गुजरात हाईकोर्ट की नई बेंच COVID-19 मामलोंं और प्रवासी मुद्दोंं पर करेगी सुनवाई
गुजरात हाईकोर्ट में रोस्टर में बदलाव के बाद अब एक नई बेंच रचना COVID-19 नियंत्रण उपायों और गुजरात में प्रवासियों के मुद्दों पर दायर मुकदमों और जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।
अब मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की पीठ द्वारा इन मामलों पर विचार किया जाएगा। न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति इलेश जे वोरा की पीठ अब तक इन मामलों पर विचार किया जा रहा था।
COVID-19 नियंत्रण उपायों पर सू मोटो मामला 13 मार्च को मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति आशुतोष जे शास्त्री की पीठ ने दर्ज किया था।
11 मई को जस्टिस जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति इलेश जे वोरा की एक बेंच ने गुजरात में प्रवासियों के मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लिया और COVID-19 नियंत्रण से संबंधित मामलों के साथ इसे क्लब किया। यह पीठ तब से इस पर सुनवाई कर रही थी, जब इस मुद्दे पर जनहित याचिका दायर की गई थी।
22 मई को जस्टिस जे बी पारदीवाला और इलेश जे वोरा की पीठ ने COVID-19 रोगियों के संबंध में अहमदाबाद सिविल अस्पताल में दयनीय स्थितियों के खिलाफ महत्वपूर्ण टिप्पणियां की थी।
कोर्ट ने अहमदाबाद सिविल अस्पताल में COVID-19 रोगियों की उच्च रुग्णता दर पर चिंता व्यक्त की थी।
कोर्ट ने कहा कि इसकी स्थितियां "दयनीय" हैं। कोर्ट ने पूछा कि क्या गुजरात सरकार इस बात से अवगत है कि पर्याप्त संख्या में वेंटिलेटर की कमी वहां के मरीजों की उच्च मृत्यु दर का कारण रही।
24 मई को जस्टिस जे बी पारदीवाला और इलेश जे वोरा की पीठ ने कहा कि गुजरात सरकार को इस डर से COVID-19 टेस्ट की संख्या को कम नहीं करना चाहिए कि अधिक टेस्ट करने से जनसंख्या के 70% लोगों का टेस्ट पॉज़िटिव आ जाएगा।
पीठ ने यह अवलोकन गुजरात के एडवोकेट जनरल, कमल त्रिवेदी द्वारा उठाए गए प्रश्न के जवाब में किया। एडवोकेट जनरल ने कहा था कि यदि सभी का परीक्षण किया जाता है, तो 70% लोगों का COVID-19 टेस्ट पॉज़िटिव आ जाएगा, जिससे भय साइकोसिस भय फैल सकता है।
'भय कारक' को संबोधित करने के लिए, पीठ ने निर्देश दिया कि अधिकारियों को समाचार पत्रों के विज्ञापनों के माध्यम से व्यापक प्रचार करना चाहिए कि केवल इसलिए कि किसी का COVID 19 टेस्ट पॉज़िटिव आ गया है, उसे घबराने की ज़रूरत नहीं है। जनता में जागरूकता फैलाई जानी चाहिए कि प्रारंभिक अवस्था में रोगियों को घर में अलग रखकर ठीक किया जा सकता है और किसी को लक्षण विकसित होने के बाद ही अस्पताल जाना चाहिए।
कोर्ट ने राज्य सरकार के निर्देश के पीछे की समझदारी पर भी सवाल उठाया कि COVID-19 परीक्षण केवल सरकारी प्रयोगशालाओं में किया जाना चाहिए, जबकि ICMR द्वारा अनुमोदित निजी प्रयोगशालाएं उपलब्ध हैं। न्यायालय ने हैरानी जताई कि क्या यह "गुजरात राज्य में मामलों की संख्या को कृत्रिम रूप से नियंत्रित करने के लिए सरकार की कार्रवाई" तो नहीं है।