यह धारणा कि अवैध प्रवासियों और शरण की तलाश कर रहे लोगों के पास अधिकार नहीं है, बदलनी चाहिएः ‌जस्टिस एस मुरलीधर

Update: 2023-09-16 07:46 GMT

जस्टिस (रिटायर्ड) एस मुरलीधर ने हाल ही में कहा, अवैध प्रवासियों और शरण की तलाश कर रहे लोगों के पास भी अधिकार हैं, यह धारणा कि ऐसे लोगों के पास अधिकार नहीं है, बदलना चाहिए। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के संबंध में, उन्होंने कहा कि यह सभी को अधिकार प्रदान करता है, विशेष रूप से नागरिकों या दस्तावेजित व्यक्तियों को नहीं।

जस्टिस मुरलीधर ने माइग्रेंट एंड एसाइलम प्रोजेक्‍ट (MAP) की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में दिए गए व्याख्यान में ये बाते कहीं। व्याख्यान का विषय था- "न्याय के दरवाजे खोलना: प्रवासी महिलाओं के खिलाफ हिंसा की रोकथाम"।

शुरुआत में, जस्टिस एस मुरलीधर ने कहा कि एक वकील के रूप में, उनके पास जबरन बेदखली के मामलों को देखने का मौका रहा है, उन्होंने कानून और कानूनी प्रक्रियाओं के रहस्य को देखा है। उड़ीसा हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस ने कहा कि प्रवासी आबादी जिन मुश्किलों का सामना करती है, उन्हीं मुश्किलों का सामना आंतरिक रूप से विस्थापित आबादी को भी करना पड़ता है।

उन्होंने बताया,

उदाहरण के लिए, बांग्लादेशी शब्द को आबादी के विभिन्न वर्गों पर लागू किया जा सकता है। राज्य की दृष्टि से यह खतरनाक शब्द ह। हमेशा राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता का तर्क आगे रखा जाता है और आप्रवासियों, शरणार्थियों और शरण चाहने वालों के मामलों में और भी ऐसा और अधिक तीव्रता के साथ किया जाता है।

ऐसे मुद्दे पर कोर्ट की प्रतिक्रिया के बारे में बात करते हुए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश की चर्चा की, जिसमें कोर्ट ने रोहिंग्याओं को निर्वासन से अंतरिम सुरक्षा देने से इनकार कर दिया था।

उन्होंने कहा कि इस आदेश के परिणामस्वरूप उन्हें उस राहत से वंचित होना पड़ा जो उन्हें मिल सकती थी। हालांकि, उन्होंने कहा कि मणिपुर हाईकोर्ट की ओर से नंदिता हक्सर बनाम मणिपुर राज्य, डब्ल्यूपी (सीआरएल) नंबर 6, 2021 में दिया गया आदेश, इसके विपरीत था। उल्लेखनीय है कि इस मामले का अध्यक्षता उस समय हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस संजय कुमार ने किया था, जो वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट मे जज हैं। उस मामले में मणिपुर में फंसे रोहिंग्या दिल्ली पहुंचने की कोशिश कर रहे थे और उन्हें शरणार्थी स्टेटस के लिए यूएनएचसीआर में आवेदन करने के लिए दिल्ली आने के लिए ट्रवेल परमिट की जरूरत थी। उन्होंने कहा कि उक्त आदेश में हाईकोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत शरणार्थी आबादी के अधिकारों को चिन्हित किया।

जस्टिस मुरलीधर ने कहा कि कानून और गरीबी का यह अंतरविरोध हमें आपराधिक कानून और संविधान के अंतरसंबंध पर लाता है। उन्होंने कहा कि कानून और संविधान के हमारे अध्ययन में यह उपेक्षित क्षेत्र है।

“किसी व्यक्ति को हिरासत में लेने वाले पुलिसकर्मी का प्रत्येक कार्य, किसी व्यक्ति को हिरासत में लेने वाले मजिस्ट्रेट का प्रत्येक कार्य, संवैधानिक योजना द्वारा विनियमित होता है। इस समझ को अंदर तक समाहित करना होगा।”

उन्होंने इस बारे में भी बात की कि कैसे अधिकांश अवैध प्रवासी और शरण चाहने वाले सोचते हैं कि उनके पास अधिकार नहीं हैं। हालांकि, उस पूरी धारणा को बदलने की जरूरत है। उनके पास औपचारिक कानूनी प्रणाली से जुड़ने की क्षमता नहीं हो सकती है। उन्होंने आगे कहा कि इस बाधा का सामना आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों को भी करना पड़ता है।

उन्होंने कहा,

“यह लोगों को उस प्रणाली में शामिल होने से रोकता है। यही कारण है कि भारत में अभी भी हमारे पास एक मजबूत समानांतर प्रणाली है। लोग औपचारिक प्रणाली में संलग्न होने के बजाय आसानी से एक समानांतर प्रणाली में संलग्न हो जाते हैं।”

इस संदर्भ में, उन्होंने समानांतर प्रणाली पर लीमा और पेरू में किए गए अग्रणी अध्ययन का उल्लेख किया, जहां यह पाया गया कि औपचारिक प्रणाली की तुलना में समानांतर प्रणाली में अधिकारों की अधिक सुरक्षा है।

उन्होंने व्यक्तियों के साथ जुड़ने के लिए कानूनी सेवा प्राधिकारियों की आवश्यकता पर बल दिया, इसलिए नहीं कि उन्हें औपचारिक प्रणाली द्वारा मान्यता प्राप्त है, बल्कि इसलिए भी कि वे व्यक्ति और अधिकार धारक हैं। सबसे बढ़कर, उन्हें सम्मान और सुरक्षा के बुनियादी अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता है।

भाषण के अंत में उन्होंने पैरालीगल्स सहित एमएपी वाल‌ंटियर्स के अथक परिश्रम की सराहना करते हुए कहा,

"ऐसे मामले जहां आप सबसे ज्यादा मेहनत करते हैं और शायद आपको बिल्कुल भी भुगतान नहीं होता है, लेकिन अंत में आप जिसके लिए काम कर रहे हैं उसे पाने में सक्षम होते हैं, यह आपको किसी भी अन्य चीज की तुलना में कहीं अधिक संतुष्टि देता है।"

अंत में उन्होंने इस तथ्य के बारे में भी बताया कि भारत हमेशा से प्रवासियों और आप्रवासियों का देश रहा है, उन्होंने कहा,

“यदि आप प्राचीन काल में भी जाएं, तो यह वह देश था जहां हमेशा अप्रवासी रहते थे। यह केवल राजनीतिक, कानूनी सीमाएं हैं, जिन्होंने उन्हें अवैध प्रवासी, आंतरिक प्रवासी या शरण चाहने वाले के रूप में वर्गीकृत किया है।

उन्होंने कहा कि हमें अपने देश में आने वाले अवैध अप्रवासियों के साथ व्यवहार में अधिक मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।


कार्यक्रम का वीडियो यहां देखें

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