"उसने इस्लाम अपनाया और बांग्लादेशी नागरिकता के लिए स्वेच्छा से आवेदन किया": मद्रास हाईकोर्ट ने भारतीय नागरिकता छोड़ने वाली बेटी के खिलाफ पिता की याचिका खारिज की

Update: 2022-08-19 06:58 GMT

मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में पिता की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें केंद्र सरकार और गृह मंत्रालय के सचिव को नागरिकता के त्याग की घोषणा दर्ज करने या अपनी बेटी को नागरिकता के त्याग का अनापत्ति प्रमाण पत्र/प्रमाण पत्र देने से रोकने की मांग की गई थी।

कोर्ट ने कहा कि वह 25 साल की उम्र की बालिग लड़की है। साथ ही पिता द्वारा पूर्व में दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के रिकॉर्ड को देखते हुए अदालत ने कहा कि उसने इस्लाम धर्म अपना लिया है और स्वेच्छा से बांग्लादेशी नागरिकता के लिए आवेदन किया है।

जस्टिस अब्दुल कुद्दूस इस्लाम धर्म अपनाने और बांग्लादेश की नागरिकता के लिए आवेदन करने वाली लड़की के पिता द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। इस याचिका में कहा गया कि वर्तमान में अपने पति के साथ बांग्लादेश में रह रही उसकी बेटी कट्टरपंथ, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, अपहरण और कैद की शिकार है, जो उसके सभी अधिकारों और मानवीय गरिमा का उल्लंघन करती है।

उसने कहा कि उसकी बेटी के अपहरण की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (तीसरे प्रतिवादी) द्वारा की जा रही है। इसमें नागरिकता त्याग का प्रमाण पत्र जारी करने से जांच बेमानी हो जाएगी। उसने यह भी प्रस्तुत किया कि इस तरह के प्रमाम पत्र जारी करने से उसकी पुनर्प्राप्ति की संभावना को अपरिवर्तनीय रूप से नुकसान होगा।

याचिकाकर्ता ने इस बात पर भी जोर दिया कि नागरिकता अधिनियम और नियमों के तहत प्रदत्त शक्ति का प्रयोग सभी संबंधित सामग्रियों को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए। साथ ही आदेश को यांत्रिक तरीके से पारित नहीं किया जाना चाहिए। बांग्लादेश में भारत के उच्चायुक्त (चौथे प्रतिवादी) को इस बात पर विचार करना चाहिए कि घोषणा स्वेच्छा से की गई है या नहीं। उसने प्रस्तुत किया कि बांग्लादेश की नागरिकता के लिए उसकी बेटी के आवेदन को धमकी, जबरदस्ती और अनुचित प्रभाव के तहत दायर कराया गया है। इस प्रकार, इस पर विचार नहीं किया जाना चाहिए।

उसने आगे कहा कि चूंकि किसी भी प्रमाण पत्र को जारी करने से संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसकी बेटी के अधिकारों की गारंटी प्रभावित होगी, इसलिए अदालत का हस्तक्षेप आवश्यक है। उसने यह भी तर्क दिया कि प्रमाण पत्र जारी करने से उसके और उसकी पत्नी के अधिकार भी प्रभावित होंगे, क्योंकि उनकी बेटी की भलाई उनके जीवन और गरिमा के लिए अंतर्निहित है।

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने अपनी बेटी को बांग्लादेश से भारत निर्वासित करने की मांग करते हुए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका भी दायर की है। उक्त याचिका को अदालत द्वारा हर्षिता का बयान दर्ज करने के बाद बंद कर दिया गया कि उसने इस्लाम धर्म अपना लिया और अपनी मर्जी से बांग्लादेश की नागरिकता के लिए आवेदन किया है।

अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत के संबंध में राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने एनआईए मामलों के लिए विशेष अदालत में क्लोजर रिपोर्ट पेश की।

उसी के मद्देनजर, अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के पक्ष में रिट याचिका में मांगी गई राहत देने का सवाल ही नहीं उठता।

तदनुसार, याचिका खारिज कर दी गई।

केस टाइटल: विनीत बैद बनाम भारत संघ

केस नंबर: डब्ल्यू.पी.नंबर 14971/2020

साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (मैड) 358

याचिकाकर्ता के वकील: निरंजन राजगोपालन

प्रतिवादियों के लिए वकील: एस.पी. आरती, केंद्र सरकार के सरकारी वकील (आर1, आर4), एस तिरुवेंगदम (आर 2), आर कार्तिकेयन, विशेष पीपी (आर3), टी. सीनिवासन, विशेष जीपी (आ5), टी. मोहन, मैसर्स अक्षय सागरिका (आ6)।

ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



Tags:    

Similar News