'विवाह का इस्तेमाल लोगों को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर करने के एक उपकरण के रूप में किया जा रहा है': उत्तर प्रदेश सरकार ने 'लव जिहाद विरोधी' कानून का बचाव किया

Update: 2021-10-26 14:26 GMT

उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में उत्‍तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म पविर्तन प्रतिषेध अध‌िनियम, 2020 का बचाव किया है।

सरकार ने बचाव में कहा कि चूंकि विवाह का उपयोग किसी व्यक्ति के धर्म को उसकी इच्छा के विरुद्ध परिवर्तित करने के लिए एक साधन के रूप में किया जा रहा है, इसलिए कानून इस रोग को दूर करने का प्रयास करता है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने अधिनियम के खिलाफ दायर जनहित याचिकाओं (पीआईएल) के एक बैच के जवाब में दायर एक हलफनामे यह दलील पेश की है। हलफनामे में कहा गया है कि सामुदायिक हित हमेशा व्यक्तिगत हित पर प्रबल होगा, सरकार ने प्रस्तुत किया है कि कानून सार्वजनिक हित, सार्वजनिक व्यवस्था और समुदाय‌िक हितों की रक्षा करना चाहता है।

यह कहते हुए कि यह कानून उन कानूनों के जैसा ही है जो उत्तर प्रदेश के अलावा देश के कम से कम आठ राज्यों में पहले से ही लागू हैं, सरकार ने कहा है कि पड़ोसी देशों नेपाल, म्यांमार, भूटान, श्रीलंका और पाकिस्तान में भी ऐसे कानून हैं।

हलफनामे में कहा गया है कि पब्‍ल‌िक रिकॉर्ड में पर्याप्त डेटा है, जिनसे पता चलता है कि जबरन धर्मांतरण ने पूरे राज्य में भय पैदा किया है, जिससे इस इस प्रकार के कानून की आवश्यकता का आधार बना है।

"सलामत अंसारी का फैसला अच्छा कानून नहीं"

गौरतलब है कि सरकार ने कहा है कि सलामत अंसारी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के नवंबर 2020 के फैसले पर पुनर्विचार की आवश्यकता है क्योंकि यह अच्छा कानून नहीं बनाता है।

सरकार ने प्रस्तुत किया है कि सलामत अंसारी मामले में न्यायालय ने इंटर-फंडामेंटल राइट और इंट्रा-फंडामेंटल राइट से संबंधित प्रश्न पर विचार नहीं किया है। इसमें न्यायालय ने इस बात पर भी ध्यान नहीं दिया है कि सामाजिक हित के लिए एक व्यक्ति की स्वतंत्रता का दायरा क्या होगा।

उल्‍लेखनीय है कि सलामत अंसारी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था, "पसंद के व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार चाहे वह किसी भी धर्म का हो, जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार में अंतर्निहित है।"

वास्तव में, यह माना गया था कि प्रियांशी @ कुमारी शमरेन और अन्य बनाम यूपी राज्य और एक अन्य [रिट सी नंबर 14288 ऑफ 2020] , में फैसला, जिसने श्रीमती नूरजहां बेगम @ अंजलि मिश्रा और एक अन्य बनाम यूपी राज्य और अन्य [रिट सी नंबर 57068 ऑफ 2014] में दिए गए निर्णय का पालन किया था, अच्छा कानून नहीं है।

अदालत ने कहा था, "इनमें से कोई भी फैसला दो परिपक्व व्यक्तियों के जीवन साथी चुनने की स्वतंत्रता या उनकी पसंद की स्वतंत्रता के अधिकार से संबंधित नहीं है, जिसके साथ वे रहना चाहते हैं।"

"कोई मौलिक अधिकार पूर्ण नहीं है"

हलफनामे में कहा गया है कि अधिनियम वास्तव में यह सुनिश्चित करता है कि किसी व्यक्ति का दूसरे धर्म में धर्मांतरण का निर्णय उसका खुद का निर्णय नहीं है। यदि उसे किसी छल की आशंका है तो आपत्त‌ि दर्ज कराई जा सकती है।

हलफनामे में कहा गया है कि अधिनियम केवल रिश्तेदारों को बलपूर्वक धर्मांतरण के मामलों में प्राथमिकी दर्ज करने की शक्ति देता है और यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक व्यक्ति को समाज में समान नैतिक सदस्यता प्रदान की जाए।

सरकार ने जवाब में इस बात पर भी जोर दिया है कि याचिकाकर्ता 'घर वापसी' के प्रचार से प्रेरित हैं और उन्होंने कानूनी मुद्दों पर ध्यान केंद्रित नहीं किया है। इसलिए उन्होंने मौजूदा याचिका दाखिल करके कानून की प्रक्रिया को व्यस्त किया है। 

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