'कानून के शासन में बाधा डालने की कोशिश': मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने जजों पर 'मनगढ़ंत' आरोप लगाने पर वकील पर 4 लाख रुपये का जुर्माना
पूर्व चीफ जस्टिस द्वारा शुरू की गई स्वत: संज्ञान वाली आपराधिक अवमानना कार्यवाही में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इंदौर पीठ के न्यायाधीशों के खिलाफ 'निंदनीय' टिप्पणी करने वाले वकील पर 4 लाख रुपये की भारी राशि का जुर्माना लगाया।
41 वर्षीय वकील को अदालत की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 2 (सी) के तहत अवमानना का दोषी ठहराते हुए डिवीजन बेंच ने अदालत के अधिकारी और अवमाननाकर्ता मनोज कुमार श्रीवास्तव को भी कदाचार के लिए कड़ी फटकार लगाई।
अदालत ने कहा,
“वकील होने के नाते प्रतिवादी केवल अपने मुवक्किल का एजेंट या नौकर नहीं है, बल्कि वह अदालत का अधिकारी भी है। उनका न्यायालय के प्रति कर्तव्य है। वकील के कृत्य से अधिक गंभीर कुछ नहीं हो सकता है यदि वह कानून के प्रशासन में बाधा डालता है, या रोकता है, या ऐसे प्रशासन में लोगों के विश्वास को नष्ट करता है…”
एम.बी. में सांघी, एडवोकेट बनाम पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट (1991), सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि वकील, जिसे 'बेहतर पता होना चाहिए', उसको 'छोटे लाभ हासिल करने' के लिए न्यायिक स्वतंत्रता की अवधारणा के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने 1991 में कहा था,
"...यह केवल न्यायिक स्वतंत्रता के शहीदों और संस्था के प्रति सम्मान की कमी को दर्शाता है।"
चीफ जस्टिस रवि मलिमथ और जस्टिस विशाल मिश्रा की खंडपीठ ने कहा कि प्रधान रजिस्ट्रार (न्यायिक) द्वारा अग्रेषित सात पत्रों में से चार में इस्तेमाल की गई भाषा से न्याय प्रशासन में बाधा डालने और रोकने के लगातार प्रयासों का पता चलता है। अदालत ने उस तरीके पर भी असंतोष व्यक्त किया जिस तरह से बार-बार चेतावनी के बावजूद अवमाननाकर्ता ने अपने कार्यों के लिए कोई पछतावा नहीं दिखाया। संविधान के अनुच्छेद 215 के तहत हाईकोर्ट की शक्तियों का प्रयोग करते हुए डिवीजन बेंच ने अवमाननाकर्ता पर उचित दंड लगाना उचित समझा।
खंडपीठ ने कहा,
“जब मामले को अंतिम विचार के लिए ले जाया गया तो प्रतिवादी-अभियुक्त को अपने कार्यों के लिए खेद नहीं है, बल्कि आक्रामक तरीके से उन्होंने कहा कि उन्होंने पहले ही जवाब और आवेदन दाखिल कर दिए हैं, जिन पर विचार किया जा सकता है। वह अब और बहस नहीं करना चाहते। उनके द्वारा कोई बिना शर्त माफी नहीं मांगी गई है और कार्यवाही रद्द करने के लिए उनके द्वारा कोई प्रार्थना नहीं की गई...''
पीठासीन न्यायाधीशों ने प्रतिवादी अवमाननाकर्ता पर जुर्माना लगाने के लिए पुन: विजय कुर्ले और अन्य, (2021) और पुन: पेरी कंसाग्रा, 2022 लाइवलॉ (एससी) 576 में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर भी भरोसा किया। प्रतिवादी को केवल तभी जेल की सजा काटनी होगी यदि वह आदेश की घोषणा की तारीख से एक महीने के भीतर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के साथ जुर्माना जमा करने में विफल रहता है।
अदालत प्रतिवादी द्वारा उसके अवमाननापूर्ण कार्यों के लिए किसी भी उचित औचित्य के बारे में अदालत को आश्वस्त करने के बजाय न्यायाधीशों को आपराधिक अवमानना कार्यवाही में पक्षकार के रूप में शामिल करने के लिए दायर अंतरिम आवेदन से भी खुश नहीं है। अदालत ने कहा कि यह प्रयास ही मामले को लेकर प्रतिवादी की विवादित मानसिकता को दर्शाता है। पचास लाख रुपये के मुआवजे की मांग को लेकर दायर अन्य अंतरिम आवेदन के संबंध में डिवीजन बेंच ने बताया कि इसे तब तक बरकरार नहीं रखा जा सकता जब तक कि उनके खिलाफ शुरू की गई सभी सात अलग-अलग अवमानना कार्यवाहियों में आरोप हटा नहीं दिए जाते।
अवमाननाकर्ता के प्रति कोई और नरमी दिखाने से इनकार करने के बाद अदालत ने आदेश में इस प्रकार उल्लेख किया:
"... वकील और अदालत का अधिकारी होने के नाते उन्हें आवेदनों/शिकायतों में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा और अदालत के सामने कैसे पेश होना और बहस करनी है। इसकी जानकारी होनी चाहिए।"
मामले की पृष्ठभूमि
अवमानना की कार्यवाही 2013 की है, जब प्रधान रजिस्ट्रार (न्यायिक) ने अवमानना कार्यवाही शुरू करने के लिए नोटशीट प्रस्तुत की थी, जिसे तब पूर्व चीफ जस्टिस द्वारा अनुमोदित किया गया था। उक्त नोट शीट का आधार कुछ न्यायाधीशों के खिलाफ अवमाननाकर्ता द्वारा दायर पत्रों/शिकायतों की श्रृंखला थी, जिसमें मामलों में शामिल पक्षों के प्रति पूर्वाग्रह, कुछ पक्षकारों और वकीलों को बचाने के लिए कुछ मामलों की सुनवाई से इनकार करने और मनमाने आदेश जारी करने का आरोप लगाया गया था। शिकायत में याचिकाकर्ता ने यह भी कहा था कि उसके जीवन और स्वतंत्रता को आसन्न खतरा है। वर्तमान मामले में कुल सात अवमानना मामलों में से चार ऐसी शिकायतों के आधार पर प्रतिवादी को चार अवमानना कार्यवाहियों में दोषी पाया गया। ये पत्र अवमाननाकर्ता द्वारा 25.07.2011 से 25.09.2012 की समयावधि के दौरान लिखे गए।
केस टाइटल: संदर्भ में बनाम मनोज कुमार श्रीवास्तव
केस नंबर: अवमानना याचिका (आपराधिक) नंबर 1 - 7, 2013
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