POCSO पीड़ित की उम्र साबित करने के लिए जन्म प्रमाण पत्र की कोई आवश्यकता नहीं, स्कूल प्रमाणपत्र पर्याप्त साक्ष्यः दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2023-01-19 14:30 GMT

Delhi High Court

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि पीड़िता की उम्र साबित करने के लिए जन्म प्रमाण पत्र की कोई आवश्यकता नहीं है और कोई भी स्कूल प्रमाण पत्र पीड़िता की उम्र साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत है।

जस्टिस जसमीत सिंह ने किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 94(2)(i) का अवलोकन करते हुए यह टिप्पणी की है, जो उम्र के अनुमान और निर्धारण का प्रावधान करती है।

प्रावधान में कहा गया है कि जहां बाल कल्याण समिति या किशोर न्याय बोर्ड के पास संदेह के लिए उचित आधार है कि उसके सामने लाया गया व्यक्ति बच्चा है या नहीं, ऐसे में वह स्कूल से जन्म तिथि प्रमाण पत्र या मैट्रिकुलेशन या समकक्ष प्रमाण पत्र का साक्ष्य मांगकर आयु निर्धारण की प्रक्रिया शुरू करेगा।

कोर्ट ने कहा कि,“इसलिए, पीड़िता की उम्र साबित करने के लिए प्रथम स्कूल छोड़ने का प्रमाण पत्र या जन्म प्रमाण पत्र की कोई आवश्यकता नहीं है। कोई भी स्कूल सर्टिफिकेट पीड़िता की उम्र साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत होता है।’’

जस्टिस सिंह ने वर्ष 2019 में एक पाॅक्सो के मामले में एक व्यक्ति को दी गई 10 साल के कठोर कारावास और जुर्माने की सजा को बरकरार रखा है। उसे भारतीय दंड की धारा 363, 366 और 376 और पाॅक्सो अधिनियम की धारा 6 के तहत अपराधों का दोषी ठहराया गया था।

एफआईआर पीड़िता के पिता द्वारा दायर शिकायत के आधार पर दर्ज की गई थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि 23 जनवरी, 2017 को वह अपनी बेटी को स्कूल छोड़ने गया था, हालांकि वह घर नहीं लौटी और इस तरह उसने आशंका जताई कि उसका अपहरण कर लिया गया है।

दूसरी ओर अपीलकर्ता की ओर से पेश वकील ने कहा कि उसे मामले में झूठा फंसाया गया है और पीड़िता ने स्वेच्छा से अपना घर छोड़ दिया था और उसकी सहमति से उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए थे क्योंकि वह दोनों एक-दूसरे से प्यार करते थे।

यह प्रस्तुत किया गया था कि घटना के समय पीड़िता बालिग थी और पीड़िता की सही उम्र साबित करने के लिए पीड़िता के प्रथम स्कूल या जन्म प्रमाण पत्र का कोई रिकॉर्ड नहीं था।

 अभियोजन पक्ष द्वारा यह प्रस्तुत किया गया कि पीड़िता ने अपनी गवाही में साबित कर दिया था कि अपीलकर्ता ने उस समय उसका अपहरण कर लिया था, जब वह 16 साल की थी। वहीं शादी के झूठे वादे पर उसने उसके साथ बार-बार बलात्कार किया था या यौन संबंध बनाए थे।

पीड़िता की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि पीड़िता ने खुद अपनी जन्मतिथि 20 जनवरी, 2001 को बताई है और उसकी मां व स्कूल की प्रभारी ने भी इसी का समर्थन किया है। इसलिए अपराध के समय वह नाबालिग थी।

यह देखते हुए कि मामले में पीड़िता की उम्र का अत्यधिक महत्व है, अदालत ने उसके स्कूल प्रमाण पत्र, प्रवेश आवेदन पत्र और प्रवेश और निकासी रजिस्टर पर ध्यान दिया, जिसमें उसकी जन्मतिथि 20 जनवरी, 2001 दिखाई गई थी।

कोर्ट ने कहा,“इन सभी दस्तावेजों में पीड़िता की जन्मतिथि 20.01.2001 दिखाई गई है। इसलिए, यह स्थापित किया गया है कि पीड़िता नाबालिग थी, यानी जुलाई/अगस्त 2016 में हुई पहली घटना के समय उसकी उम्र 15 वर्ष थी और यह विधिवत साबित हुआ है।’’

जस्टिस सिंह ने कहा कि अपीलकर्ता द्वारा अपहरण का अपराध मामले में स्थापित हो गया क्योंकि पीड़िता को उसके माता-पिता की सहमति के बिना उनके कानूनी संरक्षण से दूर ले जाया गया था। अदालत ने यह भी कहा कि पीड़िता को पंजाब के फगवाड़ा से अपीलकर्ता के साथ बरामद किया गया था।

अदालत ने अपीलकर्ता के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि उसके और पीड़िता के बीच सहमति से संबंध बनाए गए थे, क्योंकि नाबालिग सहमति देने में असमर्थ है।

अदालत ने कहा, ‘‘सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि एफएसएल रिपोर्ट भी पीड़िता पर अपीलकर्ता द्वारा किए गए बलात्कार के अपराध को स्पष्ट रूप से स्थापित करती है क्योंकि यह स्पष्ट रूप से बताती है कि अपीलकर्ता बच्चे का जैविक पिता है और पीड़िता बच्चे की जैविक मां है।’’

इस प्रकार हाईकोर्ट ने निचली अदालत द्वारा अपीलकर्ता को दोषी ठहराने और उसे सजा सुनाने के आदेश को बरकरार रखा।

केस टाइटल-सुरजीत कुमार बनाम राज्य

साइटेशन- 2023 लाइव लॉ (दिल्ली) 66


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