उड़ीसा हाईकोर्ट ने अधीनस्थ जजों से POCSO मामलों में ज़मानत की अर्ज़ी पर सुनवाई में पीड़ित की मौजूदगी सुनिश्चित करने को कहा
उड़ीसा हाईकोर्ट ने सभी अधीनस्थ जजों को निर्देश दिया है कि प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट 2012 (POCSO) मामले में आरोपी की ज़मानत की अर्ज़ी की सुनवाई में पीड़िता/सूचना देने वाले की मौजूदगी सुनिश्चित करने को कहा है, विशेषकर अगर जिसके साथ बलात्कार या सामूहिक बलात्कार हुआ है, उसकी आयु 12 साल से कम है या जिसके साथ सामूहिक बलात्कार हुआ है उसकी उम्र 16 साल से कम है। अदालत ने रजिस्ट्री को इस बारे में सभी जजों को यह दिशानिर्देश जारी करने को कहा है।
न्यायमूर्ति पाणिग्रही ने यह आदेश दिया जो आईपीसी कि धारा 363 के तहत दर्ज एक मामले की सुनवाई कर रहे थे जिसे बाद में बदलकर आईपीसी की धारा 376(2)(n)(3) के तहत और POCSO अधिनियम की धारा 6 के अधीन कर दिया गया।
एकल जज की पीठ ने कहा कि यह सुनवाई एक नाबालिग से बलात्कार के आरोपी को ज़मानत पर छोड़ने की है, इसलिए इस सुनवाई में पीड़िता/सूचना देनेवाली की मौजूदगी आपराधिक क़ानून (संशोधन) अधिनियम 2018 के तहत मौलिक दायित्व है।
जज ने कहा कि सुनवाई में पीड़िता/सूचना देने वाले को मौजूद रहने के लिए नोटिस जारी नहीं करना सिर्फ़ प्रक्रियागत लापरवाही नहीं बल्कि स्पष्ट रूप से यह क़ानून के ख़िलाफ़ है। आपराधिक क़ानून (संशोधन) अधिनियम 2018 के अनुसार सीआरपीसी की धारा 439 को 21 अप्रैल 2020 को संशोधित कर ज़मानत की सुनवाई में पीड़ित की मौजूदगी को आवश्यक कर दिया गया।
उपरोक्त संशोधनों को देखते हुए एकल पीठ ने रजिस्ट्रार से सभी अधीनस्थ अदालतों को एक अधिसूचना जारी करने का आदेश दिया है ताकि आरोपी की ज़मानत याचिका पर सुनवाई में पीड़ित/सूचना देनेवाले की मौजूदगी क़ानून के अनुरूप सुनिश्चित की जा सके।
कोर्ट ने इसके अनुरूप याचिकाकर्ता के वकील को कहा कि वह वर्तमान मामले में शिकायतकर्ता/सूचना देनेवाले/पीड़ित को नोटिस भेजे ताकि वह ज़मानत याचिका पर सुनवाई के दिन अदालत में मौजूद रह सके।
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