'बहुलतावादी देश में सांस्कृतिक एकरूपता लादने की कोशिश': नारीवादी और लोकतांत्रिक समूहों ने हिजाब पहनने वाली मुस्लिम महिलाओं को निशाना बनाने की निंदा की
देश भर के सैकड़ों नारीवादी और नागरिक अधिकार लोकतांत्रिक संगठनों ने गुरुवार को एक बयान जारी कर कर्नाटक के शैक्षणिक संस्थानों में मुस्लिम छात्राओं को हिजाब पहनने पर निशाना बनाने और उन्हें बेदखल करने की निंदा की है। शिक्षाविदों, वकीलों और कार्यकर्ताओं सहित 1,750 से अधिक व्यक्तियों ने बयान पर हस्ताक्षर किया है।
पत्र में कहा गया है, "हिंदू वर्चस्ववादियों द्वारा मुस्लिम महिलाओं की "ऑनलाइन नीलामी" आयोजित करने और उनकी यौन और प्रजनन दासता का आवाह्न करने के बाद हिजाब बैन मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ रंगभेद लागू करने और उन पर हमला करने का नया बहाना है।"
उल्लेखनीय है कि कि हाल ही में बुल्ली बाई ऐप पर राजनीतिक रूप से मुखर कई मुस्लिम महिलाओं की नीलामी किए जाने का मामला सामने आया था। ऐप पर प्रमुख महिला पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और वकीलों की वर्चुअन नीलामी के लिए कई तस्वीरों में भी छेड़छाड़ की गई थी।
पत्र में कर्नाटक में क्लास और कैंपस में हिजाब पर बैन लगाने की निंदा की गई है और कहा गया कि इस तरह की प्रथा एक हेट क्राइम है और मुस्लिम महिलाओं पर रंगभेद थोपने का नवीनतम बहाना है। आगे कहा गया है कि हिंदू वर्चस्ववादियों ने विभिन्न बहाने- गोमांस, मुसलमानों की सामूहिक प्रार्थना, अज़ान, टोपी और उर्दू भाषा पर मुसलमानों को पीटना/अलग करना/बहिष्कार करना जारी रखा है।
पत्र में कर्नाटक के मांड्या के हालिया वीडियो का जिक्र किया गया है, जिसमें भगवा स्टोल पहने लड़कों की भीड़ ने एक हिजाब पहनी मुस्लिम लड़की को घेर लिया था और उसे परेशान किया। बयान ने रेखांकित किया कि यह घटना 'एक चेतावनी है कि कैसे हिजाब आसानी से मुसलमानों पर भीड़ का हमला करने के लिए अगला बहाना बन सकता है।'
एक बहुलतावादी देश पर सांस्कृतिक एकरूपता थोपने का साधन यूनिफॉर्म नहीं
पत्र में इस बात पर जोर दिया गया है कि संविधान स्कूलों और कॉलेजों में बहुलता के पोषण को अनिवार्य करता है, न कि एकरूपता को। ऐसे संस्थानों में यूनिफॉर्म विभिन्न और असमान आर्थिक वर्गों के बीच अंतर को कम करने के लिए होती है। पत्र में कहा गया है कि मुस्लिम महिलाओं को यूनिफॉर्म के साथ हिजाब पहनने की अनुमति दी जानी चाहिए।
पत्र में आगे कहा गया है कि उडुपी में कम से कम एक कॉलेज की रूल बुक में मुस्लिम महिलाओं को हिजाब पहनने की अनुमति दी गई है, जब तक कि वे वर्दी के रंग से मेल खाती है। यह तर्क देते हुए कि भगवा स्टोल और हिजाब दोनों पर प्रतिबंध लगाना उचित या न्यायसंगत समाधान नहीं है, बयान में आगे जोर दिया गया कि हिंदू वर्चस्ववादियों द्वारा मुस्लिम महिलाओं को डराने के लिए भगवा स्टोल का इस्तेमाल किया गया था।
हिंदू वर्चस्ववादियों ने मुस्लिम महिलाओं को डराने के लिए भगवा स्टोल का इस्तेमाल किया
पत्र में कहा गया है, "यह हिजाब नहीं है जिसने मौजूदा उथलपुथल को जन्म दिया है। यह हिंदू-वर्चस्ववादी संगठन हैं जिन्होंने हिजाब पर प्रतिबंध लगाने की मांग के लिए भगवा स्टोल के साथ प्रदर्शन करके सद्भाव को बाधित किया है। भगवा स्टोल और हिजाब दोनों पर प्रतिबंध लगाना उचित समाधान नहीं है क्योंकि भगवा स्टोल का एकमात्र उद्देश्य हिजाब पर प्रतिबंध लगाना और मुस्लिम महिलाओं को डराना है।"
हिजाबी महिलाओं को अलग-अलग कक्षाओं में बिठाना रंगभेद के अलावा और कुछ नहीं है
बयान में आगे कहा गया है कि हिजाब पहने मुस्लिम महिलाओं को अलग-अलग कक्षाओं में बैठाना रंगभेद की श्रेणी में आता है। आगे यह भी कहा गया कि हिंदू वर्चस्ववादियों ने मुस्लिम और हिंदू महिलाओं दोनों के खिलाफ पितृसत्तात्मक हेट क्राइम्स किए हैं।
'आतंकवाद समूहों' के साथ कथित संबंधों की जांच के लिए हिजाबी महिलाओं के फोन रिकॉर्ड की जांच के आदेश देने के कर्नाटक के गृह मंत्री के फैसले की कड़ी निंदा की गई है।
ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वूमेन एसोसिएशन, ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव वीमेन्स एसोसिएशन, नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वूमेन, बेबाक कलेक्टिव, सहेली विमेंस रिसोर्स सेंटर, आवाज ए निजवान, नेशनल अलायंस ऑफ पीपुल्स मूवमेंट्स, सहित 15 राज्यों के 130 से अधिक समूहों ने पत्र का समर्थन किया।
पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में कविता कृष्णन, मरियम धवले, एनी राजा, अरुणा रॉय, राधिका वेमुला, मनुजा प्रदीप, सफूरा जरगर, हसीना खान, अजिता राव, खालिदा परवीन, उमा चक्रवर्ती, सुजाता सुरेपल्ली, वृंदा ग्रोवर, वर्जीनिया सल्दान्हा सतनाम कौर, साधना आर्य, चयनिका शाह, पौशाली बसाक, निवेदिता मेनन, सूसी थारू, प्रभात पटनायक, राधिका सिंघा, अमृता चच्ची आदि शामिल हैं।