पटना हाईकोर्ट ने CBI बनाम मीर उस्मान मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद स्पीडी ट्रायल के लिए गाइडलाइंस जारी की
12 दिसंबर 2025 को जारी सर्कुलर में पटना हाईकोर्ट ने सभी ट्रायल कोर्ट को प्रशासनिक निर्देश जारी किए, जिनका मकसद सुनवाई को तेज़ी से पूरा करना है।
यह सर्कुलर CBI बनाम मीर उस्मान मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पालन में जारी किया गया। इसमें साफ तौर पर SLP (Crl.) नंबर 969/2025 (सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेशन बनाम मीर उस्मान @ आरा @ मीर उस्मान अली) में 22 सितंबर 2025 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पैराग्राफ 37 का ज़िक्र है, जिसमें कोर्ट ने हाईकोर्ट को ट्रायल कोर्ट्स के लिए उचित प्रशासनिक गाइडलाइंस जारी करने का निर्देश दिया था।
पटना हाईकोर्ट के सर्कुलर में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय की गई गाइडलाइंस को काफी हद तक दोहराया गया और यह साफ किया गया कि ट्रायल कोर्ट सिर्फ वकीलों की सुविधा के लिए सुनवाई स्थगित नहीं करेंगे, सिवाय कुछ खास परिस्थितियों जैसे कि किसी की मौत होने पर, जिसका सबूत मेमो के साथ दिया गया हो, और वकील की असुविधा को "खास वजह" नहीं माना जाएगा।
इसमें कहा गया कि आरोपी या उनके वकील द्वारा सहयोग न करने के मामलों में कोर्ट को यह जांचना होगा कि क्या ऐसा व्यवहार सुनवाई में देरी करने के इरादे से किया जा रहा है, जहां आरोपी और वकील के बीच मिलीभगत पाई जाती है, वहां लिखित में कारण बताते हुए जमानत रद्द करने का नोटिस जारी किया जा सकता है। जहां आरोपी की कोई गलती नहीं है और रुकावट सिर्फ वकील की वजह से है, वहां कोर्ट एक एमिक्स क्यूरी (न्याय मित्र) नियुक्त कर सकता है और सुनवाई आगे बढ़ा सकता है।
सर्कुलर कोर्ट को आरोपी पर जुर्माना लगाने की भी अनुमति देता है ताकि गवाहों को देरी के कारण हुए खर्च की भरपाई की जा सके। साथ ही, जहां आरोपी गवाहों की मौजूदगी के बावजूद गैर-हाज़िर रहता है, वहां जमानत रद्द की जा सकती है। हालांकि कुछ सीमित सुरक्षा उपाय भी हैं, जहां वकील आरोपी की पहचान के बारे में अंडरटेकिंग देकर क्रॉस एग्जामिनेशन आगे बढ़ा सकता है।