पटना हाईकोर्ट ने आय से अधिक संपत्ति मामले में आईपीएस अमित लोढ़ा के खिलाफ एफआईआर रद्द करने से इनकार किया, राज्य को 6 महीने में जांच पूरी करने का निर्देश
पटना हाईकोर्ट ने आईपीएस अधिकारी अमित लोढ़ा के खिलाफ विशेष सतर्कता इकाई (एसवीयू) की ओर से दर्ज आय से अधिक संपत्ति (डीए) मामले से संबंधित एफआईआर को रद्द करने के लिए दायर याचिका खारिज कर दी है। लोढ़ा की ओर से दायर याचिका को रद्द करते हुए कोर्ट ने निर्देश दिया है एसवीयू को छह महीने के भीतर इस मामले की जांच को तार्किक अंत तक ले जाना होगा। अमित लोढ़ा बिहार कैडर के आईपीएस ऑफिसर हैं।
1998 बैच के आईपीएस अधिकारी लोढ़ा, जो वर्तमान में राज्य अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, बिहार, पटना में महानिरीक्षक के पद पर तैनात हैं, ने दिसंबर, 2022 में उनके खिलाफ 7 दिसंबर, 2022 को दर्ज एफआईआर को रद्द करने के लिए अदालत के समक्ष एक आपराधिक रिट याचिका दायर की थी।
जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद ने कहा, “वर्तमान मामले में, अब तक एकत्र किए गए आरोपों और सबूतों के अनुसार, यह तर्क दिया गया है कि याचिकाकर्ता ने 7 करोड़ से अधिक की संपत्ति अर्जित की है, जबकि सभी कानूनी स्रोतों से उनकी कुल अर्जित आय, बिना किसी कटौती के सकल रूप से 2 करोड़ से अधिक नहीं होना चाहिए। मामले की जांच अभी भी लंबित है और एसवीयू ने अपनी रिपोर्ट में बयान दिया है कि जांच में कम से कम छह महीने और लगेंगे।
जस्टिस प्रसाद ने कहा, “मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में, इस न्यायालय को इस रिट आवेदन में कोई योग्यता नहीं मिलती है। मामले की जांच को बाधित करने के लिए इस न्यायालय को किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।”
लोढ़ा ने एफआईआर रद्द करने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। विशेष सतर्कता इकाई, पटना की ओर से सात दिसंबर, 2022 को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 12 के साथ पठित धारा 13(1)(बी) के साथ पठित 13(2) और भारतीय दंड की धारा 120(बी) और 168 के तहत मामला दर्ज किया गया था।
लोढ़ा ने निम्नलिखित तीन आधारों पर रिट याचिका दायर कर एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी-
(i) लगाए गए आरोप याचिकाकर्ता द्वारा किसी संज्ञेय अपराध का गठन नहीं करते हैं;
(ii) एफआईआर और उससे उत्पन्न होने वाली संपूर्ण आपराधिक कार्यवाही, जिसमें इसकी जांच भी शामिल है, दुर्भावना से प्रेरित है और यदि इसे जारी रखने की अनुमति दी गई तो इसके परिणामस्वरूप दुर्भावनापूर्ण मुकदमा चलाया जाएगा;
(iii) आक्षेपित एफआईआर पीसी एक्ट की धारा 17ए के तहत अनिवार्य मंजूरी प्राप्त किए बिना दर्ज की गई है।
याचिकाकर्ता के वरिष्ठ वकील और एसवीयू के वकील को सुनने और रिकॉर्ड का अवलोकन करने के बाद, अदालत ने कहा कि इस मामले में जो जानकारी एफआईआर का हिस्सा थी, वह दर्शाती है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप एक लोक सेवक के रूप में अवैध रूप से संपत्ति अर्जित करने का है।
कोर्ट ने बताया कि यह आरोप लगाया गया है कि फ्राइडे स्टोरी टेलर्स के खाते से एक फिल्म के निर्माण संबंध में अलग-अलग तारीखों पर याचिकाकर्ता की पत्नी कोमुदी लोढ़ा के खाते में पैसे का नियमित लेनदेन हुआ था, जिसके अंतिम लाभार्थि याचिकाकर्ता, उसकी पत्नी और उसके सहयोगी थे।
कोर्ट ने कहा, 'आरोपों की जांच की जा रही है। आरोपों को, बिना कुछ जोड़े या घटाए, अगर वैसे ही लिया जाए, तो यह नहीं कहा जा सकता कि कोई संज्ञेय अपराध नहीं बनेगा।''
न्यायालय ने आगे कहा, “इस स्तर पर, यह न्यायालय एसवीयू के इस तर्क पर विचार करता है कि सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध सरकारी रिकॉर्ड की जांच से पता चलता है कि आरोपी ने बड़ी चल/अचल संपत्ति अर्जित की है, जो आया से कहीं अधिक है और अवैध रूप से अर्जित किया गया है, इस न्यायालय द्वारा समय से पहले मुकदमा चलाकर जांच नहीं की जा सकती है।"
कोर्ट ने बताया कि एक और आरोप है कि याचिकाकर्ता ने एक लोक सेवक होने के नाते अवैध रूप से एक प्रोडक्शन हाउस के साथ निजी व्यापार में प्रवेश किया और भ्रष्ट और अवैध तरीकों से लगभग 49,62,372/- अर्जित किया।
न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि मामला अभी भी जांच के चरण में है और एसवीयू ने इस न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस मामले में तार्किक निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए कम से कम छह महीने और चाहिए।