत कारण है।

अपीलकर्ता ने अन्य याचिकाकर्ताओं के साथ गोवा स्थित बॉम्बे हाईकोर्ट की पीठ के समक्ष एक रिट याचिका दायर की थी, जिसमें गोवा सरकार (नियोक्ता) द्वारा उन्हें 60 वर्ष के बजाय 58 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त करने की कार्रवाई की आलोचना की गई थी।

गोवा, दमन और दीव पुनर्गठन अधिनियम, जिसके जर‌िए गोवा राज्य और केंद्र शासित प्रदेश दमन और दीव अस्तित्व में आया था, के तहत प्रदान किए गए नियुक्ति के दिन से पहले उन्हें सेवा में शामिल किया गया था।

अपीलकर्ता और अन्य याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि सरकार का अधिनियम पुनर्गठन अधिनियम की धारा 60 (6) का उल्लंघन करता है, जिसके तहत नियत दिन से ठीक पहले लागू सेवा की शर्तों पर विचार किया गया था, इसमें केंद्र सरकार के अनुमोदन के अलावा, इससे पहले नियुक्त कर्मचारियों के नुकसान के लिए परिवर्तन नहीं किया जाएगा।

हालांकि बॉम्‍बे हाईकोर्ट ने सेवानिवृत्ति की आयु 60 वर्ष मानी, लेकिन उसने कोर्ट से संपर्क करने में हुए विलंब पर विचार करते हुए माना कि वे दो अतिरिक्त वर्षों के लिए किसी भी सैलरी/बैक वेजेस के हकदार नहीं होंगे।

यह माना गया कि पेंशन की गणना इस आधार पर की जाएगी कि उन्होंने 60 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक सेवा जारी रखी, लेकिन पेंशन का कोई बकाया भुगतान नहीं किया जाएगा। यहां तक ​​कि संशोधित दरों पर पेंशन भी 01.01.2020 से ही देय होगी।

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की एक खंडपीठ ने हाईकोर्ट के आदेश को इस हद तक खारिज कर दिया कि उसने बकाया पेंशन से इनकार किया है। यह माना गया कि अपीलकर्ता 60 वर्ष की आयु से संशोधित दरों पर पेंशन के हकदार हैं। इसके अलावा, अपीलकर्ता को चार सप्ताह की अवधि के भीतर पेंशन के बकाया का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।

अपीलकर्ता की ओर से पेश एडवोकेट राहुल गुप्ता और गोवा राज्य की ओर से पेश एडवोकेर्ट एडवोकेट रवींद्र लोखंडे की ओर से किए गए निवेदन पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की राय थी कि रिट याचिकाकर्ताओं को दो अतिरिक्त वर्षों की अवधि के लिए किसी भी वेतन से इनकार करने का हाईकोर्ट का निर्णय सही हो सकता था और/या उचित होता यदि वे सेवा में बने रहते।

हालांकि, पेंशन बकाया के संबंध में राहत से इनकार करने का कोई औचित्य नहीं था।

"... जहां तक ​​पेंशन का सवाल है, यह एक सतत कार्रवाई का कारण है। पेंशन के बकाया को अस्वीकार करने का कोई औचित्य नहीं है...। हाईकोर्ट द्वारा संशोधित दरों पर पेंशन से इनकार करने का कोई औचित्य नहीं है और यह केवल एक जनवरी, 2020 से देय है। इन परिस्थितियों में, हाईकोर्ट द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश को पूर्वोक्त सीमा तक संशोधित करने की आवश्यकता है"।

आंशिक रूप से अपील की अनुमति देते हुए कोर्ट ने कहा,

"हाईकोर्ट द्वारा पारित किए गए फैसले और आदेश को पेंशन के किसी भी बकाया से इनकार करने की सीमा तक और यह मानते हुए कि अपीलकर्ता केवल 1 जनवरी, 2020 से संशोधित दरों पर पेंशन का हकदार होगा, रद्द किया जाता है। यह आदेश दिया जाता है कि अपीलकर्ता-मूल रिट याचिकाकर्ता 60 वर्ष की आयु प्राप्त करने की तारीख से संशोधित दरों पर पेंशन का हकदार होगा। अब तदनुसार बकाया राशि का भुगतान अपीलकर्ता को आज से चार सप्ताह की अवधि के भीतर किया जाएगा।"

केस टाइटल: एमएल पाटिल (मृत), लीगल रिप्रजेंटेटिव के माध्यम से बनाम गोवा राज्य और अन्य

साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (एससी) 537

निर्णय पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

सर्विस लॉ- पेंशन - पेंशन कार्रवाई का एक निरंतर कारण है - देरी के आधार पर पेंशन के बकाया को अस्वीकार करने का कोई औचित्य नहीं है।



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