सीपीसी आदेश 6 नियम 17 | पार्टी को साबित करना होगा कि उचित प्रयास के बावजूद प्रस्तावित संशोधन पहले नहीं लाया जा सका था: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2022-07-14 07:19 GMT

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए लिखित बयान में संशोधन के लिए सीपीसी के आदेश 6 नियम 17 के तहत दायर एक आवेदन को देरी के आधार पर खारिज कर दिया और कहा कि संशोधन की मांग करने वाले पक्षों को यह साबित करना होगा कि उचित प्रयास के बावजूद, प्रस्तावित संशोधन बहुत पहले या ट्रायल शुरू होने से पहले नहीं लाया जा सका।जि

जस्टिस मंजरी नेहरू कौल की खंडपीठ ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता है कि कोर्ट को इस तरह के संशोधनों की अनुमति देने में उदार दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, जो पक्षों के बीच विवाद के न्यायसंगत और प्रभावी निर्णय के लिए आवश्यक हो सकता है। हालांकि, यह उम्मीद नहीं की जानी चाहिए कि कोर्ट आंखें मूंद ले, लेकिन किसी भी पूर्वाग्रह या अन्याय के प्रति उसे खड़ा रहना चाहिए, क्योंकि यदि संशोधन अर्जी ठुकरा दी जाती है तो कहीं दूसरे पक्ष के लिए अन्याय या पूर्वाग्रह न हो।

इस मामले में याचिकाकर्ताओं (मूल प्रतिवादियों) ने लिखित बयान में संशोधन की मांग की थी। याचिकाकर्ताओं को मूल प्रतिवादी के कानूनी वारिस के रूप में पक्षकार बनाया गया था। उन्होंने दावा किया कि ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश होने के बाद, उन्हें पता चला कि उनके पूर्ववर्ती द्वारा दायर लिखित बयान में कुछ कमी थी और इसलिए, उन्होंने कुछ प्रासंगिक तथ्यों को शामिल करने के लिए कथित तौर पर लिखित बयान में संशोधन के लिए एक आवेदन दिया, जो ट्रायल कोर्ट के समक्ष विश्वसनीय और वास्तविक तथ्यों को स्पष्ट करें।

सीपीसी के आदेश 6 नियम 17 में निर्धारित कानून पर विचार करने के बाद, कोर्ट ने माना कि आदेश 6 नियम 17 का प्रावधान यह स्पष्ट करता है कि एक बार मुकदमा शुरू हो जाने के बाद, दलीलों में संशोधन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, जब तक कि पक्ष यह दिखाने में सक्षम न हों कि उचित प्रयास के बावजूद प्रस्तावित संशोधन काफी पहले या ट्रायल प्रारंभ होने से पहले नहीं लाया जा सका था।

'विद्याबाई और अन्य बनाम पद्मलता और अन्य, 2009 (2) एससीसी 409' और 'सलेम एडवोकेट बार एसोसिएशन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, 2005 (3) आरसीआर (सिविल) 530' में निर्णयों पर भरोसा जताने के बाद, कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि मौजूदा मामले में सीपीसी के आदेश 6 नियम 17 के तहत सुनवाई शुरू होने के बाद और कोर्ट की संतुष्टि के अनुसार देरी का कोई उचित कारण दिये बिना आवेदन किया गया है।

"याचिकाकर्ता इस कोर्ट को संतुष्ट करने में बुरी तरह विफल रहे हैं कि ट्रायल शुरू होने से पहले प्रस्तावित संशोधन की मांग क्यों नहीं की गई थी, खासकर तब, जब उक्त तथ्य प्रतिवादी-भागीरथ के साथ-साथ याचिकाकर्ताओं की जानकारी में पहले से ही थे। इस प्रकार, इस स्तर पर किसी भी संशोधन की अनुमति देना प्रतिवादियों के लिए अत्यधिक प्रतिकूल होगा।"

तदनुसार, कोर्ट ने मौजूदा याचिका खारिज कर दी।

केस शीर्षक: भगीरथ @ भगा (मृत) ) कानूनी प्रतिनिधियों के जरिये बनाम रंजीत सिंह और अन्य


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