मद्रास हाईकोर्ट ने 'प्रकृति मां' को एक जीवित प्राणी के रूप में घोषित किया, जिसके पास एक जीवित व्यक्ति के सभी अधिकार कर्तव्य और दायित्व हैं

Update: 2022-05-02 07:57 GMT

मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में "माता-पिता के अधिकार क्षेत्र" को लागू किया और "मातृ प्रकृति" को एक कानूनी इकाई / कानूनी व्यक्ति / न्यायिक व्यक्ति/ नैतिक व्यक्ति / कृत्रिम व्यक्ति के रूप में "जीवित प्राणी" के रूप में घोषित किया, जिसे सभी संबंधित अधिकारों, कर्तव्यों और देनदारियों के साथ कानूनी व्यक्ति का दर्जा प्राप्त हो, ताकि उसे संरक्षित किया जा सके।

मदुरै पीठ की न्यायमूर्ति एस. श्रीमती ने यह भी कहा कि प्रकृति के पास अपनी स्थिति बनाए रखने और अपने स्वास्थ्य और भलाई को बढ़ावा देने के लिए अपने अस्तित्व, सुरक्षा और जीविका, और पुनरुत्थान के लिए मौलिक अधिकार / कानूनी अधिकार और संवैधानिक अधिकार होंगे। कोर्ट ने राज्य सरकार और केंद्र सरकार को धरती मां की रक्षा के लिए हर संभव तरीके से उचित कदम उठाने का भी निर्देश दिया।

"पिछली पीढ़ियों ने 'पृथ्वी माता' को इसकी प्राचीन महिमा में हमें सौंप दिया है और हम नैतिक रूप से उसी धरती माता को अगली पीढ़ी को सौंपने के लिए बाध्य हैं। यह सही समय है कि "माँ प्रकृति" को न्यायिक दर्जा घोषित / प्रदान किया जाए।" इसलिए यह कोर्ट "माता-पिता के अधिकार क्षेत्र" को लागू करके एतद्द्वारा "मातृ प्रकृति" को "जीवित प्राणी" के रूप में घोषित कर रहा है, जिसे कानूनी इकाई /कानूनी व्यक्ति / न्यायिक व्यक्ति / न्यायिक व्यक्ति / नैतिक व्यक्ति / कृत्रिम व्यक्ति के रूप में एक कानूनी व्यक्ति का दर्जा प्राप्त है, जिसे सभी संबंधित अधिकारों, कर्तव्यों और देनदारियों के साथ कानूनी व्यक्ति का दर्जा प्राप्त होगा, ताकि उसे संरक्षित किया जा सके।"

कोर्ट ने अन्य अधिकारियों से मिलीभगत और निजी व्यक्तियों को वन भूमि में पट्टा देने के मामले में अनिवार्य सेवानिवृत्ति के सरकारी आदेश तथा एक तिहाई पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभों में कटौती के दंड को रद्द करने संबंधी एक याचिका में उपरोक्त टिप्पणियां कीं।

पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता ने पिछले 35 वर्षों से राजस्व विभाग में सेवा की और राजश्री शुगर्स एंड केमिकल्स प्राइवेट लिमिटेड, वरदराज नगर, पेरियाकुलम तालुक, थेनी जिले में डिप्टी कलेक्टर के संवर्ग में डिस्टिलरी अधिकारी के रूप में कार्य किया। सेवानिवृत्ति की आयु प्राप्त करने के बाद, उन्हें सेवानिवृत्त होने की अनुमति नहीं दी गई और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई लंबित होने का हवाला देते हुए उन्हें निलंबित कर दिया गया।

दिनांक 06.04.2009 के शासनादेश माध्यम से, सरकार ने उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति देकर दंडित किया, और शासनादेश दिनांक 17.08.2012 द्वारा, सरकार ने आदेश दिया कि याचिकाकर्ता पेंशन और डीसीआरजी के केवल दो तिहाई के लिए पात्र होगा। दंड के तौर पर पात्र पेंशन की एक तिहाई और सेवानिवृत्ति ग्रेच्युटी की राशि कम कर दी गयी थी।

