पटना हाईकोर्ट ने मुजफ्फरपुर में मोतियाबिंद के ऑपरेशन के दौरान कई व्यक्तियों के आंख की रौशनी चले जाने के मामले में एसपी को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने के निर्देश दिए
पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) ने मुजफ्फरपुर आई हॉस्पिटल में मोतियाबिंद के ऑपरेशन के दौरान कई व्यक्तियों के आंख की रौशनी चले जाने के मामले में मुजफ्फरपुर के सीनियर एसपी को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।
चीफ जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एस. कुमार की खंडपीठ ने कहा कि हम मुजफ्फरपुर के सीनियर एसपी को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देते हैं कि जांच तेज हो और जल्द से जल्द पूरी हो। इसके साथ ही वह अगली तारीख से पहले नवीनतम स्थिति का उल्लेख करते हुए अपना व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करें।
कोर्ट ने साथ कोर्ट ने मुजफ्फरपुर आई हॉस्पिटल के प्रबंधन को भी जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।
यह जनहित याचिका एक मुकेश कुमार ने दायर की थी, जिसमें आरोप लगाया गया है कि आई हॉस्पिटल के प्रबंधन व राज्य सरकार के अधिकारियों द्वारा बरती गई अनियमितता और गैर-कानूनी कार्यों की वजह से कई व्यक्तियों की आंखों की रौशनी चली गई।
कोर्ट के समक्ष वकील याचिकाकर्ता के वकील वी के सिंह ने प्रस्तुत कि इस मामलें में दर्ज प्राथमिकी पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।
इस याचिका में कोर्ट से हाई लेवल कमेटी से जांच कराने के निर्देश देने की मांग की गई है।
याचिका में आगे यह भी कहा गया है कि जिम्मेदार अधिकारियों व अस्पताल प्रबंधन के विरुद्ध भी एफआईआर दर्ज किया जाना चाहिए, क्योंकि इन्हीं की लापरवाही की वजह से सैकड़ों लोगों को अपनी आंखों की रौशनी खोनी पड़ी।
कोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट ने देखा कि नैदानिक प्रतिष्ठान (पंजीकरण और विनियमन) अधिनियम, 2010 के प्रावधानों के साथ-साथ बिहार सरकार द्वारा बनाए गए "बिहार नैदानिक प्रतिष्ठान (पंजीकरण और विनियमन) नियम, 2013" के अनुसार धारा 12 के तहत गठित प्राधिकरण को अधिनियम की धारा 12 के तहत निर्धारित मानकों को बनाए नहीं रखने के लिए नियम -2 के उप-नियम (ई) के तहत परिभाषित किसी भी नैदानिक प्रतिष्ठान के खिलाफ कार्रवाई करने का पूर्ण अधिकार है।
ऐसे कौन से मानक हैं जिन्हें बनाए रखने के लिए इस तरह के नैदानिक प्रतिष्ठान की आवश्यकता होती है, नियम -2 के उप-नियम (एल) के तहत परिभाषित किया गया है।
उल्लेखनीय रूप से, अधिनियम की धारा 12 के संदर्भ में, केंद्र सरकार ने स्वयं ऐसे मानकों को निर्धारित करते हुए नैदानिक स्थापना केंद्र सरकार नियम, 2012 नामक नियम बनाए हैं।
हमारा यह भी विचार है कि अतिरिक्त मुख्य सचिव, स्वास्थ्य विभाग, बिहार सरकार को विशेषज्ञों की एक नई समिति का गठन करना चाहिए, जिसमें एम्स, पटना, पीएमसीएच, पटना और राजेंद्र नगर अस्पताल, पटना जैसे प्रमुख संस्थानों के डॉक्टर शामिल हों। न केवल मुजफ्फरपुर में तैनात स्थानीय डॉक्टरों द्वारा 29 नवंबर, 2021 को प्रस्तुत की गई रिपोर्ट की समीक्षा करने का कार्य करने के लिए, बल्कि यह भी सुझाव देने के लिए कि उन रोगियों के उचित उपचार को सुनिश्चित करने के लिए आगे क्या कार्रवाई की जानी चाहिए, जिन्होंने अपनी आंखों की रौशनी खो दी है।
बेंच ने इस कमिटी को दो सप्ताह में गठित करने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने कहा कि हम यह भी देखते हैं कि राज्य सरकार ने उन व्यक्तियों को मॉनिटरी रूप से मुआवजा दिया है, जो नेत्र (मोतियाबिंद) ऑपरेशन करने में प्रतिवादी अस्पताल की ओर से कथित लापरवाही के कारण पीड़ित हैं।
हम यह भी देखते हैं कि अधिकारियों ने पहले ही ब्रह्मपुरा पुलिस स्टेशन, मुजफ्फरपुर में 2021 दिनांक 02.12.2021 की एक प्राथमिकी, संख्या 306 दर्ज की है, जिसकी जांच लंबित है।
हमारे विचारपूर्वक विचार करने के बाद, प्रतिवादी प्रतिष्ठान को न केवल रिट याचिका की मांग पर जवाब देना चाहिए, बल्कि एमिकस क्यूरी द्वारा हाइलाइट किए गए मुद्दों पर भी, एक हलफनामे के माध्यम से नियमों के तहत परिभाषित मानकों की पूर्ति के संबंध में सभी वैधानिक प्रावधानों के अनुपालन और अधिक विशेष रूप से इंगित करना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि हमारा यह भी विचार है कि जांच में तेजी लाने की जरूरत है।
इस बात पर बल देते हुए कि नैदानिक प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित शिविर में मोतियाबिंद का ऑपरेशन करने वाले कम से कम 19 व्यक्तियों ने अपनी एक आंख की रोशनी खो दी थी, योग्यता पर कोई राय व्यक्त करना गलत नहीं समझा जा सकता है।
यह जोड़ने की जरूरत नहीं है कि समिति सभी संबंधितों के साथ बातचीत कर सकती है, जिसमें ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर और रिपोर्ट तैयार करने वाले शामिल हैं।
एस.डी. नए जोड़े गए प्रतिवादी की ओर से उपस्थित वरिष्ठ वकील संजय ने कहा कि नए जोड़े गए प्रतिवादी की ओर से प्रतिक्रिया चार सप्ताह के भीतर दायर की जाएगी।
अब मामले की सुनवाई 17 मई, 2022 को होगी।
केस का शीर्षक: मुकेश कुमार बनाम बिहार राज्य