अगर स्कूल सम्मिलित फ़ीस वसूल रहा है तो माता पिता शिक्षा निदेशालय की शरण में जा सकते हैं : दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अगर माता पिता को लगता है कि लॉकडाउन की अवधि में स्कूल के सम्मिलित फ़ीस वसूलने से वे सहज नहीं हैं तो वे इसके ख़िलाफ़ शिक्षा निदेशालय के पास जा सकते हैं।
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह की एकल पीठ ने कहा कि फ़ीस वसूलना वैसे ही जायज़ है जैसे शिक्षिक स्टाफ़ को वेतन देना और ऑनलाइन क्लास चलाना।
रजत वत्स नामक एक व्यक्ति ने याचिका दायर कर अदालत से सभी निजी स्कूलों से लॉकडाउन के दौरान फ़ीस नहीं वसूलने का आदेश देने का आग्रह किया था।
याचिकाकर्ता ने कहा कि लॉकडाउन की अवधि के दौरान दिल्ली के विभिन्न निजी स्कूलों के छात्रों को बसों और पढ़ाई के अतिरिक्त होने वाली गतिविधियों और अन्य बातें जिनके लिए स्कूल शुल्क लेती है, उन शुल्कों के भुगतान के लिए नहीं कहा जाना चाहिए। उसने यह भी कहा कि चूंकि स्कूल में पढ़ाई नहीं हो रही है, ट्यूशन फ़ीस की वसूली भी स्थगित की जानी चाहिए।
दिल्ली सरकार की पैरवी करने वाले वक़ील रमेश सिंह ने कहा कि 17 अप्रैल 2020 को शिक्षा निदेशालय ने अपने आदेश में कहा है कि ट्यूशन फ़ीस के अलावा कोई और फ़ीस नहीं वसूली जाएगी।
सिंह ने यह भी कहा कि कई अभिभावकों ने ट्यूशन फ़ीस के अलावा अतिरिक्त फ़ीस अग्रिम रूप से जमा की है। इस राशि का समायोजन किया जाना चाहिए और सरकार ख़ुद ही इस पर विचार करेगी।
अदालत ने शिक्षा निदेशालय के इस आदेश पर कहा,
"... यहां तक कि वे छात्र जो वित्तीय संकट की वजह से फ़ीस का भुगतान नहीं कर सकते, उन्हें भी कोर्स-वर्क और अन्य मटेरियल उपलब्ध कराए जा रहे हैं। ऐसे छात्रों को ऑनलाइन क्लास में भी भाग लेने दिया जा रहा है। यह भी स्पष्ट है कि स्कूल फ़ीस का भुगतान नहीं होने के कारण ऑनलाइन क्लास की सुविधा देने से मना नहीं कर सकता। स्कूलों को किसी नए शुल्क की वसूली से भी रोका गया है।"
अदालत ने कहा कि ट्यूशन फ़ीस वसूलना जायज़ है क्योंकि स्कूलों को ऑनलाइन क्लास, स्टडी मटेरियल और परीक्षा पर धन खर्च करना होता है और इस फ़ीस से शिक्षकों के वेतन का भुगतान भी वह कर पाएगा।
अदालत ने इसे नीतिगत मामला बताया और मामले में आगे हस्तक्षेप करने से मना कर दिया।