'कोई भी जांच अधिकारी प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं की अवहेलना नहीं कर सकता है': बॉम्बे हाईकोर्ट ने घर की जब्ती करने पर पुलिस अधिकारी को फटकार लगाई
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि किसी भी जांच में सभी प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं का पालन करना अनिवार्य है। उक्त टिप्पणी के साथ कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 102 के तहत एक आदमी के घर को जब्त करने के लिए एक पुलिस अधिकारी को कड़ी फटकार लगाई। उक्त प्रावधान के तहत अचल संपत्ति की जब्ती की अनुमति नहीं है।
जस्टिस सुनील बी शुकरे और जस्टिस एम डब्ल्यू चंदवानी की खंडपीठ ने कहा, "गंभीर अपराधों में अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करने के नाम पर, कोई भी जांच अधिकारी प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं की अवहेलना नहीं कर सकता, कानून की सीमाओं का उल्लंघन नहीं कर सकता, सुप्रीम कोर्ट द्वारा घोषित कानून का खुले तौर पर अनादर कर नहीं सकताऔर इस प्रकार, खुद को खुद के लिए कानून घोषित नहीं कर सकता है"।
अदालत ने कहा कि जांच अधिकारी ने "निर्लज्जतापूर्वक" कानून की अनदेखी की और खुद को कानून ऊपर दिखने की कोशिश की।
अदालत ने कहा,
"इस तरह के प्रयास को तुरंत विफल करना चाहिए या अन्यथा नौकर कानून का मालिक बन जाएगा और मालिक को जीवन भर के लिए दास बना दिया जाएगा।"
वर्तमान मामले में जांच अधिकारी आईपीसी की धारा 420 (धोखाधड़ी), 406 (आपराधिक विश्वासघात), और 409 (लोक सेवक, या बैंकर द्वारा विश्वास का आपराधिक उल्लंघन), और महाराष्ट्र जमाकर्ताओं के हितों की सुरक्षा (वित्तीय प्रतिष्ठानों में) अधिनियम, 1999 (एमपीआईडी अधिनियम) की धारा 3 (वित्तीय प्रतिष्ठान द्वारा कपटपूर्ण चूक) के तहत अपराधों की जांच कर रहा था, जिसमें उसने याचिकाकर्ता का घर जब्त कर लिया। उसने याचिकाकर्ता को संपत्ति बेचने से भी रोक दिया।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने 19 फरवरी, 2015 को जब्ती के नोटिस को बरकरार रखा। इसलिए याचिकाकर्ता ने वर्तमान रिट याचिका में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
नेवादा प्रॉपर्टीज प्राइवेट लिमिटेड बनाम महाराष्ट्र राज्य में, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से माना है कि सीआरपीसी की धारा 102 के तहत पुलिस अधिकारी द्वारा एक अचल संपत्ति की जब्ती की अनुमति नहीं है।
अदालत ने कहा कि धारा 102 के तहत, एक पुलिस अधिकारी जांच के दरमियान केवल एक वस्तु, सामान, कागज के टुकड़े आदि को जब्त कर सकता है, जो अभियुक्त के खिलाफ आरोप साबित करने के लिए सबूत के रूप में काम करेगा और जिसे ट्रायल के पहले भौतिक रूप से कोर्ट में पेश किया जा सके।
इसलिए, अदालत ने याचिका की स्वीकृति के समय जांच अधिकारी को कानून की सही स्थिति को समझने और अपनी गलती को सुधारने के प्रस्ताव के साथ आने का अवसर दिया था।
पिछली सुनवाई के दौरान, जांच अधिकारी ने एक हलफनामा और उनके द्वारा भेजे गए पत्र की एक प्रति सब रजिस्ट्रार क्लास II, नागपुर सिटी नंबर 4, नागपुर, तारीख 12 दिसंबर, 2022 को दी थी।
आईओ ने हलफनामा में कहा कि उन्होंने जब्ती नोटिस को रद्द कर दिया है और प्राधिकरण यानी सब रजिस्ट्रार को भी सूचित किया है कि संपत्ति की कुर्की के लिए एमपीआईडी अधिनियम की धारा 4 सहपठित 8 के तहत अधिसूचना जारी करने की प्रक्रिया चल रही है।
अदालत ने कहा कि जांच अधिकारी को अपनी गलती का एहसास नहीं हुआ है और उसे लगता है कि उसने जो कुछ भी किया सही किया। यह कथन कि जांच अधिकारी ने केवल उप पंजीयक को सूचित किया है, आधा सच है क्योंकि जांच अधिकारी का पत्र उप पंजीयक को केवल सूचित करने के लिए नहीं है, बल्कि उप पंजीयक को अपना रिकॉर्ड बदलने के लिए एक विशिष्ट अनुरोध करता है।
कोर्ट ने कहा कि आईओ ने जब्ती नोटिस के अनुसार रिकॉर्ड में प्रविष्टि को दूसरी प्रविष्टि के साथ बदलने का अनुरोध किया है कि एमपीआईडी अधिनियम की धारा 4 और 8 के तहत अधिसूचना जारी करने की प्रक्रिया चल रही है।
कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड बदलने का यह अनुरोध सब रजिस्ट्रार के कामकाज में हस्तक्षेप है। अदालत ने कहा कि 12 दिसंबर, 2022 के सूचना पत्र में सिविल कोर्ट की शक्तियों का हड़पना और आईओ द्वारा शक्तियों का दुरुपयोग करना भी शामिल है।
अदालत ने कहा कि वह दोषियों को पकड़ने के लिए आवश्यक आईओ की किसी भी वैध कार्रवाई का समर्थन करेगी, लेकिन यह अवैध कार्यों का समर्थन नहीं करेगी। इसलिए कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की संपत्ति कुर्क करने के नोटिस को रद्द कर दिया और अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के आदेश को भी रद्द कर दिया।
अदालत ने उच्च पुलिस अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के लिए भी कहा कि कोई भी जांच अधिकारी सीआरपीसी की धारा 102 के तहत अचल संपत्ति को जब्त न करे, और राज्य के सभी जांच अधिकारी को देश के कानून का पालन करने के लिए उचित निर्देश जारी करे।
केस टाइटल- विक्रम पुत्र मधुकर लाभे व अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य
मामला संख्या- क्रिमिनल रिट पीटिशन नंबर 636/2020