केन्द्रीय मंत्री अजय मिश्रा के खिलाफ हत्या का मामला: इलाहाबाद HC ने पुनरीक्षणकर्ता के कानूनी उत्तराधिकारियों को राज्य के बरी किए जाने के खिलाफ दायर अपील में भाग लेने की अनुमति दी
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को संतोष गुप्ता (अब मृत) के कानूनी उत्तराधिकारियों को केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा ‘टेनी’ को बरी किए जाने वाले आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट के समक्ष राज्य की तरफ से दायर अपील में ‘पीड़ितों’ के रूप में भाग लेने की अनुमति दे दी है,गौरतलब है कि संतोष गुप्ता वर्ष 2000 के प्रभात गुप्ता मर्डर केस में शिकायतकर्ता थे, जिसमें केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा ‘टेनी’ मुख्य आरोपी हैं।
जस्टिस अताउ रहमान मसूदी और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने यह आदेश मूल पुनरीक्षणकर्ता (संतोष गुप्ता) के जीवित कानूनी उत्तराधिकारियों को रिकॉर्ड पर लाने वाले एक आवेदन में पारित किया, जिसने शिकायतकर्ता होने के नाते, बरी करने के फैसले के खिलाफ वर्ष 2005 में हाईकोर्ट के समक्ष एक रिविजन याचिका दायर की थी।
ज्ञात हो कि यह मामला वर्ष 2000 का है जब उभरते हुए छात्र नेता प्रभात गुप्ता की तिकोनिया (लखीमपुर खीरी) में उनके घर के पास गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस मामले में केंद्रीय मंत्री टेनी समेत 4 लोगों को आरोपी बनाया गया था। 2004 में निचली अदालत ने उन्हें बरी कर दिया था।
निचली अदालत के आदेश के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 397/401 के तहत एक रिविजन याचिका शिकायतकर्ता/संशोधनवादी(संतोष गुप्ता/मृतक प्रभात गुप्ता के पिता) द्वारा दायर की गई थी। रिविजन को फरवरी 2005 में स्वीकार किया गया था और बरी करने के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार द्वारा दायर आपराधिक अपील के साथ जोड़ दिया गया था।
राज्य द्वारा दायर पूर्वोक्त आपराधिक अपील से संबंधित आपराधिक पुनरीक्षण के लंबित रहने के दौरान, पुनरीक्षणवादी/संशोधनवादी का निधन हो गया और इस प्रकार, उसके कानूनी उत्तराधिकारियों को रिकॉर्ड पर लाया गया।
अपने आदेश में, न्यायालय ने कहा कि हाईकोर्ट के समक्ष पुनरीक्षण कार्यवाही सीआरपीसी की धारा 397 रिड विद 401 के तहत अनुरक्षणीय है और अभियुक्त व्यक्तियों के बरी होने से उत्पन्न होने वाली ऐसी कार्यवाही सामान्य रूप से पुनरीक्षणकर्ता की मृत्यु के साथ समाप्त हो जाती है, एक अपील के विपरीत जहां पीड़ित का प्रतिस्थापन सीआरपीसी की 394 के तहत अनुमत है,लेकिन पूर्वोक्त राज्य अपील की लंबितता के लिए।
न्यायालय ने वर्तमान मामले में आगे कहा राज्य द्वारा दायर संबंधित अपील उसी फैसले के खिलाफ लंबित है, इसलिए वर्तमान संशोधन को समाप्त करने का परिणाम अप्रासंगिक है और संशोधनवादी के कानूनी उत्तराधिकारियों को असहाय नहीं छोड़ता है।
कोर्ट ने कहा,‘‘संशोधनवादी के कानूनी उत्तराधिकारियों के पास पीड़ितों के रूप में राज्य द्वारा दायर लंबित आपराधिक अपील में भाग लेने का अवसर है, जिसके लिए संबंधित आपराधिक अपील में आवेदकों द्वारा एक समान आवेदन दायर किया गया है।’’
इसके साथ, आवेदन का निस्तारण करते हुए न्यायालय ने कानूनी उत्तराधिकारियों या उनमें से किसी एक को संबंधित आपराधिक अपील में पीड़ितों के रूप में भाग लेने की अनुमति दे दी। आरोपी प्रतिवादियों ने भी इसका विरोध नहीं किया।
