पेंशन अनुच्छेद 300-ए के तहत एक ''संपत्ति'' है और अनुच्छेद 21 के तहत आजीविका का मौलिक अधिकार : बाॅम्बे हाईकोर्ट ने भूतलक्षी रूप से पेंशन काटने के मामले में बैंक पर लगाया 50 हजार रुपये जुर्माना

Update: 2020-08-25 05:00 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक 85 वर्षीय पेंशनभोगी नैनी गोपाल के खाते से 3 लाख रुपये से अधिक की राशि काटने के मामले में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया है। इस मामले में बैंक का कहना था कि सिस्टम में तकनीकी त्रुटि के कारण अक्टूबर 2007 से याचिकाकर्ता के खाते में प्रतिमाह 872 रुपये की राशि अतिरिक्त भेज दी गई थी। न्यायालय ने याचिकाकर्ता को हुई मानसिक पीड़ा और उसके उत्पीड़न के साथ ही मुकदमे के खर्च के रूप में बैंक पर जुर्माना भी लगाया है।

नागपुर पीठ के न्यायमूर्ति आरके देशपांडे और न्यायमूर्ति एनबी सूर्यवंशी की खंडपीठ इस मामले में 85 वर्षीय बुजुर्ग की तरफ से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस बुजुर्ग के खाते से 3.26 लाख रुपये काट लिए गए थे।

पीठ ने कहा कि

''हमें बैंक को यह याद दिलाने की आवश्यकता है कि सेवानिवृत्ति पर कर्मचारियों को देय पेंशन भारत के संविधान के अनुच्छेद 300-ए के तहत एक ''संपत्ति'' है और यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आजीविका का मौलिक अधिकार है। यहां तक ​​कि इस राशि के एक हिस्से की हानि या कटौती भी स्वीकार नहीं की जा सकती है। ऐसी कटौती तभी स्वीकार्य है,जब यह कानून के अधिकार या अनुसार की गई हो।''

केस की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता नैनी गोपाल अक्टूबर 1994 में भंडारा स्थित आर्डनेंस फैक्ट्री से सहायक फोरमैन के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। याचिकाकर्ता की अंतिम बेसिक सैलरी 2675 रुपये थी और उसकी मूल पेंशन 1,334 रुपये थी। 5 वें, 6 वें और 7 वें वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार पेंशन और महंगाई भत्ते में वृद्धि के बाद उसकी मूल पेंशन 25,634 रुपये निर्धारित की गई थी। जिसके लिए याचिकाकर्ता हकदार था और उसके अनुसार उसे भुगतान किया जा रहा था।

याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और उसने 4 दिसंबर, 2019 को उसके पूर्व नियोक्ता के लेखा अधिकारी द्वारा भेजे गए पत्र का हवाला दिया। जिसमें कहा गया था कि 26000 की दर से पेंशन को अधिसूचित करना सही है।

प्रारंभ में, न्यायालय ने बैंक से पूछा था कि क्या भारतीय स्टेट बैंक ने इस मामले में किसी अन्य प्रतिवादी द्वारा जारी निर्देशों के आधार पर कार्रवाई की है या अपनी मर्जी से यह कार्रवाई की है। साथ ही बैंक को चेतावनी दी थी कि यदि यह पाया जाता है कि बैंक की कार्रवाई बिना किसी अधिकार के है तो भारी जुर्माना लगा दिया जाएगा।

हालांकि, अपने जवाब में बैंक ने दावा किया था कि सिस्टम में तकनीकी त्रुटि के कारण अक्टूबर 2007 से याचिकाकर्ता के खाते में प्रतिमाह 872 रुपये की अतिरिक्त राशि का भगुतान कर दिया गया था। आरबीआई सर्कुलर के क्लॉज (सी) पर भरोसा करते हुए, बैंक ने दावा किया कि उनके पास पेंशनर को किए गए अतिरिक्त भुगतान को वसूलने का अधिकार है। बैंक द्वारा दायर किए गए जवाब में यह भी कहा गया था कि पेंशन बढ़ाने के लिए प्रतिवादी नियोक्ताओं से उनको कोई मेमो नहीं मिला है।

कोर्ट का निर्णय

पीठ ने नोट किया-

''वर्तमान मामले में हमने पाया है कि नियोक्ता यानि सक्षम प्राधिकारी द्वारा कही गई बात बहुत ही स्पष्ट है। उनका साफ कहना है कि याचिकाकर्ता की पेंशन का निर्धारण सही और उचित था। नियोक्ता ने याचिकाकर्ता के दावे का समर्थन किया है और पेंशन में कमी करने या इसकी वसूली के मामले में उनकी कोई भूमिका नहीं है। हमारा विचार है कि प्रतिवादी-बैंक के पास अपने कर्मचारियों के अलावा अन्य कर्मचारियों की पेंशन राशि को तय करने का हक नहीं है। इसलिए, हम मानते हैं कि याचिकाकर्ता की पेंशन को कम करने की बैंक की कार्रवाई अनधिकृत और अवैध है। इसके अलावा बैंक गणना में हुई किसी तकनीकी त्रुटि को प्रदर्शित करने में भी विफल रहा है।''

इसके अलावा, पीठ ने यह भी सवाल किया कि याचिकाकर्ता को इस तरह की पूर्वव्यापी या अतीतलक्षी ढ़ंग से कटौती के लिए कोई सूचना क्यों नहीं दी गई? -

