एमपी हाईकोर्ट ने सरकारी अस्पताल के खिलाफ मेडिकल लापरवाही को लेकर दायर याचिका खारिज की, दस हजार रूपये का जुर्माना लगाया

Update: 2022-03-10 06:28 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट, इंदौर खंडपीठ ने हाल ही में दो याचिकाओं को खारिज कर दिया। इन याचिकाओं में कथित लापरवाही के लिए एक सरकारी अस्पताल के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी। उक्त लापरवाही के कारण अस्पताल में ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित हुई। इससे 17 मरीजों की मौत हो गई।

जस्टिस विवेक रूस और जस्टिस अमर नाथ (केशरवानी) की खंडपीठ पीआईएल की प्रकृति में दो रिट याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। इसमें याचिकाकर्ता निर्दोष लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ आपराधिक और अनुशासनात्मक कार्रवाई की मांग कर रहे थे।

इसके साथ ही याचिका में पीड़ित परिवार के सदस्यों को मुआवजा दिए जाने की भी मांग की गई। अंतरिम राहत के रूप में उन्होंने एक सेवानिवृत्त हाईकोर्ट के न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली एक स्वतंत्र एजेंसी द्वारा जांच की भी मांग की।

मामले के तथ्य यह है कि एक स्थानीय समाचार पत्र द्वारा एक समाचार प्रकाशित किया गया कि 21-22.06.2017 की रात को महाराजा यशवंतराव अस्पताल (एमवाई अस्पताल) के विभिन्न वार्डों में ऑक्सीजन की आपूर्ति में व्यवधान के कारण 17 लोगों की मौत हो गई। तत्कालीन आयुक्त, इंदौर और साथ ही अधीक्षक एम.वाई. अस्पताल ने इन मौतों के पीछे उपरोक्त कारणों से इनकार किया।

अस्पताल के प्रबंधन ने एक आंतरिक जांच की और निष्कर्ष निकाला कि सभी 17 रोगियों की स्थिति गंभीर थी और उनकी मृत्यु बीमारी के कारण हुई न कि ऑक्सीजन की कमी के कारण। यह माना गया कि पूरे अस्पताल में ऑक्सीजन की आपूर्ति में ऐसा कोई व्यवधान नहीं था। अस्पताल के चिकित्सा अधिकारी ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि याचिका में लगाए गए आरोप निराधार हैं और केवल सरकार द्वारा मुफ्त में दी जाने वाली चिकित्सा सुविधाओं को बदनाम करने के लिए लगाए गए हैं। राज्य ने न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया कि मृतक के परिवार में से किसी ने भी पुलिस या अस्पताल के प्रबंधन से कोई शिकायत नहीं की। इसलिए, याचिकाएं खारिज किए जाने योग्य हैं।

रिकॉर्ड पर पक्षकारों और दस्तावेजों के प्रस्तुतीकरण पर गौर करते हुए कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने केवल एक समाचार रिपोर्ट के आधार पर न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

कोर्ट ने कहा,

ये रिट याचिकाएं (PIL) केवल विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचारों पर आधारित हैं। इनमें एमवाई अस्पताल में 17 रोगियों की मृत्यु का संदेह है। ऑक्सीजन सप्लाई बाधित होने से अस्पताल कागजी खबरों के अलावा इन याचिकाओं में आरोपों के समर्थन में एक भी सामग्री दाखिल नहीं की गई। याचिकाकर्ताओं ने माना कि मौत ऑक्सीजन की आपूर्ति में कमी, भ्रष्टाचार, लापरवाही आदि के कारण हुई। अखबार एजेंसियों या आम जनता के लिए सरकारी संस्थानों को दोष देना बहुत आसान है।

कोर्ट ने आगे कहा कि इस तरह के गंभीर आरोप लगाने से पहले याचिकाकर्ताओं को एक बुनियादी जांच करनी चाहिए।

कोर्ट ने कहा,

सरकार उन लोगों को मुफ्त चिकित्सा सुविधा प्रदान करने के लिए इतनी राशि खर्च कर रही है जो एक निजी अस्पताल में महंगा इलाज नहीं कर सकते हैं। इसलिए, समाचार पत्र में और साथ ही रिट याचिका के माध्यम से इस तरह के गंभीर आरोप लगाने से पहले एक बुनियादी जांच होनी चाहिए आयोजित किया गया।

कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादियों ने अस्पताल द्वारा प्रदान की जाने वाली क्षमता और सुविधाओं के संबंध में विस्तृत जवाब दिया। कोर्ट ने आगे उनके सबमिशन पर ध्यान दिया कि 17 रोगियों में से प्रत्येक की स्थिति गंभीर थी और बीमारी के कारण उनकी मृत्यु हो गई। न्यायालय ने यह भी देखा कि विभिन्न विभागों के छह सरकारी अधिकारियों ने संयुक्त रूप से ऑक्सीजन संयंत्र का निरीक्षण किया और पाया कि ऑक्सीजन की आपूर्ति में कोई खराबी नहीं थी और साथ ही व्यवधान भी नहीं था।

कोर्ट ने कहा कि उसके पास उनकी रिपोर्टों पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है। इसलिए, समाचार पत्रों के आधार पर संबंधित जनहित याचिका पर सुनवाई करना कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग के अलावा और कुछ नहीं था।

तदनुसार, कोर्ट ने कहा,

ये दो रिट याचिकाएं वर्ष 2017 में दायर की गई थीं और कई बार इन सभी याचिकाओं को इस न्यायालय के समक्ष सूचीबद्ध किया गया, क्योंकि अखबार के रिपोर्टर ने मान लिया कि मौत ऑक्सीजन की आपूर्ति में व्यवधान के कारण हुई। इस तरह के आक्षेप के कारण तबाही हुई है और याचिकाकर्ता मामले की जांच किए बिना ही मौत को लेकर चिंता जताते हुए ये रिट याचिकाएं दाखिल कर इस अदालत में पहुंचे हैं। यदि मामला लापरवाही से हुआ होता तो पुलिस स्वत: संज्ञान लेकर एफआईआर दर्ज कर लेती, लेकिन कोई मामला दर्ज नहीं किया गया। पुलिस या एम.वाई. अस्पताल के प्रबंधन से कोई शिकायत नहीं की गई। इसलिए, हम इन याचिकाओं पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं।

उपरोक्त टिप्पणियों के साथ अदालत ने याचिकाकर्ताओं पर 10,000 रुपये का जुर्माना लगाते हुए याचिकाओं को खारिज कर दिया। कोर्ट ने निर्देश दिया कि यह राशि अस्पताल को जाएगी।

केस शीर्षक: प्रमोद कुमार बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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