याचिकाकर्ता ने कहा कि उसके खिलाफ सजा सहायक बंदोबस्त अधिकारी, मदुरै, दिनांक 24.07.1996 के आदेशों के पालन को लेकर दी गयी थी, जिसमें याचिकाकर्ता को तमिलनाडु एस्टेट्स (उन्मूलन और रैयतवारी में परिवर्तन) अधिनियम, 1948 की धारा 11 ए के तहत मेगामलाई गांव के प्लॉट नंबर 36 यानी क्रमांक संख्या 280 में से 2873.03 हेक्टेयर वनभूमि का पट्टा देने का निर्देश दिया गया था। याचिकाकर्ता ने आगे तर्क दिया कि यद्यपि उसके खिलाफ इतनी कठोर सजा दी गई है, लेकिन सर्वेक्षण और निपटान निदेशक, चेन्नई, जो विभाग के प्रमुख हैं, ने विचाराधीन भूमि को रैयती के रूप में माना और सहायक बंदोबस्त अधिकारी, मदुरै को इस मामले में बरी कर दिया है।

उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि बंदोबस्त अधिकारी, तंजावुर के आदेश और जिला कलेक्टर, मदुरै के निर्देशों के अनुसार, दिया गया पट्टा रद्द कर दिया गया था और ग्राम खातों में आवश्यक प्रविष्टियां की गई थीं। इस प्रकार, कोई मौद्रिक नुकसान नहीं हुआ। इसलिए, याचिकाकर्ता ने दलील दी कि उस पर लगाई गई सजा कठोर थी और उन्होंने इसे रद्द करने की प्रार्थना की।

दूसरी ओर प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता, एक तालुक तहसीलदार को, सरकारी भूमि का संरक्षक होने के नाते, सहायक बंदोबस्त अधिकारी के आदेशों को लागू करने के लिए कार्य नहीं करना चाहिए था, क्योंकि यह कानून के अनुसार नहीं है और याचिकाकर्ता को निजी व्यक्तियों को सरकारी भूमि आवंटित नहीं करनी चाहिए थी। प्रतिवादियों ने यह भी कहा कि पट्टा देने में शामिल अन्य अधिकारियों को भी अनुशासनात्मक कार्यवाही का सामना करना पड़ा, लेकिन कुछ कार्यवाही को हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था और कुछ को बरकरार रखा था। आगे यह भी दलील दी गयी कि याचिकाकर्ता अपने साथ समान व्यवहार करने का दावा नहीं कर सकता, क्योंकि प्रत्येक मामले में कुछ अंतर है।

कोर्ट ने कहा कि हालांकि सह-अपराधी की सजा को रद्द कर दिया गया था या हटा दिया गया था और प्रविष्टियों को भी संशोधित किया गया था और पट्टों को रद्द कर दिया गया था, चूंकि विचाराधीन भूमि को "वन भूमि" के रूप में वर्गीकृत किया गया था, इसलिए इसमें आवश्यक हस्तक्षेप की जरूरत थी। इसलिए कोर्ट ने अनिवार्य सेवानिवृत्ति के आदेश को बिना संचयी प्रभाव के छह महीने के लिए वेतन वृद्धि पर रोक के रूप में संशोधित किया।

केस शीर्षक: ए पेरियाकरुप्पन बनाम सरकार के प्रधान सचिव एवं अन्य

केस नंबर: डब्ल्यू.पी. (एमडी) नंबर 18636/ 2013

याचिकाकर्ता के वकील: श्री एस. विश्वलिंगम

प्रतिवादी के वकील : श्रीमती डी फरजाना घोषिया (विशेष सरकारी वकील)

उद्धरण : 2022 लाइवलॉ (मद्रास) 191

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