अंत में, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि आवेदन के निस्तारण से यह संकेत नहीं मिलना चाहिए कि न्यायालय ने उन सभी संभावित स्थितियों में मामले को निपटाया है जहां भले ही राज्य द्वारा बरी किए जाने के आदेश के खिलाफ एक आपराधिक अपील दायर न की गई हो।
मामले की पृष्ठभूमि
टेनी के खिलाफ आरोप है कि उसका मृतक से पंचायत चुनाव को लेकर विवाद था और इसलिए मृतक की टेनी व सह आरोपी सुभाष उर्फ मामा ने गोली मारकर हत्या कर दी। यह राज्य का मामला है कि चश्मदीद गवाह की गवाही को ट्रायल कोर्ट ने नजरअंदाज कर दिया।
दूसरी ओर, टेनी का मामला यह है कि निचली अदालत ने कथित चश्मदीद गवाह की गवाही को विश्वसनीय नहीं पाया था और इसलिए, निचली अदालत ने उसे अपराध से बरी करके सही किया है।
यह ध्यान दिया जा सकता है कि पहले हाईकोर्ट की एक समन्वय पीठ ने अपील पर अंतिम रूप से सुनवाई की थी और 12 मार्च, 2018 को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। हालांकि, बाद में शिकायतकर्ता/आवेदक द्वारा दायर आवेदन पर खंडपीठ ने इस मामले को रिलीज कर दिया था क्योंकि छह महीने से अधिक समय के बाद भी फैसला नहीं सुनाया गया था और मामले को अंतिम सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का आदेश दिया गया।
इसके बाद चार साल बीत गए, लेकिन मामले की अंतिम सुनवाई नहीं हो सकी, इसलिए अंतिम सुनवाई के लिए अपील को जल्द सूचीबद्ध करने के लिए एक आवेदन 2022 में दायर किया गया था। 7 अप्रैल, 2022 को मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की एक दो सदस्यीय खंडपीठ ने निर्देश दिया कि मामले को उचित पीठ के समक्ष 16 मई, 2022 को अंतिम सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाए।
डिवीजन बेंच के आदेश के बावजूद मामले में फैसला नहीं सुनाया जा सका और मामले को कम से कम 8 बार (17 अक्टूबर, 2022 तक) स्थगित किया गया।
अक्टूबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने श्री टेनी की उस मांग को खारिज कर दिया,जिसमें वर्तमान सरकारी अपील को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ से प्रयागराज खंडपीठ में स्थानांतरित करने की मांग की गई थी। इसके बजाय, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की खंडपीठ ने हाईकोर्ट से अनुरोध किया कि वह 10 नवंबर, 2022 को हाईकोर्ट द्वारा दी गई तारीख पर निपटान के लिए अपील पर सुनवाई करे और इस पर दोनों पक्ष के सीनियर एडवोकेट द्वारा सहमति व्यक्त की गई।
अनिवार्य रूप से, इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली पीठ द्वारा सरकार की अपील को स्थानांतरित करने की मांग वाली उनकी याचिका को खारिज करने के बाद मिश्रा ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। उन्होंने इस आधार पर स्थानांतरण की मांग की थी कि उनका प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील आमतौर पर इलाहाबाद में रहते हैं और उनकी वृद्धावस्था के कारण, उनके लिए तर्क देने के लिए लखनऊ जाना संभव नहीं होगा।
इस संबंध में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि वरिष्ठ वकील (मिश्रा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं) लखनऊ आने में असमर्थ हैं, तो उक्त वकील को वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से दलीलें देने की अनुमति देने के अनुरोध पर हाईकोर्ट द्वारा विचार किया जा सकता है।
प्रतिनिधित्व-
संशोधनवादी के वकील-सुशील कुमार सिंह, अरमेंद्र प्रताप सिंह, प्रदीप चौरसिया
प्रतिवादी पक्ष के वकील-सरकारी वकील, राजीव दुबे
केस टाइटल - संतोष गुप्ता बनाम यूपी राज्य व 4 अन्य,आपराधिक रिविजन नंबर -221/2004
साइटेशन- 2023 लाइव लॉ (एबी) 63
आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें