केवल किसी को 'मरने के लिए कहना'आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं, क्षणिक आवेश में कहे गए शब्द सही मायने में नहीं दिखते: तेलंगाना हाईकोर्ट

Update: 2023-09-27 14:16 GMT

तेलंगाना हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि केवल 'जाओ और मरो' कहना उकसावे की श्रेणी में नहीं आएगा, जैसा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306 के तहत परिभाषित है।

जस्टिस के लक्ष्मण और जस्टिस के सुजाना की खंडपीठ ने दोहराया कि बहस के दौरान आदान-प्रदान किए गए शब्द 'पल के आवेग' में कहे गए हैं। इन्हें 'मनुष्य के इरादे' के रूप में नहीं माना जा सकता।

खंडपीठ ने कहा,

"केवल "जाओ और मर जाओ" शब्द कहना आईपीसी की धारा 306 के तहत अपराध नहीं माना जाएगा। भले ही हम अभियोजन पक्ष की कहानी को स्वीकार कर लें कि अपीलकर्ता ने मृतक को "जाओ और मर जाओ" के लिए कहा था, लेकिन यह स्वयं "उकसाना" के अवयवों का गठन नहीं करता है। ... यह सामान्य ज्ञान है कि झगड़े में या मौके पर कहे गए शब्दों को गलत इरादे से नहीं कहा जा सकता। वर्तमान मामले में भी अभियोजन पक्ष आपराधिक इरादे को साबित करने में विफल रहा है।"

डिवीजन बेंच ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने सबूतों में विरोधाभासों पर विचार किए बिना केवल उसके बयान के आधार पर आरोपी को दोषी ठहराया, जिसमें उसने मृतक को जहर पीकर अपना जीवन समाप्त करने के लिए कहा था।

अपीलकर्ता द्वारा अनुसूचित जनजाति समुदाय की महिला का कथित तौर पर यौन उत्पीड़न किया गया, जिसके कारण उसने आत्महत्या कर ली। इस प्रकार अपीलकर्ता को ट्रायल कोर्ट द्वारा आईपीसी की धारा 417 और 306 और एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3(2)(v) के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया गया।

इस फैसले को चुनौती देते हुए अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट का रुख किया।

अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि आरोपी ने जातिगत मतभेदों के कारण उससे शादी करने से इनकार करके उसे आत्महत्या के लिए उकसाया और उसे 'मर जाने' के लिए कहा। आरोपी और मृतक के बीच विवाद थे और आरोपी के खिलाफ मृतक को कथित रूप से परेशान करने के लिए पहले भी आपराधिक मामला दर्ज किया गया था।

बचाव पक्ष ने दलील दी कि पीड़ित पक्ष उचित संदेह से परे आरोपियों के खिलाफ आरोपों को साबित करने में विफल रहा। उन्होंने तर्क दिया कि सबूत निर्णायक रूप से यह स्थापित नहीं करते हैं कि आरोपी के कार्यों के कारण पीड़िता ने आत्महत्या की। इसके अतिरिक्त, गवाहों द्वारा उपलब्ध कराए गए सबूतों में विसंगतियां और विरोधाभास है।

न्यायालय ने आईपीसी की धारा 107 के तहत उकसाने की परिभाषा की जांच की और इस बात पर जोर दिया कि आईपीसी की धारा 306 के तहत उकसावे को स्थापित करने के लिए यह साबित करना होगा कि आत्महत्या के लिए प्रेरित करने में आरोपी के कार्यों की प्रत्यक्ष भूमिका थी। अदालत ने उन उदाहरणों का हवाला दिया, जिनमें सामान्य झगड़ों या असहमति को आत्महत्या के लिए उकसाने से जोड़ने के प्रति आगाह किया गया है।

यह भी पता चला कि मृतिका ने अपनी शादी किसी और से तय कर ली थी, जिसे उसकी मां ने भी स्वीकार किया था।

कहा गया,

"मृतक की मां ने क्रॉस एक्जामिनेशन में स्वीकार किया कि उन्होंने मृतक की शादी किसी अन्य व्यक्ति के साथ तय की थी और शादी के कार्ड छपने के बाद इसे रद्द कर दिया गया था। इससे पता चलता है कि वह इस मामले में आरोपी के अलावा किसी अन्य व्यक्ति से शादी करने के लिए सहमत थी। आरोपी का शादी से इनकार करना आत्महत्या का कारण नहीं हो सकता।”

इस प्रकार, अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष ने अभियुक्तों का अपराध साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं दिए हैं।

इसलिए अदालत ने फैसला रद्द कर दिया और आरोपी को रिहा करने का आदेश दिया। बशर्ते कि किसी अन्य आपराधिक मामले में उसकी आवश्यकता न हो।

तद्नुसार अपील स्वीकार की गई।

याचिकाकर्ता के वकील: पी. प्रभाकर रेड्डी और प्रतिवादी के वकील: टी.वी. रमण राव

केस टाइटल: जंगम रविंदर बनाम आंध्र प्रदेश राज्य

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