नारदा केस- 'क्या आप इस बात से इनकार करते हैं कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सीबीआई ऑफिस के सामने धरने पर बैठी थीं'? कोर्ट ने पूछा; 'लोकतांत्रिक तरीके से विरोध प्रदर्शन किया गया': सीनियर एडवोकेट एएम सिंघवी ने कहा
कलकत्ता हाईकोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी ने आज (बुधवार) कहा कि नारदा घोटाला मामले में सोमवार को चार टीएमसी नेताओं की गिरफ्तारी के खिलाफ सीबीआई कार्यालय के बाहर सीएम ममता बनर्जी के नेतृत्व में धरना प्रदर्शन विरोध का लोकतांत्रिक तरीका था।
वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी आरोप लगाया कि गैर-कानूनी तरीके से गिरफ्तारियां की गईं और लोगों को केंद्रीय एजेंसी की ऐसी गैर-कानूनी कार्रवाइयों के खिलाफ विरोध करने का अधिकार है।
सीनियर एडवोकेट सिंघवी ने उच्च न्यायालय से कहा कि सीबीआई ने गिरफ्तारी से पहले स्पीकर से मंजूरी नहीं ली और इसके बजाय राज्यपाल से संपर्क किया।
एडवोकेट सिंघवी ने तर्क देते हुए कहा कि,
"अगर गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तारी की जाती है तो इसके खिलाफ विरोध करने का अधिकार है, जब तक कि एजेंसी के वैध कार्यों को प्रतिबंधित नहीं किया जाता है।"
एडवोकेट सिंघवी ने आगे कहा कि इस तरह की गैरकानूनी गिरफ्तारी के खिलाफ लोगों में आक्रोश है और नाराजगी जताने का अधिकार है।
एडवोकेट सिंघवी ने कहा कि, "लोकतंत्र का यही मतलब है। 7 साल बाद इस मामले में गिरफ्तारी के खिलाफ लोगों का गुस्सा जाहिर है।"
एडवोकेट सिंघवी ने आगे कहा कि, "जैसा कि लोकतंत्र में होता है, सह-मंत्रियों, सह-विधायकों द्वारा विरोध किया जाता है। लेकिन सीबीआई को बीच में नहीं घसीटा जाना चाहिए। अब सीबीआई का इस्तेमाल करके विरोध को रोकने का प्रयास किया जा रहा है।"
एडवोकेट सिंघवी ने कहा कि सीएम ममता बनर्जी विधायक के तौर पर सीबीआई के पास गईं। जब एसीजे ने विरोध प्रदर्शन के स्थान पर सीएम की उपस्थिति के बारे में पूछताछ की तब एडवोकेट सिंघवी ने कहा कि सीबीआई या विशेष सीबीआई कोर्ट के ऊपर उसके(ममता बनर्जी) पास क्या शक्ति है?"
एसीजे ने पूछा कि 5-6 घंटे तक सीएम ममता बनर्जी सीबीआई कार्यालय में थीं। क्या आप इस बात से इनकार करते हैं कि कानून मंत्री का अदालत जाना व्यवस्थित नहीं है? एडवोकेट संघवी ने कहा कि विधायक के मंत्री बनने के बाद स्थिति में अंतर आ जाता है। एसीजे ने कहा, "आप एक साधारण विधायक नहीं हैं।"
एडवोकेट सिंघवी ने जवाब दिया कि, "क्या सीएम के सीबीआई के पास जाने से ऐसी स्थिति पैदा होती है कि 4 घंटे की वर्चुअल सुनवाई के बाद भी अदालत द्वारा न्यायिक आदेश पारित नहीं किया जा सकता है?"
यह भी मामला है कि ट्रायल कोर्ट के बाहर केवल प्रदर्शनकारियों की उपस्थिति ने न्यायिक कार्यवाही को प्रभावित नहीं किया क्योंकि सुनवाई वर्चुअल मोड में थी।
एडवोकेट सिंघवी ने कहा कि, "विशेष अदालत ने किसी विशेष कठिनाई व्यक्त नहीं की है। विशेष न्यायाधीश ने अत्यधिक प्रभावित करने वाला सुझाव नहीं दिया है।"
एसीजे राजेश बिंदल ने इस मौके पर कहा कि,
"विशेष न्यायाधीश को यह दर्ज करना चाहिए कि उन पर दबाव डाला जा रहा है?"
सिंघवी ने जवाब दिया कि कम-से कम-संकेत, एक सुझाव होना चाहिए।
एडवोकेट सिंघवी ने जोर देकर कहा कि विशेष सीबीआई न्यायाधीश ने मामले को विवेकपूर्ण ढंग से सुना और विरोध उस न्यायिक आदेश से जुड़ा नहीं है जो सुनवाई और कारणों को दर्ज करने के बाद पारित किया गया था।
एडवोकेट सिंघवी ने प्रस्तुत किया कि, जांच के लिए यह है कि यदि न्यायाधीश मामले को सुनने में सक्षम नहीं था या वकीलों को बहस करने से रोका गया था, सुनवाई में ऐसी किसी बाधा का कोई उल्लेख नहीं है। मामले में दिया गया आदेश दोनों पक्षों की सहमति पर वर्चुअल मोड में सुना गया था।
कलकत्ता उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति अरिजीत बनर्जी की खंडपीठ नारदा घोटाला मामले में टीएमसी नेताओं फिरहाद हकीम, मदन मित्रा, सुब्रत मुखर्जी और सौवन चटर्जी के खिलाफ सीबीआई के मामले में जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
टीएमसी नेताओं ने 17 मई को विशेष सीबीआई अदालत द्वारा टीएमसी नेता को दी गई जमानत पर रोक लगाने वाले उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की थी। कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक नेताओं की गिरफ्तारी के बाद में कोर्ट के समक्ष पेशी जरूरी है। अगर ऐसा नहीं होता है तो इस तरह की घटनाओं से न्याय प्रणाली पर से लोगों का विश्वास खत्म हो जाएगा।