पति के परिवार के सदस्यों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न या बलात्कार का झूठा आरोप लगाना बेहद क्रूरता का कार्य: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि पति के रिश्तेदारों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न या बलात्कार के झूठे आरोप लगाना बेहद क्रूरता का कार्य है। कोर्ट ने कहा, ऐसे कार्य के लिए किसी भी प्रकार की माफी नहीं हो सकती है।
जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए ये टिप्पणी की।
फैमिली कोर्ट ने अपने आदेश में एक पति को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 (1) (आईए) के तहत क्रूरता के आधार पर पत्नी से तलाक का हकदार माना था।
पत्नी की अपील को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि दोनों पक्षों ने 2012 में विवाह किया था, और 2014 से अलग-अलग रह रहे थे। इससे यह साबित होता है कि वे वैवाहिक संबंध बनाए रखने में असमर्थ थे, जिससे उन्हें एक-दूसरे को आपसी सहयोग और वैवाहिक रिश्ते से वंचित होना पड़ा।
अदालत ने कहा,
"लगभग 9 साल का इस तरह का अलगाव मानसिक क्रूरता का उदाहरण है, जिसके चलते अधिनियम की धारा 13(1)(आईए) के तहत क्रूरता के आधार पर वैवाहिक संबंध को तत्काल समाप्त करने की मांग की गई है।"
पीठ ने कहा कि पति ने दावा किया था कि विवाह संपन्न नहीं हुआ है, हालांकि उनकी खुद की दलीलों से पता चलता है कि पत्नी संभोग के उनके प्रयास का विरोध करती थी और हमेशा अनिच्छुक रहती थी।
कोर्ट ने कहा,
“प्रतिवादी पति ने खुद गवाही दी थी कि उन्होंने अपीलकर्ता पत्नी को अपने साथ डॉक्टर के पास चलने के लिए कहा था क्योंकि उन्हें बच्चा नहीं हो रहा था। विद्वान प्रधान न्यायाधीश ने इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए पार्टियों की गवाही का सही उल्लेख किया है कि यह दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं था कि विवाह संपन्न नहीं हुआ था, लेकिन यह साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत थे कि अपीलकर्ता हमेशा अनिच्छुक रही, जो शारीरिक संबंध बनाने के लिए कभी आगे नहीं आई।”
पीठ ने यह भी कहा कि एक जोड़े को एक-दूसरे के साथ और वैवाहिक रिश्ते से वंचित किया जाना क्रूरता का चरम कृत्य है, इस दृष्टिकोण का सुप्रीम कोर्ट ने भी समर्थन किया है।
कोर्ट ने कहा,
“इस बात को दोहराने की जरूरत नहीं है कि किसी भी वैवाहिक रिश्ते की आधारशिला शारीरिक और वैवाहिक संबंध है। किसी जोड़े को एक-दूसरे के साथ से वंचित किया जाना यह साबित करता है कि शादी कायम नहीं रह सकती और वैवाहिक रिश्ते से इस तरह वंचित करना बहुत ही ज्यादा क्रूरता का कार्य है।''
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि पत्नी ने पति और उसके भाई पर बलात्कार के आरोपों लगाए थे। उस मामले में वे बरी हो गए थे।
अदालत ने कहा,
''इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि प्रतिवादी के परिवार के सदस्यों के खिलाफ न केवल दहेज उत्पीड़न बल्कि बलात्कार के गंभीर आरोप लगाना, जिसे झूठा पाया गया, अत्यधिक क्रूरता का कार्य है, जिसके लिए कोई माफी नहीं हो सकती।''
पीठ ने यह भी कहा कि पत्नी द्वारा पति के खिलाफ दायर की गई झूठी शिकायतें उसके खिलाफ मानसिक क्रूरता है।
जैसा कि पति ने यह भी दावा किया कि उनकी पत्नी शादी के दिन से घरेलू कर्तव्यों का पालन करने में विफल रही और उन्हें और उनके परिवार के सदस्यों को बताए बिना अक्सर अपने माता-पिता के घर चली जाती थी। अदालत ने कहा कि पत्नी ने आत्महत्या करने और पति को और उनके परिवार के सदस्यों को झूठे मामले फंसाने की धमकी भी दी थी।
पीठ ने कहा,
"विद्वान प्रधान न्यायाधीश, फैमिली कोर्ट ने सही निष्कर्ष निकाला है कि प्रतिवादी हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(आईए) के तहत क्रूरता के आधार पर तलाक का हकदार है।"
केस टाइटल: ए बनाम एस
साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (Del) 780