उड़ीसा हाईकोर्ट ने मुख्य वन संरक्षक को हाथियों की अप्राकृतिक मौत को नियंत्रित करने के लिए 'व्यापक कार्य योजना' प्रस्तुत करने का निर्देश दिया

Update: 2022-09-06 07:15 GMT

उड़ीसा हाईकोर्ट ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक ('पीसीसीएफ') को राज्य भर में सामान्य रूप से जंगली जानवरों और विशेष रूप से हाथियों की बढ़ती अप्राकृतिक मौतों को नियंत्रित करने और कम करने के लिए 'व्यापक कार्य योजना' प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।

चीफ जस्टिस डॉ. एस. मुरलीधर और जस्टिस चित्तरंजन दास की खंडपीठ ने कहा,

"हाथियों के अवैध शिकार और अप्राकृतिक मौतों के मुद्दे के अलावा, जेटीएफ (संयुक्त कार्य बल) बाघों, तेंदुओं के अवैध शिकार और पैंगोलिन के अवैध व्यापार के मामलों को देखना है। इन मामलों को प्रत्येक जिले में लोक अभियोजक को सौंपा जाने की उम्मीद है। जेटीएफ के लिए कुछ अन्य कार्य निर्धारित किए गए हैं, जिनमें सभी हितधारकों के बीच वन्यजीवों की सुरक्षा के बारे में जागरूकता पैदा करना शामिल है।"

तथ्यात्मक पृष्ठभूमि:

कोर्ट के पूर्व के आदेश के तहत दो हलफनामे दाखिल किए गए। पहला पुलिस महानिदेशक (DGP) द्वारा किया गया, जिसमें ओडिशा के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में 17 अगस्त, 2022 को हुई बैठक की कार्यवाही संलग्न है। उन्होंने बताया कि उस बैठक में राज्य में हाथियों की अप्राकृतिक मौत के विभिन्न मामलों की जांच के लिए वन और पुलिस विभागों के अधिकारियों को शामिल करते हुए संयुक्त कार्य बल (जेटीएफ) गठित करने का निर्णय लिया गया। जेटीएफ को पीसीसीएफ, वन्यजीव के तहत कार्य करने का प्रस्ताव दिया गया और डीजीपी से जेटीएफ के सदस्यों के रूप में कार्य करने के लिए विभिन्न रैंकों के पुलिस अधिकारियों की आवश्यक संख्या प्रदान करने की अपेक्षा की गई।

न्यायालय की टिप्पणियां:

कोर्ट ने पाया कि प्रस्तावित कदम 'उपचारात्मक' कार्रवाई की प्रकृति के है, लेकिन 'निवारक' कार्रवाई के संदर्भ में कुछ भी प्रदान नहीं किया गया था। फिर से न्यायालय ने कहा कि जेटीएफ की संरचना वन्यजीव विशेषज्ञों या वन्यजीव संरक्षण में शामिल नागरिक समाज समूहों या उन किसानों के साथ काम करने वालों को समायोजित करने के लिए 'व्यापक-आधार' नहीं है, जिन्होंने अपनी फसल खो दी है।

इस मौके पर एडवोकेट जनरल अशोक पारिजा ने आश्वासन दिया कि जेटीएफ या तो वन्यजीव विशेषज्ञों और नागरिक समाज समूहों को 'सहयोग' करेगा या अपने सभी विचार-विमर्शों में उनसे परामर्श करेगा, जो कम से कम दो सप्ताह में एक बार होगा ताकि निवारक और उपचारात्मक दोनों तत्वों सहित व्यापक कार्य योजना तैयार की जा सके।

पशुओं की अप्राकृतिक मृत्यु से संबंधित इन मुद्दों को उठाने वाली याचिकाओं की संख्या को ध्यान में रखते हुए निर्देश जारी किया गया कि प्रत्येक याचिका में वकील अपने संबंधित सुझावों का संक्षिप्त सारांश तैयार करेंगे और उन्हें एक सप्ताह के भीतर एडवोकेट जनरल को उपलब्ध कराएंगे। वह सभी सुझावों की जांच करेंगे और उन्हें जेटीएफ के समक्ष उसके अवलोकन और विचार के लिए रखेंगे।

कोर्ट ने आगे स्पष्ट किया कि वकीलों और जेटीएफ को टी.एन. गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम भारत संघ (2012) "एशियाई जंगली भैंस" के संबंध में कर्नाटक हाईकोर्ट का निर्णय स्वतः संज्ञान बनाम कर्नाटक राज्य, एस मनोज इम्मानुअल बनाम भारत संघ, डब्ल्यू.पी. (एमडी) नंबर 19711/2018 में मद्रास हाईकोर्ट का निर्णय और मुदुमलाई बनाम हॉस्पिटैलिटी एसोसिएशन ऑफ एनवायरनमेंट एंड एनिमल्स (2020) में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को देखना चाहिए। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि हाथी-मानव संघर्ष से संबंधित उस राज्य में इसी तरह की समस्याओं से निपटने के लिए असम राज्य द्वारा उठाए गए उपायों की भी जेटीएफ द्वारा जांच की जाएगी।

अंत में पीसीसीएफ को अगली तारीख से पहले जेटीएफ द्वारा तैयार की गई व्यापक कार्य योजना हलफनामे के साथ न्यायालय के समक्ष पेश करने का निर्देश जारी किया गया।

इसके साथ ही मामले को 26 सितंबर, 2022 को अगली सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया गया।

केस टाइटल: गीता राउत और अन्य बनाम ओडिशा राज्य और अन्य।

केस नंबर: डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 14706/2022 और अन्य जुड़े मामले

आदेश दिनांक: 25 अगस्त, 2022

कोरम: डॉ. चीफ जस्टिस एस. मुरलीधर, और जस्टिस चित्तरंजन दास

याचिकाकर्ताओं के वकील: गौतम मिश्रा, सीनियर एडवोकेट, आशीष कुमार मिश्रा और जी.पी. मोहंती, सरकारी और मृणालिनी पाधी, व्यक्तिगत रूप से पेश हुए।

प्रतिवादियों के लिए वकील: अशोक पारिजा, एडवोकेट जनरल डी.के. मोहंती, अतिरिक्त सरकारी एडवोकेट एवं ईश्वर मोहंती, अतिरिक्त सरकारी एडवोकेट

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