हत्या के दोषी को उम्रकैद से कम सजा नहीं दी जा सकती : इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2022-12-04 10:48 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में दिए गए एक फैसले में कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत हत्या के अपराध का दोषी पाए जाने पर आजीवन कारावास से कम कोई सजा नहीं हो सकती।

न्यायालय ने मध्य प्रदेश राज्य बनाम नंदू @ नंदुआ 2022 लाइवलॉ (एससी) 732 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए यह देखा। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यह फैसला सुनाया था कि आईपीसी की धारा 302 के तहत अपराध के लिए आजीवन कारावास से कम कोई भी सजा, आईपीसी की धारा 302 के लिए दंडनीय सज़ा के विपरित होगी।

जस्टिस महेश चंद्र त्रिपाठी और जस्टिस राजेंद्र कुमार-IV की पीठ ने हत्या के 3 दोषियों (न्यायालय के समक्ष अपीलकर्ता) को मेडिकल आधार पर उनकी रिहाई के तर्क को खारिज कर दिया, जिसमें उन्हें पहले से ही जेल में बिताई गई अवधि की सजा सुनाई गई।

इस मामले में आरोपी वकील कुरैशी, उवैश और आरफीन को ट्रायल कोर्ट ने मृतक (मुकीम) की हत्या करने का दोषी पाया था। मृतक के साथ दोषियों की पुरानी दुश्मनी भी थी, क्योंकि मृतक ने अपने भाई नईम (शिकायतकर्ता) की शादी में उन्हें आमंत्रित नहीं किया था।

संक्षेप में मामला

अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार अपीलकर्ता और मृतक के बीच पुरानी दुश्मनी होने के कारण, 30 मई 2014 की रात लगभग 10 बजे मुकीम (मृतक) अपने मामू के घर के सामने बैठा था और करम इलाही और ज़ाहिद से बात करते हुए अचानक अपीलकर्ता वहां आ गए और मृतक से कहा कि उसके भाई की शादी में उन्हें आमंत्रित न करके उसने समुदाय में उनका अपमान किया है और इसके बाद उन्होंने मृतक पर चाकुओं से हमला किया जिसमें उसने गंभीर रूप से घायल हो गए और उसकी मौत हो गई।

उपरोक्त घटना PW-1 (अभियोजन पक्ष के गवाह 1) नईम और PW-2 (अभियोजन पक्ष के गवाह 2) करम इलाही ने देखी थी। मुकदमे की सुनवाई के दौरान, उन्होंने अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन किया और उनके क्रॉस एक्ज़ामिनेशन में घटना के चश्मदीदों के रूप में उनकी विश्वसनीयता बरकरार रही।

चूंकि जहां तक ​​मृतक पर अपीलकर्ताओं द्वारा किए गए हमले का संबंध है, सबूत सुसंगत प्रतीत होते हैं, ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ताओं को आईपीसी की धारा 302/34 के तहत दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई। अपीलकर्ताओं ने अपनी सजा को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया।

हाईकोर्ट की टिप्पणियां

न्यायालय ने PW-1 और PW-2 (चश्मदीद गवाह) की गवाही की जांच की और पाया कि उनकी गवाही में कोई विरोधाभास या अतिशयोक्ति नहीं थी और आगे तथ्य के सभी गवाह उस तरीके के बारे में सुसंगत रहे जिसमें घटना घटित हुई।

पीठ ने कहा,

" हमने पूरे साक्ष्य को बहुत सावधानी से देखा है और कोई सामग्री विरोधाभास नहीं मिला है, जिससे अभियोजन पक्ष के मामले या व्यक्तिगत गवाह पर अविश्वास किया जा सके। मामूली विरोधाभास होते ही हैं, लेकिन यह अभियोजन पक्ष के लिए घातक नहीं होगा क्योंकि अभियोजन पक्ष ने आरोपी के अपराध को साबित करने के लिए भरोसेमंद गवाह पेश किया।"

इसके अलावा अदालत ने अभियुक्त-अपीलकर्ताओं द्वारा दिए गए तर्क को भी खारिज कर दिया कि चश्मदीद गवाह संबंधित गवाह/ रुचि रखने वाले गवाह थे क्योंकि यह नोट किया गया कि अगर ऐसे गवाहों के साक्ष्य में सच्चाई है तो यह ठोस, विश्वसनीय और भरोसेमंद है। केवल इस आधार पर अविश्वास नहीं किया जा सकता कि गवाह आपस में या मृतक से संबंधित हैं।

अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष ने रिकॉर्ड पर उपलब्ध साक्ष्य की सराहना करने के बाद साक्ष्य और मेडिकल आधार पर सभी उचित संदेह से परे अपीलकर्ताओं के अपराध को सफलतापूर्वक साबित कर दिया है और ट्रायल कोर्ट ने सही तरीके से उन्हें दोषी ठहराया और उपरोक्त के अनुसार अपीलकर्ताओं को सजा सुनाई।

इसलिए आपराधिक अपील योग्यता से रहित होने के कारण खारिज कर दी गई।


केस टाइटल- वकील कुरैशी और 2 अन्य वी. उत्तर प्रदेश राज्य [आपराधिक अपील नंबर - 4041/2018]

केस साइटेशन: 2022 लाइवलॉ (एबी) 516

आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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