‘कोई भी नवविवाहित पत्नी अपने वैवाहिक घर को तब तक बर्बाद नहीं करना चाहेगी जब तक उसे प्रताड़ित न किया जाए’: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 498A के तहत दर्ज एफआईआर रद्द करने से इनकार किया
“कोई भी नवविवाहित पत्नी अपने वैवाहिक घर को तब तक बर्बाद नहीं करना चाहेगी जब तक उसे प्रताड़ित न किया जाए।“
ये टिप्पणी मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महिला की ओर से अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ दायर FIR रद्द करने से इनकार करते हुए की।
जस्टिस दिनेश कुमार पालीवाल ने कहा,
"FIR शादी के 08 महीने के भीतर ही दर्ज कराई गई। और कोई भी नवविवाहित पत्नी अपने वैवाहिक घर को तब तक बर्बाद नहीं करना चाहेगी जब तक कि दहेज की मांग करके उसे परेशान न किया जाए या उसके साथ क्रूरता न की जाए। इसलिए ये नहीं कहा जा सकता है कि लगाए गए आरोप झूठे या निराधार हैं।
बेंच ने आगे कहा,
"कानून की यह भी स्थापित स्थिति है कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत, यह अदालत एफआईआर को रद्द करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर याचिका पर विचार करते समय सबूतों की सराहना नहीं कर सकती है।"
महिला ने अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ आईपीसी की धारा 498-ए, 294, 323, 506 और दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 3 और 4 के तहत FIR दर्ज कराई थी। एफआईआर को रद्द करने की मांग करते हुए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत पति की ओर से दाखिल याचिका पर हाईकोर्ट सुनवाई कर रहा था।
पहले पूरा मामला समझ लेते हैं। साल 2021 में महिला और आरोपी ने शादी की थी। शादी के अगले ही दिन पति के दादा का निधन हो गया। आरोप है कि इसी बात पर उसके पति और ससुराल वालों ने उसे ये कहकर प्रताड़ित करना शुरू कर दिया कि वो उनके घर के लिए शुभ नहीं है।
आरोप है कि उन्होंने पर्याप्त दहेज न लाने के लिए उसे प्रताड़ित करना भी शुरू कर दिया और दहेज के रूप में अपने माता-पिता से 5 लाख रुपये लाने को कहा। महिला ने आरोप लगाया कि ससुराल वालों के उकसाने पर उसके पति ने भी उसे कई बार मारा- पीटा।
पति और ससुराल वालों के वकील ने कहा कि महिला और आरोपी पति की शादी शिकायत दर्ज करने से केवल 8 महीने पहले हुई थी। एफआईआर में पत्नी के साथ क्रूरता या उत्पीड़न को साबित करने के लिए कोई तारीख, समय और घटना का उल्लेख नहीं किया गया है।
आगे कहा- शादी के बाद महिला अपने पति के साथ 30 दिन भी नहीं रही। महिला का स्वभाव अच्छा नहीं है। वो झगड़ालू है।
हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनी, सबूतों को देखा और कहा कि FIR के तहत पति और सुसरालवालों पर कई आरोप लगाए गए हैं। ऐसा नहीं कहा जा सकता कि मामले में पति को झूठा फंसाया जा रहा है, क्योंकि इसके लिए कोई सबूत पेश नहीं किया गया है। अभी जांच चल रही है। जब तक पुलिस जांच पूरा नहीं कर लेती तब तक पति और ससुराल वालों को कोई राहत नहीं दी जा सकती।
पीठ ने कहा कि ये कानून की स्थापित धारणा है कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत शक्तियां बहुत व्यापक हैं लेकिन व्यापक शक्ति प्रदान करने के लिए अदालत को अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता होती है।
इसके साथ ही कोर्ट ने पति की याचिका खारिज करते हुए कहा कि आरोप सही हैं या नहीं, इस पर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है। जांच चल रही है।
केस टाइटल: एस एंड अन्य बनाम एमपी राज्य और अन्य
उपस्थिति: आवेदक की ओर से अधिवक्ता सचिन गुप्ता
राज्य की ओर से अधिवक्ता सत्यपाल चडाल।
प्रतिवादी की ओर से अधिवक्ता अमित दुबे।
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