पटना हाईकोर्ट ने 5 अप्रैल तक राज्य में एचआईवी मरीजों की कल्याणकारी योजना को लागू करने को कहा

Update: 2021-04-02 08:20 GMT

पटना उच्च न्यायालय ने हाल ही में एचआईवी/एड्स पीड़ितों के कल्याण के लिए सरकारी योजनाओं को लागू नहीं करने पर चिंता जताते हुए बिहार राज्य एड्स नियंत्रण सोसायटी (बीएसएसीएस) से जवाब मांगा।

मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायमूर्ति एस कुमार की खंडपीठ ने 23 मार्च को दिए गए आदेश में कहा कि ये परियोजनाएं अगली तारीख 5 अप्रैल तक लागू होनी चाहिए।

इस संबंध में खंडपीठ ने परियोजना निदेशक, बीएसएसीएस को आदेश दिया कि वह अपने व्यक्तिगत हलफनामे को दायर करें, जिसमें एड्स पीड़ितों के लाभ के लिए अधिसूचित विभिन्न क़ानून, नियमों और योजनाओं की उचित और पूर्ण व्याख्या के लिए समाज द्वारा उठाए गए कदमों का उल्लेख हो।

न्यायालय ने इस उद्देश्य के लिए वैधानिक प्राधिकरणों की नियुक्ति और उन्हें आवंटित धनराशि के बारे में भी एक रिपोर्ट मांगी।

आदेश में कहा गया है,

"श्री मनोज कुमार, परियोजना निदेशक, बिहार एड्स कंट्रोल सोसाइटी (बीएसएसीएस) कानून के प्रावधानों की उचित और पूर्ण व्याख्या के लिए उठाए गए कदमों का उल्लेख करते हुए अपना व्यक्तिगत हलफनामा दायर करेंगे। इसके अलावा, हलफनामें में बिहार राज्य में निकायों, वैधानिक या अन्य संस्थाओं के गठन के संबंध में स्थिति क्या है, जैसा कि अधिनियम / नियमों के तहत परिकल्पित किया गया है, उसका का भी उल्लेख किया जाए। महत्वपूर्ण रूप से बजटीय आवंटन क्या है और क्या राशि का उपयोग किया गया है या नहीं, यह भी हलफनामे में बताया जाएगा। उम्मीद है प्रावधानों / कानून / नियमों के कार्यान्वयन के सभी कदम सुनवाई की अगली तारीख से पहले उठाए जाएंगे।"

सुनवाई के दौरान, परियोजना निदेशक ने न्यायालय को आश्वासन दिया कि वह एमिकस क्यूरी के साथ बैठकर एक चार्ट तैयार करेगा, जिसमें उन प्रावधानों का उल्लेख किया जाएगा, जिन्हें बिहार राज्य में लागू करने की आवश्यकता है। प्रावधानों में राज्य और केंद्र सरकार द्वारा जारी दोनों योजनाएँ शामिल होंगी।

2017 में काउंसिल फॉर प्रोटेक्शन ऑफ पब्लिक राइट्स एंड वेलफेयर द्वारा दायर एक जनहित याचिका में राज्य में एचआईवी रोगियों की संख्या में अचानक वृद्धि पर प्रकाश डाला गया था। कोर्ट को रोगियों की उक्त श्रेणी से निपटने के लिए बुनियादी ढांचे की अपर्याप्तता के बारे में भी बताया गया था।

इसके बाद, एक ओर मामले के 'सार्वजनिक महत्व' और दूसरी ओर राज्य द्वारा दिखाई गई उदासीनता और निष्क्रियता को देखते हुए हाईकोर्ट ने स्थिति की रिपोर्ट मांगी थी। इसने मानव इम्यूनो डेफिशिएंसी वायरस और एक्वायर्ड इम्यून डेफिसिएंसी सिंड्रोम (रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 2017 के उचित कार्यान्वयन की भी मांग की थी।

मामला की अगली सुनवाई अब 5 अप्रैल को होगी।

केस टाइटल: काउंसिल फॉर प्रोटेक्शन ऑफ पब्लिक राइट्स एंड वेलफेयर बनाम भारत संघ और अन्य।

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