हाई स्पीड में गाड़ी चलाना रैश ड्राइविंग या लापरवाही नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

Update: 2023-03-22 11:19 GMT

Bombay High Court

“हाई स्पीड में गाड़ी चलाना रैश ड्राइविंग या लापरवाही से गाड़ी चलाने की श्रेणी में नहीं आता।“

एक कार ड्राइवर को लापरवाही से गाड़ी चलाने और रैश ड्राइविंग के आरोपों से बरी करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने ये टिप्पणी की।

जस्टिस एसएम मोदक की सिंगल बेंच ने कहा कि लापरवाही से गाड़ी चलाने और रैश ड्राइविंग के अपराध के लिए ड्राइवर की लापरवाही और रैश को संतुष्ट करने की जरूरत है. हाई स्पीड शब्द का मतलब लापरवाही या रैश ड्राइविंग नहीं है।

जज ने आगे कहा कि रैश ड्राइविंग का मतलब है, तेज स्पीड में गाड़ी चलाते समय लापरवाही की गई हो यानी ध्यान से ड्राइविंग न की गई हो।

केस के मुताबिक, आरोपी यानी ड्राइवर हाई स्पीड में कार चला रहा था। तभी उसके सामने एक साइकिल चालक और बैलगाड़ी आ गई। उसके कार ने उन्हें टक्कर मारी। इस दुर्घटना में साइकिल चालक और बैल की मौत हो गई थी। कार चालक के खिलाफ IPC की विभिन्न धाराओं और मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 134 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया। मामला ट्रायल कोर्ट पहुंचा।

अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि कार ड्राइवर हाई स्पीड में कार चला रहा था। ट्रायल कोर्ट ने साल 2009 में आरोपी को बरी कर दिया था। पीड़ित पक्ष ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की।

कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं। फैसले में कहा कि केवल कार की स्पीड रैश ड्राइविंग और लापरवाही से गाड़ी चलाने के अपराध को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है।

आगे कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि कार की स्पीड तेज थी। लेकिन रैश ड्राइविंग साबित करने के लिए और सबूत की जरूर है।

बेंच ने ये भी कहा कि मौजूद सबूतों को देख कर कोर्ट ये नहीं बता सकता कि कार और बैलगाड़ी किस दिशा में जा रहे थे। और कैसे एक-दूसरे से टकराईं। ट्रायल कोर्ट ने भी ठीक से जांच नहीं की। अगर किसी सबूत पर संदेह था तो गवाहों से पूछकर उसे स्प्षट किया जा सकता था। यहां तक कि बैलगाड़ी चलाक के बयानों की पुष्टि के लिए भी कोई सबूत उपलब्ध नहीं है।

हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के बरी करने के आदेश को बरकरार रखा और कहा कि हाई स्पीड में गाड़ी चलाना रैश ड्राइविंग या लापरवाही नहीं है।

केस टाइटल: कुलदीप सुभाष पवार बनाम महाराष्ट्र राज्य




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