"मौलिक अधिकार का मामला"- बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से केवल पूरी तरह से टीकाकरण वाले लोगों को लोकल ट्रेन में यात्रा की अनुमति के पीछे का कारण स्पष्ट करने के लिए कहा
बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र के मुख्य सचिव से एक हलफनामे में ग्रेटर मुंबई क्षेत्र में केवल पूरी तरह से टीकाकरण वाले लोगों को लोकल ट्रेनों में चढ़ने की अनुमति देने के सरकार के फैसले के पीछे के कारणों को स्पष्ट करने के लिए कहा है।
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एम एस कार्णिक की खंडपीठ राज्य सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। राज्य सरकार के फैसले के अनुसार केवल पूरी तरह से टीकाकरण वाले लोगों को लोकल ट्रेनों में चढ़ने और मॉल और कार्यस्थलों पर जाने की अनुमति दी गई है।
पीठ ने बुधवार को कहा कि इस मुद्दे में उन नागरिकों के मौलिक अधिकारों को कम करना शामिल है जिन्हें या तो कोई भी डोज नहीं लगी है या सिर्फ एक डोज मिली है। इन लोगों की रोजी-रोटी दैनिक मजदूरी पर निर्भर है और वे परिवहन के अन्य साधनों का खर्च नहीं उठा सकते हैं।
अलग-अलग याचिकाओं में कार्यकर्ता फिरोज मिथिबोरवाला और योहन तेंगरा ने मांग की है कि मुंबई महानगर क्षेत्र के भीतर लोकल ट्रेनों सभी लोगों को यात्रा करने की अनुमति दी जाए, भले ही उनके टीकाकरण की स्थिति कुछ भी हो।
अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया गया कि केंद्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि टीकाकरण की स्थिति के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। इसके बावजूद राज्य सरकार इस तरह के आदेश पारित कर रही है।
याचिकाकर्ताओं ने तब यूरोपीय देशों में टीकाकरण के कारण कुछ मौतों की ओर इशारा किया, जिसके बाद पीठ ने उनसे केवल भारत की रिपोर्ट और इस मुद्दे पर भारतीय वैज्ञानिकों की राय का हवाला देने को कहा।
अदालत ने कहा,
"हमें केवल भारतीय रिपोर्ट दिखाएं और हमारे वैज्ञानिक क्या कह रहे हैं वह बताएं। वे (अन्य देश) अभी भी कोविड से जूझ रहे हैं, जबकि हम दूसरी लहर से आगे निकल चुके हैं। हम बहुत बेहतर स्तर पर खड़े हैं। भारत की तुलना उनके साथ न करें। उन देशों को भारत से सीखना चाहिए।"
अदालत ने कहा,
"यूरोपीय देशों में आबादी विरल है। यहां सिर्फ धारावी में ही यूरोपीय देश जितनी आबादी है, इसलिए भारत में चुनौतियां ज्यादा हैं।"
राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल अंतूरकर ने तर्क दिया कि याचिकाएं सुनवाई योग्य नहीं हैं।
अंतुरकर ने याचिकाकर्ताओं के टीकाकरण की स्थिति का खुलासा न करने का हवाला देते हुए तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं के पास याचिका दायर करने का कोई कोई सही कारण नहीं है क्योंकि बड़ी संख्या में बिना टीकाकरण वाले लोगों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।
उन्होंने कहा कि याचिकाएं आकस्मिक रूप से दायर की गई हैं, इसलिए कोई अंतरिम राहत नहीं दी जानी चाहिए।
अदालत ने तब देखा कि उपनगरीय रेल सेवाओं का लाभ नहीं उठाने वाले नागरिकों के मौलिक अधिकारों को कम करने का व्यापक मुद्दा है और इसलिए निर्णय के पीछे तर्क को राज्य सरकार या राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एसडीएमए) द्वारा अदालत के समक्ष प्रस्तुत करने की आवश्यकता है।
कोर्ट ने तब राज्य के मुख्य सचिव, जो एसडीएमए के सीईओ और राज्य कार्यकारी समिति के अध्यक्ष भी हैं, को 21 दिसंबर तक एक हलफनामा दाखिल करने को कहा।
मामले की अगली सुनवाई 22 दिसंबर को होगी।