''नाबालिग लड़की आरोपी के साथ उसकी पत्नी बनकर रह रही'': मेघालय हाईकोर्ट ने 'व्यावहारिक' दृष्टिकोण अपनाते हुए POCSO केस रद्द किया
मेघालय हाईकोर्ट ने हाल ही में एक व्यक्ति के खिलाफ लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (The Protection Of Children From Sexual Offences Act, 2012) (POCSO) मामले में दर्ज एफआईआर और आपराधिक कार्यवाही रद्द करते हुए कहा कि आरोपी व्यक्ति और पीड़ित-पत्नी (एक नाबालिग) पति-पत्नी के रूप में एक-दूसरे के साथ रह रहे हैं।
जस्टिस डब्ल्यू डिएंगदोह की खंडपीठ ने जोर देकर कहा कि हालांकि पॉक्सो एक्ट नाबालिग के साथ किए सेक्सुअल पेनिट्रेशन के कृत्य को दंडित करता है, फिर भी, अगर शादी के बंधन के तहत सहमति से सेक्स करने जैसे अन्य कारकों को ध्यान में नहीं रखा जाएगा तो न्याय का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाएगा।
पीठ ने कहा,
''पॉक्सो एक्ट पेनेट्रेटिव सेक्सुअलएसॉल्ट और ऐग्रावेटिड पेनेट्रेटिव सेक्सुअलएसॉल्ट की बात करता है, यह इंगित करने के लिए कि एक नाबालिग के साथ किया गया सेक्सुअल पेनिट्रेशन का एक कृत्य उक्त अधिनियम के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत उसी के लिए दंड को आकर्षित करेगा। हालांकि, ऐसे मामले में जहां अन्य उपस्थित कारक हैं,जैसे सहमति से सेक्स करना या शादी के बंधन के तहत सेक्स करना,यद्यपि उन व्यक्तियों के बीच जो अभी भी नाबालिग हैं या जिनमें से एक नाबालिग है, को सही परिप्रेक्ष्य में ध्यान में नहीं रखा जाएगा तो न्याय का लक्ष्य या कोर्स पूरा नहीं किया जा सकता है, लेकिन लेटर ऑफ लॉ पूरा हो जाएगा।''
संक्षेप में मामला
वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता नंबर 1 (पति) याचिकाकर्ता नंबर 2 (एक नाबालिग लड़की) के साथ दिसंबर 2020 से पति-पत्नी की तरह रह रहा था। इस रिश्ते को दोनों के घरवालों ने भी मंज़ूरी दी थी। याचिकाकर्ता नंबर 2 इस मामले में प्रतिवादी नंबर 2 की बेटी है।
जब याचिकाकर्ता नंबर 2 (नाबालिग लड़की/पत्नी) गर्भवती हो गई, तो आरोपी (याचिकाकर्ता नंबर 1) उसे स्थानीय सीएचसी लेकर गया और उसके गर्भवती होने की पुष्टि होने पर अस्पताल के अधिकारी ने पुलिस को मामले की जानकारी दी।
इसके चलते पुलिस ने नाबालिग लड़की के घर का दौरा किया और पुलिस द्वारा उसको राजी करने के बाद, उसने अपने पति के खिलाफ पॉक्सो एक्ट, 2012 (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम की धारा 5 (जे) (ii) (क्यू)/6 के तहत अपनी इच्छा के खिलाफ उक्त एफआईआर दर्ज करवा दी। अब दोनों ने इस प्रकार दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग करते हुए न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
उन्होंने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि कानून से अनभिज्ञ होने के कारण, वे दोनों पति-पत्नी के रूप में एक साथ रह रहे थे और अब, वे खुशी-खुशी एक संपूर्ण पारिवारिक जीवन जी रहे हैं। याचिकाकर्ता नंबर 1 परिवार का कमाने वाला अकेला सदस्य है और यदि उसके खिलाफ मामला आगे बढ़ाया जाता है तो उनके परिवार को बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ेगा।
न्यायालय की टिप्पणियां
अदालत ने इस तथ्य को ध्यान में रखा कि लड़की ने व्यावहारिक रूप से इस तथ्य को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था कि उसके पति का कृत्य पॉक्सो एक्ट, 2012 के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत अपराध का गठन करता है।
इसके अलावा इस बात पर जोर देते हुए कि पॉक्सो एक्ट के प्रावधानों के तहत कानून की कठोरता के बावजूद, मामले के कुछ व्यावहारिक पहलुओं पर विचार किया जाना चाहिए, अदालत ने इस प्रकार टिप्पणी कीः
''यहां ठीक वही स्थिति है जहां एक नाबालिग लड़की जो परिवार के सदस्यों के आशीर्वाद से पति-पत्नी के रूप में एक पुरुष के साथ रह रही है और उसके पति पर केवल उसके 18 वर्ष से कम उम्र की होने के कारण पॉक्सो एक्ट के तहत मुकदमा चलाया जा रहा है। दरअसल, मौजूदा मामले में नाबालिग लड़की की उम्र करीब 17 साल 7 महीने बताई गई है जो कथित अपराध की रिपोर्ट के वक्त 18 साल से महज 5 महीने कम थी।''
नतीजतन, मामले को व्यावहारिक दृष्टिकोण (प्रयोजनात्मक उपागम) से देखते हुए, न्यायालय को यह विश्वास हो गया कि न्याय का लक्ष्य तभी पूरा होगा जब तत्काल मामले को रद्द करने के लिए अदालत सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करेगी और तदनुसार, न्यायालय ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर याचिका को अनुमति दे दी।
केस टाइटल- ओलियस मावियोंग व अन्य बनाम मेघालय राज्य व अन्य,[Crl.Petn. No. 22 of 2022]
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