पति के साथ रह रही विवाहित बेटी को अनुकंपा नियुक्ति नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक मृत एलआईसी कर्मचारी की विवाहित बेटी की ओर से की गई अनुकंपा नियुक्ति की मांग को खारिज कर दिया है। चीफ जस्टिस प्रसन्ना बी वराले और जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित की खंडपीठ ने कहा कि अपीलकर्ता की शादी उसके पिता की मृत्यु से बहुत पहले हुई थी और वह अपने पति के साथ रह रही है।
कोर्ट ने कहा,
हमारे शास्त्रों का आदेश है "भर्ता रक्षति यव्वने...", जिसका शाब्दिक अर्थ है कि आश्रित पत्नी को भरण-पोषण प्रदान करना पति का कर्तव्य है। हमारे कानूनों को ऐसे ही बनाया गया है, जैसे दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 (सभी धर्मों पर लागू), हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 और 25 (व्यापक अर्थ में हिंदुओं पर लागू), तलाक अधिनियम, 1869 की धारा 37 (ईसाइयों पर लागू), पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936 की धारा 40 (पारसियों पर लागू), घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम, 2005 की धारा 20 ( सभी पर लागू, धर्म और वैवाहिक स्थिति जो भी हो), विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की धारा 36 और 37, मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 (मुस्लिम बीवियों पर लागू) आदि को बनाया गया है।"
कोर्ट ने कहा कि उसके संज्ञान में कोई बाध्यकारी नियम नहीं लाया गया है जो विवाहित बेटी को पिता की शर्त पर भरण-पोषण के अधिकार की गारंटी देता हो, जबकि वह अपने पति के साथ रहती हो। अपीलकर्ता ने तर्क दिया था कि एक विवाहित बेटी भी सेवाकाल में मरने वाले कर्मचारी के बेटे के समान अनुकंपा नियुक्ति की हकदार है।
अदालत ने कहा कि एलआईसी रिक्रूटमेंट ऑफ स्टाफ इंस्ट्रक्शन के क्लॉज 21 (ii) के तहत विवाहित बेटी को अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिए पात्र होने से बाहर रखा गया है।
पीठ ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति का दावा करने का अधिकार इस तथ्य पर आधारित है कि काम के दौरान मरने वाले कर्मचारी का परिवार वित्तीय संकट में है। हालांकि, इस मामले में एलआईसी ने मृत कर्मचारी को टर्मिनल लाभों के रूप में 1,58,06,025 रुपये की भारी राशि का भुगतान किया है।
कोर्ट ने अपील को खारिज करते हुए कहा, "परिवार के सदस्य वित्तीय संकट का तर्क नहीं दे सकते।"