माता-पिता या समाज एक बालिग बच्चे को उनकी शर्तों पर जीवन जीने के लिए मजबूर नहीं कर सकतेः पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने सोमवार (25 जनवरी) को कहा कि माता-पिता अपनी शर्तों पर एक बच्चे को जीवन जीने के लिए मजबूर नहीं कर सकते हैं।
न्यायमूर्ति अलका सरीन की खंडपीठ ने आगे कहा कि केवल इसलिए कि लड़का विवाह योग्य उम्र का नहीं है (हालांकि बालिग) याचिकाकर्ताओं के एकसाथ रहने के अधिकार को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।
इसके अलावा, यह देखते हुए कि ''माता-पिता एक बच्चे को अपनी शर्तों पर जीवन जीने के लिए मजबूर नहीं कर सकते हैं और प्रत्येक वयस्क व्यक्ति को अपने जीवन को उस तरह से जीने का अधिकार है जैसा कि वह उचित समझता है'', हाईकोर्ट ने एक जोड़े के लिव-इन रिलेशनशिप में रहने का अधिकार बरकरार रखा है।
कोर्ट ने कहा कि,
''जाहिर है, वह एक बालिग है। केवल इस तथ्य के कारण कि याचिकाकर्ता नंबर 2 विवाह योग्य उम्र का नहीं है, याचिकाकर्ताओं को संभवतः भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत परिकल्पित उनके मौलिक अधिकारों को अमले में लाने से रोका नहीं किया जा सकता है।''
समाज यह निर्धारित नहीं कर सकता कि किसी व्यक्ति को अपना जीवन कैसे जीना चाहिए। एक व्यक्ति अपना जीवन किस व्यक्ति के साथ बिताना चाहता है,इसका निर्धारण समाज की इच्छाओं के अनुसार नहीं किया जा सकता है। माता-पिता केवल इस डर से अपनी बेटी की पसंद को स्वीकार नहीं करते हैं क्योंकि यह समाज के लिए स्वीकार्य नहीं है।
''दोनों याचिकाकर्ता ने बालिग होने के नाते लिव-इन रिलेशनशिप में साथ रहने का फैसला किया है और संभवतःप्रतिवादियों के पास इस पर आपत्ति जताने का कोई कानूनी कारण नहीं हो सकता है।''
न्यायालय के समक्ष मामला
यह ध्यान दिया जा सकता है कि बेंच एक आपराधिक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी। जिसमें उन्होंने मांग की थी कि निजी प्रतिवादियों से भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले उनके जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा की जाए।
आगे कहा गया कि याचिकाकर्ता (18-वर्षीय लड़की और 19-वर्षीय लड़का) एक-दूसरे को जानते हैं और 18 जनवरी 2021 से लिव-इन रिलेशनशिप में एक साथ रहना शुरू कर चुके हैं (हालांकि लड़के ने विवाह योग्य आयु प्राप्त नहीं की है)।
यह कहा गया था कि उनके संबंध प्रतिवादी नंबर 4 से 8 (लड़की के रिश्तेदार) के लिए स्वीकार्य नहीं हैं और वे याचिकाकर्ताओं को गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दे रहे हैं।
यह भी प्रस्तुत किया गया कि उन्होंने 18 जनवरी 2021 को पुलिस अधीक्षक, जींद को एक प्रतिनिधित्व सौंपा था, हालांकि उन्होंने आरोप लगाया कि इसमें कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
न्यायालय के अवलोकन
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि,
''वह खुद के लिए यह तय करने का अपना अधिकार अच्छी तरह से रखती है कि उसके लिए क्या अच्छा है और क्या नहीं। उसने याचिकाकर्ता नंबर 2 के साथ लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने के लिए एक कदम उठाने का फैसला किया है, जो खुद बालिग है, हालांकि हो सकता है कि याचिकाकर्ता नंबर 2 अभी विवाह योग्य आयु का ना हो। जैसा कि यह हो सकता है, लेकिन यह तथ्य भी सत्य है कि वर्तमान मामले में दोनों याचिकाकर्ता बालिग हैं और अपनी शर्तों पर अपना जीवन जीने का अधिकार रखते हैं।''
महत्वपूर्ण रूप से, न्यायालय ने कहा कि,
''माता-पिता एक बच्चे को अपनी शर्तों पर जीवन जीने के लिए मजबूर नहीं कर सकते हैं और प्रत्येक वयस्क व्यक्ति को अपने जीवन को उस तरह से जीने का अधिकार है जैसा कि वह उचित समझता है। दोनों याचिकाकर्ता ही बालिग हैं और उन्हें कानून के दायरे में रहते हुए अपनी इच्छा के अनुसार जीवन जीने का पूरा अधिकार है।''
इसके अलावा, यह देखते हुए कि समाज यह निर्धारित नहीं कर सकता है कि किसी व्यक्ति को अपना जीवन कैसे जीना चाहिए, कोर्ट ने कहा,
''एक व्यक्ति अपना जीवन किस व्यक्ति के साथ बिताना चाहता है,इसका निर्धारण समाज की इच्छाओं के अनुसार नहीं किया जा सकता है। माता-पिता केवल इस डर से अपनी बेटी की पसंद को स्वीकार नहीं करते हैं क्योंकि यह समाज के लिए स्वीकार्य नहीं है।''
अंत में, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि लड़का विवाह योग्य आयु का नहीं है, अदालत ने पुलिस अधीक्षक, जींद को निर्देश दिया है कि वे उनके प्रतिनिधित्व पर विचार करते हुए कानून के अनुसार आवश्यक कार्रवाई करें।
केस का शीर्षक - माफी व एक अन्य बनाम हरियाणा राज्य व अन्य अन्य [CRWP No.691 of 2021]
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