'हिंदू समुदाय में भय पैदा करना और उन्हें देश छोड़ने की धमकी देना उद्देश्य': कोर्ट ने दिल्ली दंगों के मामले में 10 लोगों के खिलाफ आरोप तय किए
दिल्ली की एक अदालत ने उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगों से संबंधित एक मामले में 10 लोगों के खिलाफ आरोप तय किए हैं। कोर्ट ने आरोप तय करते हुए कहा कि गैरकानूनी जमाव/ भीड़ का उद्देश्य हिंदू समुदाय के लोगों के मन में डर पैदा करना, उनकी संपत्ति को लूटना और जलाना और उन्हें देश छोड़ने की धमकी देना था।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश वीरेंद्र भट ने गवाहों के बयानों में विश्वसनीयता पाते हुए कहा:
"गैरकानूनी जमावमें शामिल दंगाइयों के बयानों से जैसा कि इन गवाहों ने अपने बयानों में उल्लेख किया है, यह स्पष्ट है कि सभा का उद्देश्य हिंदू समुदाय के लोगों के मन में भय और दहशत पैदा करना था, उनकी संपत्ति लूटना और जलाना और देश छोड़ देने की धमकी देना था।"
कोर्ट ने मोहम्मद शाहनवाज, मो. शोएब, शाहरुख, राशिद, आजाद, अशरफ अली, परवेज, मो. फैसल, राशिद@मोनू और मो. ताहिर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 147, 148, 436, 452, 454, 392, 427 और सपठित धारा 149 के तहत आरोप तय किए।
अभियोजन पक्ष का मामला यह था कि आरोपी व्यक्ति पिछले साल 25 फरवरी को एक गैरकानूनी जमाव के रूप में इकट्ठा हुए और इसे आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने हिंसा का सहारा लिया। उन्होंने हिंदू समुदाय के घरों में लूटपाट की और उनकी संपत्तियों को आग लगा दी।
एफआईआर जगदीश प्रसाद की शिकायत पर दर्ज की गई थी। इसमें उसने कहा कि दंगाइयों ने उसके बेटे की ऑटो स्पेयर पार्ट्स की दुकान को जला दिया। उसने यह भी आरोप लगाया कि भीड़ ने दुकान में पेट्रोल बम फेंका जिससे पूरी दुकान जल गई। उसने आगे कहा कि वह अपने दो भाइयों के साथ पीछे के गेट से भागने में सफल रहा और उसने अपनी जान बचाई।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, शिकायतकर्ता, उसका बेटा, उसका भतीजा और तीन पुलिस अधिकारी इस मामले में चश्मदीद गवाह है। यह प्रस्तुत किया गया कि सभी गवाहों ने अपने बयानों में विशेष रूप से आरोपी व्यक्तियों का नाम लिया है। उन्होंने दावा किया कि आरोपी भीड़ में मौजूद थे, जो शिकायतकर्ता की दुकान सहित संपत्तियों को लूटने, क्षतिग्रस्त करने और आग लगाने में शामिल थे।
अदालत का विचार था कि एफआईआर दर्ज करने और गवाहों के बयान दर्ज करने में तीन दिन की देरी दंगों के बाद किसी भी विवेकपूर्ण व्यक्ति के लिए उचित प्रतीत होगी।
कोर्ट ने शुरुआत में कहा,
"यह ध्यान में रखना होगा कि उत्तर पूर्वी दिल्ली में 25.02.2020 और 27.02.2020 के बीच हुए दंगों के बाद उत्तर पूर्व जिले के पुलिस थानों में दंगा पीड़ितों की शिकायतों की बाढ़ आ गई, जिसने पुलिस बल को शिकायतों की जांच करने के लिए यह जानने के लिए कि कौन से अपराध किए गए हैं और फिर उनकी एफआईआर दर्ज करना एक कठिन काम बना दिया।"
कोर्ट का प्रथम दृष्टया यह मानना था कि गवाहों के बयान पर अविश्वास करने का कोई आधार नहीं है।
कोर्ट ने कहा,
"उन्होंने केवल तीन आरोपियों के नाम लिए हैं जिन्हें वे पहले से जानते थे और उन्हें भीड़ में देखा था। अगर उनका इस मामले में किसी व्यक्ति को झूठा फंसाने का कोई इरादा होता तो वे सभी आरोपियों के नाम लेते, केवल तीन आरोपियों के नहीं। यह उनके बयानों की सच्चाई को इंगित करता है और उनके बयानों को भरोसेमंद बनाता है।"
अदालत ने यह भी कहा कि आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ आरोप तय करने के चरण में दो गवाहों के बयानों को खारिज करना न्याय की मांगों के खिलाफ होगा।
कोर्ट ने कहा,
"यह संभव है कि एक ही इलाके में हुई अपराध की एक से अधिक घटनाएं एक पुलिस अधिकारी की आंखों के सामने हुई थीं, जिसे कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए उस विशेष क्षेत्र में प्रतिनियुक्त किया गया था। इसलिए, हवाला देने में कोई अवैधता नहीं है। वह पुलिस अधिकारी उन सभी मामलों में गवाह के रूप में शामिल रहा है। केवल सावधानी यह होगी कि उस पुलिस अधिकारी द्वारा दिए गए घटना के संस्करण को ऐसे प्रत्येक मामले में सूक्ष्मता से जांच की जानी चाहिए ताकि यह देखा जा सके कि क्या यह प्रथम दृष्टया विश्वसनीय है या नहीं।"
कोर्ट ने कहा कि इस मामले में 10 आरोपी थे और अलग-अलग गवाहों ने अलग-अलग आरोपियों की पहचान की।
अदालत ने कहा,
"आरोपियों की पहचान करने वाले अभियोजन पक्ष के सभी छह गवाहों ने इस मामले में शामिल दंगों की घटना के बारे में एक जैसा बयान दिया है। ये सभी एक-दूसरे के बयान की पूरी तरह से पुष्टि करते हैं।"
इसके तहत 10 लोगों के खिलाफ आरोप तय किए गए।
केस शीर्षक: राज्य बनाम मो. शाहनवाज@शानू और अन्य।
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