''अगर बैंक को पेंशन के निर्धारण की शुद्धता के बारे में कोई संदेह था, तो उसे नियोक्ता के साथ पत्राचार करना चाहिए था और इस बारे में स्पष्टीकरण प्राप्त करना चाहिए था। कम से कम, अक्टूबर, 2007 से पूर्वव्यापी प्रभाव के साथ की गई प्रस्तावित कटौती के संबंध में याचिकाकर्ता से एक स्पष्टीकरण तो मांगना ही चाहिए था। यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों की न्यूनतम आवश्यकता है।

हमारे विचार में बैंक की पूरी कार्रवाई ही मनमानी, अनुचित, अनधिकृत और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का प्रमुख उल्लंघन है और इसे कायम नहीं रखा जा सकता है।''

कोर्ट ने माना कि बैंक ने इस तरह की कार्रवाई से विश्वास भंग किया है और कहा कि-

''याचिकाकर्ता 85 वर्षीय व्यक्ति है और याचिका के पैरा 5 में बताया गया है कि उस पर मानसिक रूप से विकलांग बेटी की जिम्मेदारी भी है,जिसकी आयु लगभग 45 वर्ष है। जिसे मानसिक और शारीरिक रूप से देखभाल की जरूरत है। वहीं उसे महंगे चिकित्सीय उपचार की भी आवश्यकता होती है। एक वरिष्ठ नागरिक की समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता दिखाने के बजाय, बैंक ने घमंड दिखाया है और याचिकाकर्ता को उसकी पेंशन में से काटी गई राशि के बारे में पता करने के लिए दर-दर भटकने के लिए छोड़ दिया है।''

बैंक के जवाब के अनुसार, 3,26,045 की राशि पहले ही रिकवर की जा चुकी है और 42,042 की शेष राशि की वसूली प्रस्तावित है। इसी का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा-

''इसलिए, हमें बैंक को निर्देश देने की आवश्यकता है कि वह याचिकाकर्ता को उसके पेंशन खाते में 3,26,045 की राशि वापस करें। जिस पर 18 प्रतिशत की दर से ब्याज भी दिया जाए। यह ब्याज उसके खाते से राशि काटने की तारीख से लेकर उसके खाते में राशि वापिस जमा कराने की तारीख के बीच की अवधि पर दिया जाए। हम बैंक को याचिकाकर्ता के पेंशन खाते से 4,2,042 रुपये की शेष राशि वसूलने से भी रोक रहे हैं। इतना ही नहीं बैंक को इस याचिका के खर्च, मानसिक पीड़ा और उत्पीड़न के लिए याचिकाकर्ता को 50,000 रुपये का जुर्माना या लागत भी देनी होगी। जुर्माने की राशि आठ दिन की अवधि के भीतर याचिकाकर्ता को दे दी जाए। अगर इस अवधि में भुगतान नहीं किया गया तो प्रत्येक दिन के हिसाब से एक हजार रुपये का अतिरिक्त जुर्माना लगाया जाएगा।''

इस मामले में पूर्वव्यापी रूप से याचिकाकर्ता के खाते से 'अतिरिक्त' राशि काटने की बैंक की कार्रवाई को खारिज करने से पहले पीठ ने वरिष्ठ नागरिकों की दुर्दशा और उनकी दयनीय स्थिति के बारे में बात की-

''हालांकि, हमने देखा है और इस तथ्य पर न्यायिक ध्यान भी दिया है कि वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा पर हमेशा संकट बना रहता है। हमने देखा है कि वरिष्ठ नागरिक अपने खाते में पेंशन राशि के क्रेडिट होने का उत्सुकता से इंतजार करते हैं और इस पैसे को निकालने के लिए हमेशा कतार में खड़े नजर आते हैं। एक बार जब यह राशि व्यक्तिगत रूप से बैंक या एटीएम से निकाल ली जाती है, तो फिर पिक-पॉकेटिंग और चोरी में शामिल घूमने वाले लोगों से उनके जीवन के लिए एक गंभीर खतरा पैदा हो जाता है।

हमने वास्तव में वृद्ध व्यक्तियों - पुरुषों और महिलाओं को देखा है, जो अपने पैसों को कांपते हुए हाथों से गिनते हैं और अपने कपड़ों की या शरीर की कुछ गोपनीय जगहों पर इस राशि को सुरक्षित रखने की कोशिश करते हैं। इसके बाद वह कुछ समय के लिए बैंक के परिसर में ही इंतजार करते हैं। बाद में माहौल व स्थिति का जायजा लेते हुए व असुरक्षा की भावना के साथ अपने गंतव्य तक पहुंचने का एक सुरक्षित मार्ग चुनते हैं। अब समय आ गया है कि बैंक इस काम के लिए एक अलग सेल बनाए और अपने विश्वसनीय कर्मचारियों के जरिए व्यक्तिगत सेवा प्रदान करने पर विचार करें। ताकि वृद्ध, विकलांग और बीमार वरिष्ठ नागरिकों को उनके घर जाकर ही उनकी पेंशन का भुगतान किया जा सकें। वरिष्ठ नागरिकों के साथ सम्मान और गरिमा के साथ व्यवहार करना होगा। वहीं वरिष्ठ नागरिकों की समस्याओं की संवेदनशीलता पर ध्यान देने की जरूरत है।''

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