"कोई भी साक्ष्य आरोपी के अपराध को साबित नहीं करते": कोर्ट ने दिल्ली दंगों में आरोपी व्यक्ति को बरी किया
दिल्ली की एक अदालत ने मंगलवार को सुरेश को पिछले साल राष्ट्रीय राजधानी में भड़के उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगों के दौरान एक दुकान पर हमला करने और लूटने और एक गैरकानूनी असेंबली का हिस्सा होने से जुड़े सभी आरोपों से बरी करते हुए कहा कि कोई भी साक्ष्य आरोपी के अपराध को साबित करने लायक नहीं हैं।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने दिल्ली दंगों के मामले में फैसला सुनाते हुए, कहा कि गवाही में स्पष्ट विसंगतियां हैं और यहां तक कि मामले में आरोपियों की पहचान भी स्थापित नहीं की जा सकी जिसके परिणामस्वरूप बरी किया जाता है।
अदालत ने कहा कि,
"अभियोजन पक्ष के उक्त गवाहों की गवाही और उनकी सावधानीपूर्वक जांच के आलोक में यह स्पष्ट रूप से स्पष्ट है कि अभियोजन अपने मामले को साबित करने में बुरी तरह विफल रहा है। सभी प्रमुख गवाह एक दूसरे के साथ भिन्न हैं और सभी गवाह अभियोजन पक्ष को प्रभावित करते हैं।"
बेंच ने कहा कि,
"जैसा कि सभी गवाहों की संपूर्ण गवाही के संचयी पठन पर बनाया जा सकता है, आरोपी की पहचान बिल्कुल भी स्थापित नहीं होती है। पर्याप्त जांच भी नहीं हुई है।"
दुकान के किराएदार आसिफ की लिखित शिकायत के आधार पर प्राथमिकी 102/2020 दर्ज की गई थी, जिसमें कहा गया था कि पिछले साल 25 फरवरी को लोहे की छड़ और लाठी लेकर लोगों की भारी भीड़ उसकी दुकान पर आई और दुकान को लूट लिया।
इस मामले में दुकान के मालिक का बयान भी दर्ज किया गया था जिसमें कहा गया कि कुछ लोग दूसरों को उस दुकान को नुकसान पहुंचाने और लूटने के लिए उकसा रहे थे क्योंकि यह दुकान एक मुस्लिम की है।
इस मामले में अभियोजन पक्ष के 7 गवाह हैं, जिनमें शिकायतकर्ता, दुकान मालिक, एक लोक गवाह, ड्यूटी अधिकारी, दो पुलिस कर्मी और जांच अधिकारी शामिल हैं।
अदालत ने गवाहों की व्यक्तिगत गवाही का विश्लेषण करते हुए कहा कि " गवाहों की संख्या नहीं बल्कि गवाहों की गवाही की गुणवत्ता है जो एक आपराधिक मुकदमे में मायने रखती है।"
कोर्ट ने पाया कि दुकान के मालिक भगत सिंह ने स्पष्ट रूप से कहा कि उन्होंने जांच अधिकारी से कभी यह नहीं कहा कि वह उस व्यक्ति की पहचान कर सकते हैं जिसने उसकी दुकान में तोड़फोड़ की थी।
कोर्ट ने कहा कि,
"साक्ष्य की सावधानीपूर्वक जांच से यह तथ्य सामने आता है कि PW5 और PW2 की गवाही आरोपी की पहचान और उसकी आशंका की भौतिक शर्तों पर विरोधाभासी है। PW6 या PW7 की गवाही में कहा गया कि PW2 आरोपी को पहचान है, लेकिन PW2 इस बात से खुद ही नकार दिया है।"
कोर्ट ने सुरेश को बरी करते हुए कहा कि कोई भी साक्ष्य आरोपी के अपराध को साबित करने लायक नहीं हैं।
केस का शीर्षक: राज्य बनाम सुरेश @ भटूरा