अगर दूल्हा दुल्हन के साथ कथित तौर पर दुर्व्यवहार करता है तो मैच-मेकर पर धोखाधड़ी का आरोप नहीं लगाया जा सकताः बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि एक मैच-मेकर, जिसने भावी दुल्हन के परिवार के सामने दूल्हे की प्रशंसा की हो,उस पर केवल इसलिए धोखा देने का आरोप नहीं लगाया जा सकता क्योंकि पुरुष/दुल्हे ने कथित रूप से महिला/दुल्हन के साथ बुरा व्यवहार किया और अब उस पर घरेलू हिंसा का आरोप लगाया गया है।
जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस पृथ्वीराज चव्हाण की खंडपीठ ने शादी कराने में मध्यस्थ की भूमिका निभाने वाले(मैच-मेकर) एक वरिष्ठ बैंकर के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया,जिसे पति और उसके परिवार के साथ इस एफआईआर में आरोपी बनाया गया था।
पीठ ने कहा,‘‘यह जांच अधिकारी द्वारा कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के अलावा और कुछ नहीं है, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है ... एफआईआर में लगाए गए आरोप और सीआरपीसी की धारा 173 के तहत दायर अंतिम रिपोर्ट को भले ही उनके अंकित मूल्य पर लिया जाए और पूरी तरह स्वीकार कर लिया जाए तो भी आवेदक के खिलाफ प्रथम दृष्टया कोई अपराध या कोई मामला नहीं बनता है।’’
अदालत ने पश्चिम बंगाल में बैंक ऑफ इंडिया के सहायक महाप्रबंधक के रूप में कार्यरत शैलेंद्र कुमार दुबे द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की, जिसमें उनके खिलाफ 2019 में दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की गई थी। दुबे सहित अन्य पर भारतीय दंड संहिता के 376, 377, 498ए, 354, 506(2), 420, 406 रिड विद 34 के तहत मामला दर्ज किया गया था।
महिला ने अपनी शिकायत में कहा कि उनकी शादी 2018 में गोवा के होटल ललित में हुई थी। हालांकि, शादी के तुरंत बाद उसके साथ शारीरिक और मानसिक क्रूरता की गई और उससे दहेज की मांग भी की गई।
पुलिस को दिए पूरक बयान में, उसने आरोप लगाया कि दुबे ने उसके पिता का भावनात्मक शोषण करके, उसके पति और ससुराल वालों की प्रशंसा करके उन्हें धोखा दिया और कहा कि वे सभ्य, सुसंस्कृत और सुशील हैं और लड़के की विदेश में बहुत अच्छी नौकरी भी है।
पीठ ने कहा, ‘‘यह, हमारे विचार में, दूर-दूर तक भी भारतीय दंड संहिता की धारा 406 या 420 के तत्वों को आकर्षित करने वाला अपराध नहीं कहा जा सकता है।’’
कोर्ट ने कहा,‘‘दरअसल, ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता ने अच्छी नीयत से आरोपी के साथ प्रतिवादी संख्या 1 (पत्नी) की शादी तय करने के लिए एक मध्यस्थ के रूप में काम किया था... दोनों पक्षों के संपर्क विवरण एक दूसरे को प्रदान किए। वह किसी भी तरह से किसी भी पक्ष से संबंधित नहीं है।”
अदालत ने हरियाणा राज्य व अन्य बनाम भजन लाल व अन्य के मामले में दिए गए फैसले का हवाला दिया, जिसमें एफआईआर को रद्द करने के लिए दिशा-निर्देश दिए गए हैं और कहा कि यह सीआरपीसी की धारा 482 और भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अधिकार क्षेत्र को लागू करने के लिए एक उपयुक्त मामला है।
प्रतिनिधित्व- याचिकाकर्ता के लिए सुश्री जैस्मीन पुरानी/ श्री राहुल अग्रवाल
राज्य के लिए एपीपी श्रीमती पी.पी. शिंदे
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