मेघालय हाईकोर्ट ने पॉक्सो मामले को खारिज करते हुए कहा, नाबालिग 'पीड़ित' ने पत्नी के रूप में आरोपी के साथ रहते हुए बच्चे को जन्म दिया
मेघालय हाईकोर्ट ने हाल ही में एक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012 (पॉक्सो) मामले में एफआईआर और आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी। कोर्ट ने नोट किया कि आरोपी व्यक्ति और पीड़िता-पत्नी एक-दूसरे के साथ पति-पत्नी के रूप में रह रहे हैं और उक्त जोड़े से एक बच्चे का जन्म हुआ।
जस्टिस डब्ल्यू डिएंगदोह की खंडपीठ ने जोर देकर कहा कि एक वयस्क पुरुष द्वारा एक कम उम्र की लड़की के साथ सहमति या स्वैच्छिक संभोग का ऐसा मामला बहुत जटिल है, क्योंकि वे पति-पत्नि के रूप में रह रहे हैं और पत्नी ने बच्चे को जन्म दिया है।
संक्षेप में मामला
याचिकाकर्ता नंबर एक (पति/अभियुक्त) और याचिकाकर्ता नंबर दो (पत्नी/पीड़िता) पति-पत्नी हैं और उनके रिश्ते के दौरान, याचिकाकर्ता नंबर दो गर्भवती हो गई। तदनुसार, जब याचिकाकर्ता नंबर एक उसे मेडिकल जांच के लिए एक अस्पताल में ले गया तो अस्पताल के अधिकारियों ने पुष्टि की कि याचिकाकर्ता नंबर दो गर्भवती है और उसकी उम्र लगभग 17 वर्ष है। उन्होंने मामले की पुलिस को सूचित किया।
पुलिस ने स्वत: संज्ञान लेते हुए याचिकाकर्ता नंबर एक (पति/अभियुक्त) को पॉक्सो अधिनिमय की धारा 5(जे)(ii)/6 के तहत मामला दर्ज किया। इस प्रकार, वह सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट में चले गए और एफआईआर रद्द करने की मांग की।
अदालत के समक्ष उनके वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता नंबर एक और याचिकाकर्ता नंबर दो पति और पत्नी हैं। इस संबंध में नाबालिग पत्नी द्वारा सीआरपीसी की धारा 161 के साथ-साथ धारा 164 के तहत एक बयान दिया गया।
अदालत को यह भी बताया गया कि नाबालिग लड़की की मां ने भी अपने बयान में सीआरपीसी की धारा 161 के साथ-साथ सीआरपीसी की धारा 164 में भी उक्त तथ्य की पुष्टि की। यह भी कहा कि दंपति के बीच सहवास से बच्चा पैदा हुआ। अब न तो याचिकाकर्ता नंबर दो और न ही उसके परिवार के सदस्य याचिकाकर्ता नंबर एक के खिलाफ मामले को आगे बढ़ाना चाहते हैं।
अंत में अदालत को यह बताया गया कि याचिकाकर्ता ग्रामीण पृष्ठभूमि से हैं और कानून के प्रावधानों, विशेष रूप से पॉक्सो अधिनियम से बेखबर हैं। उन्होंने अपनी प्रथा के अनुसार स्वेच्छा से पति और पत्नी के रूप में एक साथ रह रहे है। यह स्वाभाविक है कि इस तरह के मिलन से एक बच्चे की पैदाइश होगी।
न्यायालय की टिप्पणियां
कोर्ट ने कहा कि संबंधित अवधि में नाबालिग पत्नी की उम्र 18 वर्ष से कम है इसलिए, वह पॉक्सो अधिनियम की धारा 2(1)(d) के अनुसार 'बच्चे' की परिभाषा के अंतर्गत आती है।
इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि बच्चा होने और सहमति देने में सक्षम नहीं होने के कारण पति-आरोपी द्वारा किए गए यौन संपर्क के कार्य को यौन हमले के रूप में दंडित करने पर विचार किया गया। हालांकि, कोर्ट ने आगे कहा कि अधिनियम के तहत प्रतिबद्ध है। वर्तमान मामले की परिस्थितियों को किसी भी तार्किक या तर्कसंगत अर्थ में हमले का मामला नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि याचिकाकर्ता नंबर दो पर आपत्तिजनक शारीरिक संपर्क या शारीरिक नुकसान पहुंचाने की कोई धमकी या प्रयास नहीं किया गया।
इसे देखते हुए न्यायालय ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपनी असाधारण शक्ति को लागू करके मामले में एफआईआर और परिणामी आपराधिक कार्यवाही रद्द करने का निर्णय लिया।
प्रकरण का शीर्षक- शखेम्बोरलंग सुतिंग और अन्य बनाम मेघालय राज्य और अन्य।
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (मेग) 11
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