पुलिस बल के अंदर सांप्रदायिकता रोकने के लिए समिति का गठन करने की मांग करने वाली याचिका पर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने नोटिस जारी किया
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने गुरुवार को उस याचिका पर नोटिस जारी किया जिसमें मांग की गई है कि राज्य में पुलिस बल के भीतर बढ़ती ''सांप्रदायिकता'' की चिंता का समाधान करने के लिए विशेष समिति का गठन किया जाए।
जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की बेंच ने याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य को नोटिस जारी किया है। इस मामले की अगली सुनवाई 30 जून को होगी।
अधिवक्ता दीपक बुंदेला ने यह दायर याचिका दायर की है, जिसमें यह भी मांग की गई है कि राज्य में एक ''पुलिस शिकायत प्राधिकरण'' का गठन भी किया जाए।
बुंदेला ने एडवोकेट एहतेशाम हाशमी के माध्यम से यह याचिका हाईकोर्ट के समक्ष दायर की है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि कुछ पुलिसकर्मियों ने उस पर हमला करते हुए उसे बुरी तरह से घायल कर दिया था। इन पुलिसकर्मियों में कपिल सौराष्ट्र नाम का पुलिसकर्मी भी शामिल था, जिसने बुंदेला को गलती से मुस्लिम समझ लिया था।
याचिका में बताया गया है कि इस घटना वाले दिन वह अपनी मधुमेह और रक्तचाप के की दवाई लेने के लिए अस्पताल जा रहा था, तभी सौराष्ट्र ने उसे धारा 144 का आदेश लागू होने का हवाला देकर रोक लिया। उसके बाद उसके साथ-साथ भारतीय संविधान को भी अपमानित किया गया। इतना ही नहीं उसके साथ बुरे तरीके से मारपीट भी की गई। यह भी आरोप लगाया गया कि इस घटना के कुछ दिन बाद बीएस पटेल सूनी और रघुवंशी नाम के दो पुलिसकर्मियों उसका बयान दर्ज करने के नाम पर उसके घर आए थे, परंतु उन्होंने उसका बयान दर्ज करने की बजाय उस पर दबाव बनाने की कोशिश की ताकि वह अपनी शिकायत वापस ले ले।
यह भी बताया गया कि जब यह दो पुलिसकर्मी उसके घर आए जो उसे बताया कि सौराष्ट्र, एक कट्टर हिंदूवादी है। इसलिए उसने गलती से याचिकाकर्ता को मुस्लिम समझ लिया था और पूरी घटना इसी गलतफहमी के कारण हो गई थी।
याचिका के अनुसार दोनों पुलिसकर्मियों ने कहा था कि-
''हमें आपके से कोई दुश्मनी नहीं है। जब भी कोई हिंदू-मुस्लिम दंगा होता है, तो पुलिस हमेशा हिंदुओं का समर्थन करती है, यहां तक कि मुसलमान भी यह जानते हैं, लेकिन आपके साथ जो भी हुआ,वो अज्ञानता के कारण हुआ। उसके लिए मेरे पास कोई शब्द नहीं हैं।'' इसलिए याचिकाकर्ता ने अब हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, जिसमें कथित पुलिस कर्मियों के खिलाफ पर्याप्त जांच करवाने की मांग के साथ-साथ उपर्युक्त उपचार की भी मांग की गई है।"
दलील दी गई है कि प्रतिवादियों ने संविधान के अनुच्छेद 15 (1) का उल्लंघन करते हुए आईपीसी की धारा 323,324,341,293 और 506 के तहत अपराध किया है। याचिका में कहा गया है कि ''राज्य और देश में पुलिस की बर्बरता की घटनाएं बढ़ रही हैं और तथ्यों के साथ यह स्पष्ट है कि पुलिस बल में सांप्रदायिक तत्व मौजूद हैं। राज्य के साधन या यंत्र के रूप में पुलिस बल को संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखना चाहिए और पुलिस द्वारा धर्म के आधार पर भेदभाव करना भारत के संविधान के जनादेश के खिलाफ है।
किसी भी परिस्थिति में राज्य का कोई साधन या यंत्र भारत के संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन नहीं कर सकता है।'' यह भी आरोप लगाया गया है कि याचिकाकर्ता को पुलिस ने गलत तरीके से रोका था। भले ही धारा 144 लागू की गई थी परंतु व्यक्तिगत आवाजाही पर कोई प्रतिबंध और कर्फ्यू नहीं लगाया था।